Skip to Content

उत्तराखंड का एक कठिन धार्मिक यात्रा ट्रैक, 3 सिर वाली देवी बगलामुखी को समर्पित है कांकड़ा मयेली जात्रा

उत्तराखंड का एक कठिन धार्मिक यात्रा ट्रैक, 3 सिर वाली देवी बगलामुखी को समर्पित है कांकड़ा मयेली जात्रा

Closed
by July 21, 2023 Culture, News

12 September. 2022. Tehri. तंत्र क्रिया में 10 महाविद्याओं का विशेष महत्व होता है। ये दस महाविद्याएं हैं, काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। ये सभी देवी के रूप हैं, इनमें से एक बगलामुखी माता के लिए प्रसिद्ध है उत्तराखण्ड की धरती पर कांकड़ा मयेली मध्य हिमालय माँ जगदी मैत जात्रा, प्रति वर्ष चलने वाली पाँच दिवसीय यह यात्रा अपने आप में अद्वितीय व अलौकिक है, हिमालय की यह विराट दुर्लभ तीर्थ यात्रा युगों- युगों से आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है। जनपद टिहरी गढ़वाल के भिलंग पट्टी के घुत्तू बुंगली धार के माँ बगलामुखी मंदिर से चलने वाली यह जात्रा इस वर्ष आध्यात्मिक जगत में एक यादगार यात्रा रही, इस यात्रा के प्रमुख यात्री श्री रामकृष्ण शरण जी महाराज ने बताया कि इस वर्ष यह यात्रा 29 अगस्त से आरम्भ हुई और दो सितम्बर तक चली, उन्होने बताया कि यह जात्रा इतनी आनन्द भरी होती है कि इसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है।

धर्मशास्त्रों के अनुसार यहां तीन सिर वाली देवी बगलामुखी का वास है, यहां देवभूमि उत्तराखण्ड की धरती पर स्थित बगलाक्षेत्र युगों-युगों से परम पूज्यनीय है, दस महाविद्याओं में से एक माँ बगलामुखी का भूभाग पवित्र पहाड़ों की गोद में स्थित एक ऐसा मनोहारी स्थल है जहाँ पहुंचकर आत्मा दिव्य लोक का अनुभव करती है। भारतभूमि में माँ के अनेकों प्राचीन स्थल हैं, इन तमाम स्थलों में हिमालय के आँचल में स्थित माँ बगलामुखी क्षेत्र का महत्व सर्वाधिक है। पौराणिकता के आधार पर इसके महत्व की प्राथमिकता पुराणों में सुन्दर शब्दों में वर्णित है, स्कंद पुराण के केदारखण्ड महात्म्य में बगला क्षेत्र की बडी विराट महिमा वर्णित की गयी है, केदार खण्ड के 45 वें अध्याय मे स्वयं भगवान शिव माता पार्वती को इस क्षेत्र की महिमा का रहस्योद्घाटन करते हुए कहते हैं, यह एक सुन्दर क्षेत्र है, यह चार योजन लम्बा और दो योजन चौड़ा है, भिल्गणा नदी के समीप इस पावन स्थल के बारे में भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं, देवी यह पावन स्थल परम गोपनीय है, तुम्हारे कल्याणकारी प्रेम के वशीभूत होकर मैं तुम्हें हिमालय के इस दुर्लभ तीर्थ की महिमा बताता हूँ। भिल्लगणा के दक्षिण भाग में उत्तम बगलाक्षेत्र है। यह क्षेत्र अनेक तीर्थों से युक्त तथा भगवान शिव के नाना पिण्डी के स्वरुपों से शोभित है, जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य देवी के नगर में वास करता है, शिवजी आगे माता पार्वती को बतलाते है महादेवी बगला, सभी तन्त्रों में प्रसिद्ध है। शत्रुओं का स्तम्भन करनेवाली बगला ब्रह्मास्त्र विद्या के रूप में प्रसिद्ध है इनके स्मरण मात्र से ही शत्रु पंगु हो जाता है। बगला तु महादेवी सर्वतन्त्रेषु विश्रुता ब्रह्मास्त्रविद्या विख्याता, यस्या स्मरणमात्रेण शत्रुः पङ्गुर्भवेद्धवम् । तत्स्थानं तु मया प्रोक्तं सर्वकामफलप्रदम्।

