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पहाड़ी नेताओं पर निशाना साधने वाला कुमाऊंनी तरीके का तीखा व्यंग्य

पहाड़ी नेताओं पर निशाना साधने वाला कुमाऊंनी तरीके का तीखा व्यंग्य

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by December 29, 2018 Literature

सोशल मीडीया में एक मैसेज बहुत आ रहा है कि माननीयो ने अपनी तो तनख्वाह बड़ा दी है, और सरकारी नौकरों की क्यों नहीं बड़ी ,
कह रहे ये कैसा गणित ठैरा। तो मैने सोचा कुछ इस गणित को परिभाषित किया जाय। तो दाज्यु सुणो…..
अरे दाज्यु
इसका गणित इस प्रकार है………
आप लोग नौकरी करने वाले ठैरे……. इस बार नही बडे़गा , ……..तो अगली बार बड़ जायेगा. साठ साल तक नौकरी पक्की…ठैरी बल…….।
और ये पांच साल के ठैरे। इस बार मोदी लहर में बग गये और देहरादुन पुज गये।
पर अगली बार जाने लहर, को गधेरे में खित देगी पता थोड़ी ठैरा।
इसलिए माननीयो ने सोचा काम तो हमने कम ही किया है……।।।।।।।।।।
2019 में मोदी जी को पांच सीट नही दे पाएंगे तो तनखा भी नही बड़ पायेगी. …..।।।।।।
और कही कुर्सी से उठाकर चटाई मै न बैठा दे मोदी ज्यु।
किले की वो मोदी ज्यु ठहरे…
इसलिए अपना भत्ता बड़ाना जरुरी था हो,……..

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सरकारी कर्मचारियो की …अगर बड़……..जायेगी 2019 में पांच सीट प्रदेश से गई तो……….
नतरी हो 2022 बाद त काम हुणी छ
ऐसा ही कह रहे फिर पहाड के देबता…………
बाकी अघिल के देख लियो☺️☺️☺️☺️☺️☺️
फिर अपने बच्चे भी तो देखने हुए.
सब घर बार का लगा भी रखा है भाइयो ने ,चुनाव लडने में.
जो हार गये घर बैठे हैं उनसे पुछो ,कितना कुछ लुट गया…….।। चुनावी संसार में सब खा पी गये और जब समय आया तो मोदी ज्यु आ गये ठैरे बल,……….. और जोर की लहर में बहा ले गये देहरादुन
बाकी सब बरसात की बुदें गिनने लग गये…….
इसलिए खर्च उठाना भी जरूरी हुआ। फिर घर में भाभी लोग भी ठेरे ,………..वो भी पंच देने वाली हुई रोज़ -रोज़ कि क्या दाल रोटी खिला रहे हो इतनी मेहनत करके तो दून की एसी की ठंडी हवा में भेजा है….. फिर , उनका भी मान रखना ठैरा। ……….उनका भी खर्च बड गया ठैरा और कितना मेहनत की है उन्होने……….
चुनावी बरसात में……….
सब सहेली लगी ठैरी ….. हलवा पुरी बनाने में,…….. टैम ही कहा आ ठैरा तब, ……उनको भी खुश करना ठैरा. खाने की फुर्सत कहा ठैरी ……..कभी कभी तो निर्जला ब्रत भी हो जाने वाला ठैरा…
इसलिए बड़ाना जरूरी ठैरा
अब तुम कह रहे हम बेरोजगार हो गयै ठैरे, बेरोजगार अलग रूठ गये. सरकारी नौकर कह रहे हमारी बडाओ तनख्वाह. ब्यापारी जी एस टी में अनपना गया ठैरा।
पर इन सबको कौन समझाए ये माननीय…..
सब ये क्यों भूल जा रहे ठैरे कि कितना कुछ दांव में लगाकर ये माननीय इस सोने की अंडे देने वाली कुर्सी में पहुंचे हैं।


देवेन्द्र बिनवाल, Mirror

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