Skip to Content

उत्तराखंड : मछली पकड़ने नदी में कूद पड़े हजारों लोग, किया एक विशेष पावडर का इस्तेमाल

उत्तराखंड : मछली पकड़ने नदी में कूद पड़े हजारों लोग, किया एक विशेष पावडर का इस्तेमाल

Closed
by June 28, 2019 All, News

एक छोटी सी पहाड़ी नदी और उसमें एक निश्चित जगह पर मछली पकड़ते हजारों लोग, ये तस्वीरें आपको हैरान जरूर कर देंगी, लेकिन ये सच है। मछली पकड़ने के लिए भी यहां एक विशेष पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है जिसे स्थानीय लोग घर पर ही तैयार करते हैं। यह परंपरा काफी पहले से चली आ रही है और साल में एक बार मेले का रूप देकर हजारों लोग मछलियों को पकड़ने के लिए नदी में कूद पड़ते हैं। शुक्रवार को उत्तराखंड की एक पहाड़ी नदी में ये दृश्य देखने लायक था।

हम बात कर रहे हैं जौनसार की छोटी-बड़ी नदियों में मनाया जाने वाले मौंण मेले की जो अब सिर्फ टि‍हरी जनपद में नैनबाग के निकट यमुना की सहायक अगलाड़ नदी में आयोजित किया जाता है। राजशाही के समय अगलाड़ नदी का मौण उत्सव ‘राजमौण उत्सव` के रूप में मनाया जाता था। उस समय इसके आयोजन की तिथि व स्थान तथा मौण उत्सव में स्थानीय ग्रामों की भागीदारी का निर्धारण टि‍हरी रि‍यासत के राजा द्वारा किया जाता था तथा कई उत्सवों में समय-समय पर टि‍हरी रि‍यासत के राजा की स्वयं रीति‍रि‍वाज के साथ इस उत्सव में शामिल होने के प्रमाण इस क्षेत्र के बुजुर्ग ग्रामीणों की लोक कथाओं व लोक गीतों में सुनाई देते हैं। मौण का शाब्दिक अर्थ उस पौधे के तने की छाल को सुखा कर तैयार किए गए बारीक चूर्ण से है जिसे पानी में डालकर मछलियों को बेहोश कर पकड़ने में किया जाता है। इस पौधे को स्थानीय भाषा में टिमरू (जैन्यो जाइल) कहते हैं। इसका प्रयोग मुख्यत: दांतों को साफ करने व औषधि‍ के रूप में भी किया जाता है। मौण से भरे थैलों व खलटों पर टिमरू के डण्डों से प्रहार कर उन्हें नदी में तोड़ा जाता है। पाउडर से मछलियां बेहोश हो जाती हैं और उसी दिशा में जन सैलाब पानी में टूट पड़ता है। ग्रामीण लोग मछलियों को पकड़कर गले में टंगी मछकण्डी में एकत्रित करते जाते हैं। इसमें अधि‍कांशत: रोहू मछली व एक अन्य सर्पाकार मछली पकड़ी जाती है। जिसे स्थानीय निवासी गूज कहते हैं। इस दिन पकड़े जाने वाली मछलियों में सबसे बड़ी मछली को गांव के मंदि‍र में चढ़ाया जाता है तथा अन्य मछलियों का इस्तेमाल भोजन में किया जाता है।

जौनपुर सहित आसपास के सैकड़ों गांवों के लोग (मैणाई) कच्ची शराब और ढोल नगाणों के साथ हाथ में टिमरू का डंडा लेकर मछली पकड़ने के लिए भिंडा, मौणकोट नामक स्थान पर अगलाड़ नदी में पहुंचे थे, इस बार टिमरू का पाउडर तैयार करने की जिम्मेदारी खिलवाड़ खत की उप पट्टी अठज्यूला के आठ गांवों कांडी मल्ली व तल्ली, सड़ब मल्ली व तल्ली, बेल परोगी तथा मेलगढ़ को दी गई थी।  मेले में शामिल लोगों ने नदी के पास टिमरू से जलदेवता की पूजा कर नृत्य भी किया। लोगों का मानना है कि टिहरी रियासत के राजा नरेंद्र शाह स्वयं अगलाड़ नदी पहुंचकर मेले का आयोजन किया करते थे और मछलियों को पकड़ते थे, तब से यह परंपरा चली आ रही है।

इस मेले की एक खास बात और है कि टिमरू के पाउडर से मछलियां बेहोश होती हैं, मरती नहीं । जिन मछलियों को लोग नहीं पकड़ सके वह बाद में नदी में सामान्य हो जाती हैं। साथ ही इस नदी का पानी जब खेतों में पहुंचता है तो खेतों में कीटनाशक के तौर पर और चूहों को दूर करने के लिए काफी कारगर सिद्ध होता है।

( उत्तराखंड के नंबर वन न्यूज, व्यूज और समसामयिक विषयों के पोर्टल मिरर उत्तराखंड से जुड़ने के लिए नीचे लाइक बटन को क्लिक करें )


Previous
Next
Loading...
Follow us on Social Media