बगला क्षेत्र सभी कामनाओं का फल देनेवाला है। बगला क्षेत्र की अलौकिक महिमा का बखान करते हुए स्कंदपुराण के केदारखंड में भगवान शिव ने कहा है यहां सात रात निराहार रहकर बगला देवी का मंत्र जप करने से अत्यन्त दुर्लभ आकाशचारिणी सिद्धि की प्राप्ती होती है। सभी यज्ञों में जो पुण्य प्राप्त होता है और सभी तीर्थों में जो फल प्राप्त होता है, वह फल बगला देवी के दर्शन से ही मिल जाता है।

इस वर्ष यह यात्रा 29 अगस्त से आरम्भ हुई और दो सितम्बर तक चली, इस जात्रा के पाँच पड़ावों में पहला पड़ाव पवांली कांठा, दूसरा पड़ाव राजखरक, ताली बुग्याल दिवालांच चौकी बुग्याल होते हुए विश्राम लुहारा में होता है। इस स्थान पर प्राचीन काल से माता की पूजा अर्चना होती है, तीसरे दिन माता रानी की यात्रा यहाँ से आगे बढ़कर डोली के साथ मैत कागड़ा मयेली पहुंचते है, जहां पर रात भर माता रानी की पूजा, अर्चना, हवन, यज्ञ, रात्रि जागरण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। चतुर्थ दिवस पुनः माँ के मंदिर के विग्रह के दर्शन व पूजन के बाद माता रानी की डोली से आशीष लेकर जात्रा से वापसी कर पंवाली कांठा में रात्रि विश्राम करते हैं और पंचम दिवस को यह यात्रा वापिस माँ बगलामुखी क्षेत्र बुंगली धार पहुंचती है, जहाँ रात भर भजन-कीर्तन से यहां का वातावरण बड़ा ही अद्भुत मनोरम रहता है! 

यात्रा पथ के ये तमाम पड़ाव में यहां गढ़वाल हिमालय के उच्च ऊंचाई वाले घास के सुन्दर मैदान (बुग्याल) हैं, जिनमें विभिन्न प्रकार के आकर्षक फूल, जड़ी-बूटी बहुतायत मात्रा में पाई जाती हैं! जात्रा के दौरान यहाँ से हिमालय पर्वतमाला के मनोरम दर्शनों के साथ-साथ यमुनोत्री-गंगोत्री-केदारनाथ-बदरीनाथ पर्वत शिखरों के दर्शन भी होते हैं | हिमपात के समय बर्फ से ढकी थलय सागर, मेरु, कीर्ति स्तम्भ, चोखंभा, नीलकंठ आदि पहाड़ियों के मनोरम दृश्यों को इन यात्रा पथों से देखा जा सकता है | माँ बंगलामुखी को समर्पित यह जात्रा हिमालय की सबसे कठिन ट्रेक के रूप में प्रसिद्ध है!

अत्याधुनिक तकनीक से सुसज्जित उत्तराखंड के समाचारों का एकमात्र गूगल एप फोलो करने के लिए क्लिक करें…. Mirror Uttarakhand News

( उत्तराखंड की नंबर वन न्यूज, व्यूज, राजनीति और समसामयिक विषयों की वेबसाइट मिरर उत्तराखंड डॉट कॉम से जुड़ने और इसके लगातार अपडेट पाने के लिए नीचे लाइक बटन को क्लिक करें)

Previous
Next
Loading...
Follow us on Social Media