बेरोजगारी और पलायन पर उत्तराखंड के एक इंजीनियर युवा के विचार
बेरोजगारी का मतलब अगर व्यक्ति पढ़ा-लिखा हो और उसे श्रम ना मिल पाए इस स्थिति को बेरोजगारी कहते हैं , आज हम पहाड़ की बेरोजगारी की बात करेंगे । लेकिन एक कटु सत्य यह है पहाड़ी व्यक्ति को रोजगार के लिए पलायन करना पड़ रहा है , वो रुद्रपुर , दिल्ली जैसे बड़े शहरों की ओर जाने लगा है जहाँ उसकी स्थिति काफी ख़राब है ।
प्राकृतिक संसाधनों से भरा पड़ा पहाड़ तब भी इतनी बेरोजगारी शर्मनाक है , लेकिन इसके कुछ पहलू भी हैं, पहाड़ में एक ऐसे वर्ग के भी युवा हैं जो काफी गरीब तबके से , उनका गांव ऐसी जगह जिसका ना किसी ने नाम सुना हो और आना-जाना काफी मुश्किल हो , 15-20km दूर सरकारी विद्यालय से पढ़े हुए हैं और आज वो युवा वैज्ञानिक , आईएएस , सेना में अफसर और ना जाने कहाँ-२ बड़ी जगह पहुँचे हुए हैं और एक दूसरे उस वर्ग के भी हैं जो शहर के बीचो-बीच , संसाधनों से युक्त , महंगे स्कूल से पढ़े हुए घर बैठ के बेरोजगारी का राग अलाप रहे हैं । आखिर इस अंतर की वजह क्या है , क्या कभी किसी ने सोचा ?
अन्तर ये है एक वर्ग वो है , जो युवा मेहनत के समय मटर-गस्ती करता है और जब भविष्य सामने हो तो बेरोजगारी का अलाप रागता है , और दूसरा वर्ग वो है जो बचपन से मेहनत करता है , और आज देश , राज्य , मां-बाप सबका नाम आगे बढ़ा रहा है । अगर नीव अच्छी ना हो तो इमारत हमेशा गिरती है और आज के समय मे भी वही हो रहा है ।
इस स्थिति में सीधे तौर पर सरकार को गलत कहूंगा , आज के समय पर सरकार का एक ही उद्देश्य है छात्र का भविष्य व साल बर्बाद ना करें उन्हें पास कर दें लेकिन उनके इस गैर रवैये से छात्र और देश दोनो बर्बाद हो रहे हैं । पहाड़ की आज से अगर मैं 15-20 साल पहले की बात करूं तो 10वीं और 12वी की परीक्षा पास करने में 5-6 साल लगते थे और मात्र पास होना मतलब जंग जीत लेना हुआ करता था और गौर करने वाली बात ये है उस समय बेरोजगारी नाम की बीमारी किसी को पता भी नहीं थी , हाँ लेकिन उस समय जनसंख्या कम थी लेकिन सीमित लोग ही अपनी पढ़ाई पूरी कर पाते थे , जिससे मेहनत किया हुआ आदमी ही पढ़ा-लिखा कहलाता था आज के समय की तरह नहीं बिना मेहनत और आधार बनाये हुवे पढ़े-लिखे लोग । शिक्षा की क़्वालिटी अगर बेहतर हो तो काफी हद तक बेरोजगारी खत्म होगी
मनीष चंद्र सती, मैकेनिकल इंजीनियर
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