विदेशों में भी छा रही है उत्तराखंड चाय, लेकिन चाय बागानों की संख्या धीमे बढ़ रही
जब भारत में अंग्रेजों का शासन था तब उत्तराखंड के बेरीनाग की चाय देश-विदेशों में प्रसिद्ध थी और आजादी के बाद राज्य के सभी चाय के बाग खत्म हे गए। 1996 में जब ये उत्तरप्रदेश का हिस्सा था, उस समय की सरकार ने यहां फिर से चाय के उत्पादन को शुरू करने का निर्णय लिया, अलग राज्य बनने के बाद यहां की सरकारों ने कौसानी, बेरीनाग, चमोली और चंपावत के साथ-साथ कुछ जगहों पर टी-गार्डन को प्रोत्साहन दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि आज कौसानी, बेरीनाग, चंपावत और चमोली में खूबसूरत टी-गार्डन मौजूद हैं, जो अच्छा उत्पादन कर रहे हैं, इन जगहों की ऑर्गेनिक टी की तो सीधे विदेशों में मांग है।
ये अलग बात है कि राज्य का मौसम चाय के उत्पादन के लिए सही होने के बावजूद यहां ज्यादा टी-गार्डन विकसित नहीं हो पाए हैं या उनके विकास की गति काफी धीमी है , उत्तराखंड में चाय विकास बोर्ड ने पिछले कुछ सालों में काफी मेहनत की है जिसका असर आज दिखता है लेकिन रोज़गार और आमदनी के हिसाब से अगर उत्तराखंड में टी-गार्डन विकसित करने हैं तो पूरे राज्य में मौजूद कई ऐसी जगहों पर चाय का उत्पादन आसानी से हो सकता है, वहां भी लोगों को प्रोत्साहित करना होगा , ताकि असम और दार्जिलिंग की तरह उत्तराखंड भी चाय के बल पर एक अमीर राज्य बन सके।
Aanchal Naveen Dhauni, Champawat