
उत्तराखंड से देश-विदेश में खास सौगात भेज रही हैं दिव्या रावत, अपनी लैब में किया है अनोखा काम
उत्तराखंड में मौसम ने करवट ली और चारों ओर बर्फ की सफेद चादर बिछ गयी है। जिस कारण कडाके की ठंड शुरू हो चुकी है। इस कडाके की ठंड में हर कोई गर्म चाय पीना चाहता है। इस कडकडाती ठंड में मशरूम बिटिया के नाम से प्रसिद्ध दिव्या रावत ने लोगों को एक अनूठी सौगात दी है। दिव्या रावत एक कप की़ड़ाजड़ी चाय के लिए लोगों को फ्री में बेशकीमती कीड़ाजड़ी भेज रही है। दिव्या नें अपने ऑफिसियल फेसबुक एकाउंट पर लोगों को एक कप चाय हेतु कीड़ाजड़ी भेजने का पता भेजने को कहा तो देशभर के कोने कोने से और विदेशों से सैकड़ों लोगों ने उनको पत्र भेजकर इस चाय की मांग की है।
लोगों की मांग पर दिव्या एक ग्राम कीड़ाजड़ी को उनके दिये गये पते पर डाक द्वारा भेज रही है। बकौल दिव्या मैं बेहद खुश हूँ की देश के कोने कोने से लोग एक कप कीड़ाजड़ी चाय के लिए उत्साहित हैं। कीड़ाजड़ी की चाय स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है क्योंकि इससे शरीर की रोगो से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
क्यों खास है कीड़ाजड़ी!
बेशकीमती कीडाजडी में रासायनिक दृष्टि से एस्पार्टिक एसिड, ग्लूटेमिक एसिड, ग्लाईसीन जैसे महत्वपूर्ण एमीनो एसिड तथा कैल्सियम, मैग्नीशियम, सोडियम जैसे अनेक प्रकार के तत्व, अनेक प्रकार के विटामिन तथा मनुष्य शरीर के लिए अन्य उपयोगी तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। उपलब्ध जानकारियों के अनुसार यह औषधि हृदय, यकृत तथा गुर्दे संबंधी व्याधियों में उपयोगी सिद्ध हुई है। शरीर के जोड़ों में होने वाली सूजन एवं पीड़ा तथा जीर्ण रोगों जैसे अस्थमा एवं फेफड़े के रोगों मे इसका प्रयोग लाभकारी होता है। इसका प्रयोग शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाता है। उम्र के साथ-साथ बढ़ने वाली हृदय एवं मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों की कठोरता को भी यह कम करता है। खासतौर पर सर्दियों में इसकी चाय बेहद लाभदायक होती है। कुल मिलाकर औषधियों के बढ़ते हुए प्रचलन के इस दौर में कीडाजडी एक महत्वपूर्ण आयुरोधक औषधि के रुप मे देखा जा रहा है।
क्या है कीड़ाजड़ी।
गौरतलब है की देश में कीड़ाजड़ी के बारे में लोगों को तब पता लगा जब उत्तराखंड के चमोली और पिथौरागढ़ के हिमालयी बुग्यालों में बहुत ज्यादा संख्या में मानवीय हस्तक्षेप और चहल पहल देखी गई थी। जिसके बाद इस बहमूल्य कीड़ाजड़ी के बारे में जानकारी पता चल पाई थी। सामान्य तौर पर ये एक तरह का जंगली मशरूम है जो एक ख़ास कीड़े की इल्लियों यानी कैटरपिलर्स पर पनपता है। इसका वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस है। और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम हैपिलस फैब्रिकस है। स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते हैं। क्योंकि ये आधा कीड़ा है और आधा जड़ी है। चीन-तिब्बत में इसे यारशागंबू कहा जाता है। ये 3500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है। उच्च हिमालयी बुग्यालों में। जहां मई से जुलाई में जब बर्फ पिघलती है तो इसके पनपने का चक्र शुरू जाता है। ये बहुत महंगा बिकता है, अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी बहुत मांग है। यह पाउडर, कैप्सूल व चाय में उपयोग होता है। फेफड़ों और किडनी के इलाज में इसे जीवन रक्षक दवा माना गया है। साथ ही स्वास्थ्य वर्धक के रूप में भी इसका उपयोग होता है।
भारत में यह जड़ी बूटी प्रतिबंधित श्रेणी में है, इसलिए इसे चोरी-छिपे इकट्ठा किया जाता है। हिमालयी बुग्यालों में उत्पन्न होने वाली कीड़ाजड़ी के दोहन पर प्रतिबंध है, क्योंकि इसके दोहन से हिमालय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हिमालय के नोमेंस लैंड में मानवीय हस्तक्षेप से बहुमूल्य वनस्पति और जैवविवधता को खतरा उत्पन्न होता है। व्यावसायिक रूप में इसके लैब उत्पादन में कोई प्रतिबंध नहीं है। पूरे भारत में इसकी सिर्फ एक या दो प्रजाति पाई जाती है। लेकिन पूरे विश्व में 680 प्रजाति है़। उनमें से militaris लैब में उगाई जा रही है और दुनिया में उसका commercial काम होता है। दिव्या संभवतः देश की पहली महिला है जो इसे लैब में उगा रही हैं, दिव्या ने अपने अथक प्रयासों से देहरादून के मथोरावाला में अपने सौम्य फ़ूड प्राइवेट लि० की लैब में बेशकीमती कीड़ाजड़ी को उगाया है। देश के कोने कोने से लोग दिव्या की कीड़ाजड़ी लैब और इसके उत्पादन की जानकारी लेने देहरादून आते है। देहरादून के राजपुर रोड स्थित एक रेस्तराँ में कीड़ाजड़ी की चाय पीने के लिए दूर दूर से लोग हर रोज पहुंच रहे हैं ।
Sanjay Chauhan ( Journalist )
Mirror News
(लगातार हमारे अपडेट पाने के लिए नीचे हमारे Like बटन को क्लिक करें)
( अपने आर्टिकल mirroruttarakhand@gmail.com पर भेजें)