उत्तराखंड का लद्दाख है नेलांग और जादुंग, आप यहां पर्यटन के लिए आ सकेंगे अगर….
लद्दाख दिल्ली से काफी दूर है, लेकिन दिल्ली से काफी नजदीक उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले में एक ऐसी जगह है जिसे उत्तराखंड का लद्दाख कहा जा सकता है। यहां की भौगोलिक स्थिति पूरी तरह से लद्दाख की जैसी है और यहां पर्यटन का खजाना पड़ा हुआ है।
दरअसल उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री धाम जाते वक्त गंगोत्री धाम से कुछ पहले भैरव घाटी बैरियर से उत्तरकाशी जिले के नेलांग और जादूंग को रास्ता जाता है। 1962 तक यह गांव भारत और तिब्बत के बीच में व्यापार का प्रमुख केंद्र था लेकिन 1962 में भारत और चीन के बीच में युद्ध के बाद गांव की तस्वीर ही बदल गई।
यह रास्ता 1962 से पहले भारत तिब्बत व्यापार का सिल्क रूट हुआ करता था, इस रास्ते तिब्बती अपने याकों पर हिमालयन नमक, जड़ी बूटी ढोकर लाते थे और बदले में भारत से जरूरी राशन, कपड़े लेकर जाते थे। इस व्यापारिक मार्ग की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तिब्बती व्यापारियों की सुगम आवाजाही के लिए भैरोंघाटी के समीप पहाड़ी के बीचों बीच एक गली काटी गई जिसे गर्तांगली का नाम दिया गया। यह मार्ग साल्ट रूट था और भारत चीन युद्ध के बाद यह व्यापार पूरी तरह से बंद हो गया।
1962 में भारत चीन युद्ध के बाद इस इलाके को इनर लाइन घोषित कर दिया गया और नेलांग जादुंग के मूल निवासियों जिन्हें यहां बहने वाली जाड़ गंगा के कारण जाड़ भी कहा जाता है, उन परिवारों को हर्षिल के पास बगोरी में बसाया गया और उन्हें शीतकालीन प्रवास के लिए डुंडा के समीप वीरपुर में जगह दी गई। करीब 60 साल होन को है, इस इलाके को इनर लाइन क्षेत्र घोषित हुए।
अभी यह दोनों गांव वीरान पड़े हुए हैं, यहां जाड़ लोगों की संपत्ति है। 2012 के पहले यहां किसी को जाने की इजाजत नहीं थी लेकिन 2012 के बाद यहां स्थानीय प्रशासन की इजाजत से पर्यटकों को जाने की इजाजत दी जा रही है, लेकिन पर्यटक इस इलाके में रात्रि प्रवास नहीं कर सकते हैं। उत्तराखंड सरकार की ओर से केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस इलाके को इनर लाइन से हटाने की मांग की गई है ताकि यहां के स्थानीय लोग अपनी संपत्तियों में होमस्टे बना सकें और पर्यटक यहां रात्रि विश्राम कर सकें।
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