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घर से दूर रोजी-रोटी कमा रहे एक उत्तराखंडी का दर्द, पढ़िए उसकी खुद की कलम से

घर से दूर रोजी-रोटी कमा रहे एक उत्तराखंडी का दर्द, पढ़िए उसकी खुद की कलम से

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by March 11, 2019 News

उत्तराखण्ड के पहाड़ों से पलायन

साधारण तौर पर अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतू एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर रहना पलायन कहलाता हैं, लेकिन उत्तराखंड के लिए यह परिभाषा थोड़ा सी भिन्न है अपनी मूलभूत आवश्यकताओ की पूर्ति हेतू पहाड़ी या दुर्गम क्षेत्रों को छोड़कर विकसित मैदानी राज्यों की तरफ जाना पलायन है।

आज हमारे राज्य उत्तराखंड में पलायन की स्थिति बहुत ज्यादा भयावह है हमारे गाँवों के लगभग ७०% लोग देश के दूसरे राज्यों या मैदानी राज्यों की तरफ पलायन कर गए हैं, उत्तराखंड लगभग ९०% युवा रोजगार तलाश में गावों से बाहर रहते हैं, उत्तराखंड के गाँवों में आज यह स्थित है की आज गाँव में कोई युवा है ही नहीं, मैं भी उन्ही युवाओ मेँ से हूँ,मैं पलायन की विषय में अपने ही गांव का उदाहरण देना चाहूंगा, हमारे गांव से ही आज ७०% परिवार पलायन कर चुके हैं, आज हमारे गांव में एक भी युवा नहीं है जो एक दो युवा है वो भी अपने -अपने कार्यो में व्यस्त हैं और उनके बच्चे भी गांव में नहीं रहना चाहते हैं मेरे देखते-देखते ही पिछले १० साल में ही बहुत ज्यादा ही पलायन हो गया है, ऐसे में जो ३०% लोग गाँवों में रह गए है वो लोग भी गाँवों में नहीं रहना चाहते है लेकिन गांव में रहना उन लोगो की मजबूरी है,पलायन की ये स्थिति मेरे ही गांव की ही नहीं, अपितु पूरे उत्तराखंड के गाँवों की है।

उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है, ये हमारी जन्मभूमि बहुत ही पावन है वर्षो से ये पूज्यनीय रही है, यहाँ पर कई ऋषि मुनियो ने तप करके इस भूमि को पुण्य किया है इसीलिए हमारी इस जन्मभूमि को देवभूमि भी कहा जाता हैं परन्तु तमाम प्राकृतिक सुविधाएं होने के बावजूद भी कृत्रिम सुविधाओं के अभाव में लोग पलायन करने को मजबूर है। अब तो उत्तराखंड सरकार के पलायन आयोग ने भी इस बात की पुष्टि कर दी हे की उत्तराखंड से लोगों का भारी मात्रा में पलायन हो रहा है।

उत्तराखण्ड के पहाड़ों से पलायन के कारण :-

रोजगार:-पलायन का सबसे मुख्य कारण है रोजगार, हमारे उत्तराखंड के गावों में रोजगार की बहुत कमी है या कहा जाये तो रोजगार है ही नहीं, पढ़े लिखे युवाओ के लिए रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है ऐसे में लोग रोजगार की तलाश में बहार निकल गए अब उनके पास गांव जाने का समय नहीं होता है ऐसे में लोग चाहकर भी अपने गांव नहीं जा पाते, घर से बाहर दूसरे राज्यों में रहकर रोजगार करना एक मजबूरी होती है लोगों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है, आज के समय में निजी संस्थानों में भी नौकरी आसानी से नहीं मिल पाती जो अच्छे संस्थान होते हैं उनमे स्थानीय लोगो का ज्यादा प्रभाव रहता है और जहाँ कही नौकरी मिल भी जाती हैं तो वेतन और काम करने के घंटो के साथ समझौता करना पड़ता हैं मकान मालिक किराये साल दर साल बढ़ाते रहते है, अपने वेतन का लगभग २५% किराये के रूप में खर्च हो जाता है और मँहगाई भी तो हर साल बढ़ती ही जाती है जबकि वेतन इस रूप में नहीं बढ़ पाता, कम पढ़े-लिखे लोगो के लिए भी गांव मे मजदूरी तक नहीं मिल पाती और कही मजदूरी मिलती भी है तो पैसा समय से नहीं मिलता है तब ऐसी स्थिति में लोग बाहर पलायन करना ही उचित समझते है जिससे वह अपने आने वाली पीढ़ी का भविष्य बेहतर बना सके, लड़कियों के लिए रोजगार का हमारे यहाँ कोई साधन नहीं है, हमारे यहाँ की लड़किया, औरते आज बाहर शहरो मे आकर नौकरी कर कर रही है, उत्तराखण्ड से पलायन का सबसे प्रमुख कारण रोजग़ार के लिए बाहर आना है।

शिक्षा :- उत्तराखंड के गावों से हो रहे पलायन का मुख्य कारण शिक्षा है अपने बच्चों की बेहतर एवं तकनीकी शिक्षा के उद्देश्य से अधिकांश लोग गावं से पलायन कर रहे है, गावों में शिक्षा स्तर बहुत निम्न है उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था पर अपने निजी विचार साझा करना चाहूंगा, उदाहरण के तौर पर मैंने गाँव में ही रहकर अपनी शिक्षा ग्रहण की,कक्षा -१ से कक्षा -५ तक गाँव के ही प्राइमरी विद्यालय मेँ शिक्षा ली, दो और तीन गावों में एक प्राइमरी स्कूल हुआ करता था जिसमे लगभग १०० बच्चो पर एक गुरु जी यानि की हेड मास्टर साहब और एक सहायक अध्यापक/ अध्यापिका ( कभी -कभार ) हुआ करते थे जितना गुरुजी को ज्ञान होता था वो हम लोगो को पढ़ाते थे उन दिनों गाँवो के निकट निजी स्कूल बहुत कम हुआ करते थे मतलब कोई गांव के संपन्न लोग अपने बच्चो को निजी स्कूलों में पढ़ाना भी चाहे तो नहीं पढ़ा पाते थे। फिर पांचवी उत्तीर्ण करने के पश्चात् पड़ोस के दूसरे गाँव में नदी को पार करके जाना पड़ता था कक्षा ६ से हम लोगो को अँग्रेजी भाषा A B C D सिखाई जाती थी छठी उत्तीर्ण करने के पश्चात् कक्षा-९ में पढ़ने के लिए गांव से ८/ १० किमी- दूर जाना पढता था, वही दूसरे गांव में किराये का कमरा लेकर बाहरवीं तक पढ़ते थे , बाहरवीं तक जाते- जाते आधे से ज्यादा बच्चो की पढाई पूरी हो जाती थी।बारहवीं करने के पश्चात् उच्चतर शिक्षा (COLLAGE) में पढ़ने के लिए जिले में अथवा बाहर जाना पड़ता था , मतलब COLLAGE पहुँचते – पहुँचते ९०% बच्चे पढ़ना छोड़ देते थे।ऐसे में बच्चें पढ़ रहे है या क्या कर रहे हैं, माँ- पिताजी को पता नहीं चलता था क्यूँकि उनके पास अपने निजी कामो को छोड़कर हम लोगों की देखभाल करने का समय नहीं मिल पाता था ।

Bhuwan Saklani, Panipat

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