गोलू देवता की कथा का तीसरा भाग, जब नवजात गोरिया को अपना सच पता चलने लगा
जैसा कि हम जानते हैं कि पिछले कुछ हफ्तों से हमने उत्तराखंड के देवी-देवताओं पर आपको लगातार जानकारी देने के लिए एक सीरीज शुरू की है, जिसमें हम आपको सबसे पहले उत्तराखंड में न्याय के लिए जाने जाने वाले गोलू देवता की जीवन कथा से परिचित करा रहे हैं । उत्तराखंड की दैव संस्कृति को करीब से जानने वाले भैरव जोशी आपको लगातार ये जानकारी दे रहे हैं ।
अभी तक आप पढ़ चुके हैं कि नवजात गोलू भगवान को उनकी सात सौतेली माता संदूक में बंद कर नदी में बहा देती हैं, जो एक मछुवारे को मिलता है और मछुवारा परिवार इस नवजात का लालन पालन करता है ।
( पिछले हिस्से की कथा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )
आगे की कथा…
नवजात के गोरी गंगा से मिलने से नवजात का नाम गोलू रखा गया, गोलू के आगमन से भाना मछुवारे का घर खुशियो से भर गया, जो गाय दूध नही देती थी वो दूध देने लगी, भाना और उनकी पत्नी के जैसे सारे दुख ही खत्म हो गए, यहां तक कि उस पूरे गाँव में खुशहाली छा गई, सभी लोग गोलू देव को देवदूत मानने लगे, गोलू देव का बचपन भाना के घर बीतने लगा, बाल्य काल से ही गोलू देव के मुख पर राजवंशी चमक थी । लोग उनको देखते तो मुख ही देखते रहते कि दूध जैसे गोरे और राजवंशी चमक वाले बालक ने गरीब भाना मछुवारे के घर कैसे जन्म ले लिया, पर इस सत्य से हर कोई अन्जान था कि गोलू देव खुद भगवान महादेव के अवतार और राज्य के राजकुमार हैं । गोल्जू जब बड़े होने लगे तो उन्हे सपने होने लगे कि कैसे उनका जन्म हूआ और उनकी माताओ ने उन्हे गंगा में बहा दिया और उनके असली मां – पिताजी कौन हैं । सब सपने में पता चलने लगा, उन्होने भाना यानी अपने पालनकर्ता को सपनों के बारे में बताया, पर बालक के खो जाने के डर से भाना गोल्जू की बात पर यही कहता कि वो ही गोल्जू के माता पिता हैं, और मछवारन का ही दूध पी कर गोल्जू पले हैं ।
पर गोल्जू को अपनी भैरव शक्ति का भी अहसास हो गया था, एक दिन गोल्जू ने भाना से एक घोड़ा लाने की जिद की, चूंकि भाना गरीब था तो उसने काठ के कारीगर को बुला कर काठ का एक घोड़ा गोल्जू के लिये बनवा दिया, काठ का घोड़ा पा कर गोल्जू बहूत प्रसन्न थे, उन्होने काठ के कारीगर से इनाम मांगने के लिये कहा तो कारीगर ने नि:संतान होने की बात कही और पुत्र का वरदान मंगा, गोल्जू ने भी उसको पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया……( इंतजार करिये इससे आगे की कहानी अगले भाग में )
मेरा अपना अनुभव…
देव का इंसान के अंग में जन्म लेना एक ऐसा अहसास है जो बता पाना तो संभव नहीं है फिर भी एक प्रयास करता हूँ … 80% उत्तराखण्ड के पुछारियो को दिखा कर पूरे 6 महीने की मेहनत के बाद हार कर मैं श्री चितयी मंदिर में बैठ कर गोलजू कि मूर्ती के आगे रोने लागा कि हे प्रभु अब क्या करूं, लोग कहते हैं आपका अवतार है मूझ में और अवतार कोई नहीं करा पाता, ये करीब 15 साल पहले की बात है। एक श्री गंगानाथ जी के ड़ांगर थे हाट कालिका मंदिर में, उन्होने ही हार कर मुझे चितई धाम भेजा , तो जब मेरा आंसू गिरा मंदिर में, पूरे मंदिर कि भीड़ में भगवान गोलू देव ने अवतार लिया, मेरे शरीर में आकर बोले, बेटा देवता को ठीक उसका गुरु करता है पर मेरा गुरु तो खुद गुरु गोरखनाथ के अलावा कोई हो नहीं सकता । इसलिए गुरु की खोज छोड़ो और अपने कुलांकारी थान, जो सालों से नहीं खुला है उसे खोल कर मेरा जागर लगाओ। आगे का रास्ता तुम्हें अपने घर पर ही मिलेगा। वो अवतार भले ही कुछ घड़ी का था पर जो खुशी मां को मां बनने पर होती है, ये घड़ी शायद वही थी, लगता था सारा उत्तराखण्ड मूझ में आ गया हो। इतनी शक्ति कि सब मुझे अपने लग रहे थे और गोलजू की कसम तब से आज तक कभी रोया नहीं ।।
भैरव जोशी ( उत्तराखंड निवासी भैरव जोशी दिल्ली में टाटा ग्रुप ऑफ होटल्स में कार्यरत हैं और उत्तराखंड की दैवीय संस्कृति की इनको विशेष जानकारी है, इनके ज्ञान को अब हम आप लोगों तक पहुंचाएंगे )
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