नैनीताल के पास एक शांत पर्यटन स्थल पटवाडांगर, इसे फिल्म सिटी बनाने की सोच रही है सरकार
वैसे तो लगभग सभी घुम्मकडों ने नैनीताल का भृमण किया ही होगा। लेकिन कम ही लोग जानते होंगे पटवाडांगर के बारे में। पटवाडांगर का पूरा नाम राजकीय वेक्सीन संस्थान पटवाडांगर ( State Vaccine Institute) था जो अब बदल कर जी. बी. पन्त बायोटेक्नोलॉजी (G.B.Pant Biotechnology )पटवाडांगर कर दिया गया है।
नैनीताल से 11 किमी. पहले हल्द्वानी नैनीताल रोड में बलदियाखान से 3 किमी. दूरी में स्थित है पटवाडांगर। 1903 में अंग्रेजों द्वारा इस जगह का निर्माण किया गया था। पटवाडांगर का नाम यहां बहुत संख्या में पाए जाने वाले पटवा के पेड़ ( जो एक विलुप्त प्रजाति का फूल का पेड़ है ) तथा पांगर ( बाण के वृक्षों chestnut ) के कारण है। पटवा के पेड़ आज भी वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय हैं एवं प्रतिवर्ष इनकी शोध का कार्यक्रम होता है लोकवाद के अनुसार ये पेड़ डाइनोसॉर के समय के है एवं सिर्फ यहीं के जंगलों में पाए जाते है। ये पेड़ प्रायः बरसात के समय उगते हैं फूलों की आयु और भी कम होती है।
पटवाडांगर जंगलों के बीचोंबीच स्थित है और इसकी 3 किमी की परिधि में छोटे बड़े 10 से अधिक गांव लगते हैं। यह जगह वन्य सम्पत्ति से समृद्ध है। यहाँ से आपको बरसात में वर्षा के उपरांत दूर दूर तक हल्द्वानी, कालाढूंगी, रामनगर का दृश्य मन्त्रमुग्ध कर देते है। यहाँ का सूर्यास्त आपको जन्मभर अपनी याद दिलाता रहेगा।
1903 में स्थापित करने के बाद यह चेचक व अन्य वेक्सीन के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हो गया । एक समय ऐसा था जब पूरे उत्तर भारत मे सिर्फ यहीं ( चेचक, रेबीज, टिटनेस व अन्य वेक्सीन ) बनती थीं। यहाँ लगभग 180 परिवार रहते थे और सभी पुराने उत्तरप्रदेश के विभिन्न कोनों से आकर यहाँ बस से गये। सभी के घरों के आगे से कम से कम 1 फल का पेड़ लगा हुआ था। सभी ने अपने भरसक प्रयास से इस जंगल मे बसी धरती को स्वर्ग बनाने में कभी कमी नही की । यहाँ फल व फूलों की विभिन्न प्रजातियां उपलब्ध है जो कि विभिन्न स्थानों से यहाँ लायी गयी थी।जिनमें आड़ू , पुलम, नींबू, सन्तरा, माल्टा, नाशपाती मुख्य है। इसके अलावा जंगल में भी काफल, हिंषालु, किलमौड़ा, जामुन, हरड़, शिशुण तथा अन्य जंगली फल व औषधियों के पेड़ मिलते हैं।
यहाँ छोटे बड़े 5 खेलफील्ड के साथ साथ बच्चों के लिए पार्क भी है। यहाँ काली मिट्टी के कारण यह जगह सोना उगलने के लिए जानी जाती है एक कहावत के अनुसार यहाँ चिड़िया भी बीज बो सकती है। यहां के जंगलों में आपको विभिन्न प्रकार के पेड़ देखने को मिलेंगे यहाँ जंगल में बांज से लेकर आम तक के पेड़ दिख सकते हैं यह जंगल कार्बेट की मेन परिधि में माना जाता है। जंगल एक तरफ हल्द्वानी , कालाढूंगी है तो दूसरी तरफ नैनीताल, ज्योलीकोट से लगा है।
यहाँ पर जंगल में हिरन, खरगोश, लोमड़ी, फ़्लाइंग फॉक्स, ऊदबिलाव, जंगली सुअर , विभिन्न जंगली मुर्गियां, पक्षी प्रातःकाल में देखे जा सकते हैं और अगर आपकी किस्मत अच्छी हुई तो शेर, तेंदुआ, बाघ, भालू भी देख सकते हैं। पैदल जंगल ट्रेकिंग करने वालों के लिए नैनीताल – हल्द्वानी व नैनीताल- कालाढूंगी के 2 लंबे ट्रेक हैं जो लगभग 25-30किमी. के होंगें। 2003 के संविधान के बाद पशुहत्या के द्वारा दवाइयों का उत्पादन बन्द कर दिया गया। व 2005 में अंततः इस संस्थान को बंद करके पंतनगर विश्वविद्यालय को दे दिया गया। 2007 तक सभी लोगों का स्थानांतरण कर दिया गया। पंतनगर के द्वारा यहाँ कोई खास विकास नहीं कराया गया है । अब सरकार इसे फ़िल्म सिटी बनाने पर विचार कर रही है। बलदियाखान में दो तीन उच्च गुणवत्ता के होटल मिल जाते हैं यदि आप एकांत प्रिय हैं तो यहाँ एक बार जरूर पधारे । गौरेया व घुघुती के शोर के साथ प्रातः का आनन्द लें। आज भी जब भी नैनीताल को जाते समय हल्द्वानी रोड से इसके दर्शन होते हैं तो अपना बचपन खेलता हुआ दिखता है वो छोटा सा बच्चा आज भी बरसात के पानी में छपछापता हुआ जबरदस्ती बारिश में भीगता हुआ, गर्मी में गधेरों में डूबता हुआ ( शुद्ध पानी के नाले ) , चीड़ के बीजों, काफल को बीनता हुआ, सुबह 5 बजे दौड़ता बचपन , क्रिकेट खेलता, चिड़िया की काफल पाको की गूंज पता नहीं क्या क्या किस्से कहानियां जो लेख में सीमित करना असंभव है।
Atul Naithani
Photo- Harish Kumar
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