उत्तरकाशी के प्रसिद्ध विश्वनाथ और काली मंदिर की यात्रा, देवेन्द्र के साथ जानिए इस जगह को
विश्वनाथ मंदिर हिन्दू देवस्थानो में से सर्वाधिक सुप्रसिद्ध मंदिरों में से एक है | यह मंदिर उत्तरकाशी के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है |उत्तरकाशी को प्राचीन समय में विश्वनाथ की नगरी कहा जाता था एवम् कालांतर में इस स्थान को“उत्तरकाशी” कहे जाने लगा | केदारखंड और पुराणों में उत्तरकाशी के लिए ‘बाडाहाट’ शब्द का प्रयोग किया गया है और पुराणों में इसे ‘सौम्य काशी’ भी कहा गया है ।
12 ज्योतिर्लिगों में से एक उत्तराखण्ड के काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना परशुराम जी द्वारा की गई थी एवम् ज्योतिलिंग के अतर्गत मंदिर में विश्वनाथ भगवान प्रकट हुए थे | विश्वनाथ मंदिर हिंदूओं के देव भगवान शिव को समर्पित है , तथा भक्त यहां मंत्रों का सस्वर पाठ हर समय सुन सकते हैं | विश्वनाथ मंदिर आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है |
मान्यताओं के अनुसार लगभग पत्थरों के ढाँचे के रूप में इस मंदिर का निर्माण गढ़वाल नरेश प्रद्युम्न शाह ने करवाया था , बाद में उनके बेटे महाराजा सुदर्शन शाह की पत्नी महारानी कांति ने 1857 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया एवम् ऐसा भी माना जाता है कि यह मंदिर राजा ज्ञानेश्वर द्वारा बनाया गया था, जबकि भगवान शिव का त्रिशूल गूह द्वारा बनवाया गया था | विश्वनाथ मंदिर में एक आश्चर्यचकित कर देने वाला एक त्रिशूल है | उस त्रिशूल की लम्बाई 8 फूट , 9 इंच है तथा इसकी उंचाई 26 फीट है |
विश्वनाथ मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग भी उपस्थित है, जो कि 56 सेमी ऊंचा और दक्षिण की ओर झुका हुआ है | एक अन्य लोकप्रिय धार्मिक स्थल, शक्ति मंदिर , विश्वनाथ मंदिर के सामने स्थित है । उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर या वाराणसी के रामेश्वरम मंदिर में पूजा अर्चना किये बिना गंगोत्री धाम की यात्रा के अपूर्ण माने जाने की मान्यता विश्वनाथ मंदिर के महत्व को और भी अधिक बढ़ा देती है | मंदिर परिसर के गर्भगृह में देवी पारवती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है और साथ ही साथ भगवान साक्षी गोपाल और बाबा मार्कंदे को समर्पित मंदिर भी हैं |
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भगवाण शिव के वाहन “नंदी बैल” मंदिर के बाहरी कक्ष में उपस्थित है | इस पत्थर मंदिर को कत्युरी शैली में बनाया गया है | ऐसी मान्यता है कि उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन का फल वाराणसी के काशी विश्वनाथ के बराबर है | माना जाता है की कलियुग में उत्तरकाशी ही एक मात्र ऐसा तीर्थ स्थल है , जहां भगवान स्वयं स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं और ये स्वयंभू शिवलिंग काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थित है | यह मंदिर साल भर भक्तो के लिए खुला रहता है | काशी विश्वनाथ मंदिर में शिवरात्रि की रात जलता दीपक हाथ में लेकर भगवान आशुतोष की आराधना करने वाले निसंतान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है ।
पौराणिक कथाओं के अनुसार उत्तरकाशी में ही राजा भागीरथ ने तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया था कि भगवान शिव धरती पर आ रही गंगा को धारण कर लेंगे । तब से यह नगरी विश्वनाथ की नगरी कही जाने लगी और कालांतर में इसे उत्तरकाशी कहा जाने लगा । यह मंदिर उत्तरकाशी के बस स्टैण्ड से300 मीटर की दूरी पर स्थित है।
वहीं उत्तरकाशी में बाबा भोलानाथ जी द्वारा स्थापित काली मंदिर बहुत ही सिद्व , आध्यात्मिक वातावरण से परिपुर्ण है, बाबा भोलानाथ जी ने उत्तरकाशी मै लगभग तीन वर्ष कठोर तपयस्या की थी, एक दिन बीच मै वे अपने सेवक को संग लेकर महात्माओ के प्राण केन्द्र उजैली की ओर जा रहै थे, रास्ते मै पण्डा गाँव के पास सडक किनारे बाबा भोलानाथ ने एक काले विशाल पत्थर को एवं उस पर सिन्दुर से कुछ लिखा हुआ देखा, पत्थर पर चन्दन लिपा हुआ था एवं कुछ फुल चढाये हुऐ थे।
उन दिनो बाबा भोलानाथ जी मौन व्रत पर थै, बात नही करते थै।इसलिऐ सेवक की सहायता से ज्ञात हुआ कि उस अंचल के निवासी इस पत्थर को काली माई के प्रतीक के नाम से पुजते है। सेवक ने यह बताया की बंगालियो की आराध्या श्यामा माँ (काली माँ) की मुर्ति यहा स्थापित करने से कैसा रहेगा, बाबा भोलानाथ बंगाली ही थे, उनके मन मै यै बात बैठ गयी, जब काली मंदिर का सूत्रपात रखा गया, तो स्थानीय जनता बहुत ही खुश हुई।
Devendra Binwal, Mirror News, spiritualindia78@gmail.com
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