देहरादून में उपराष्ट्रपति, जंगल और पीपल के पेड़ को लेकर कही ये खास बातें
उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास साथ – साथ चलना चाहिए। उप राष्ट्रपति उत्तराखंड के देहरादून स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। उत्तराखंड के राज्यपाल डॉ. कृष्णकांत पाल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, केंद्रीय विज्ञान व तकनीकी, पृथ्वी विज्ञान तथा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे। उप राष्ट्रपति ने कहा कि वन प्रबंधन का मूलभूत सिद्धांत प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और इसके सतत उपयोग पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि हमें पर्यावरण अनुकूल दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है और हमें बेहतर भविष्य के लिए प्रकृति के साथ जीना सीखना चाहिए। पेड लगाना और पेडों की रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का पवित्र कर्तव्य होना चाहिए। उप राष्ट्रपति ने कहा कि वन आच्छादन को बढ़ाने के लिए राज्यों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि नीति आयोग और केन्द्र सरकार के पास अच्छे कार्य करने वाले राज्यों के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिए। वन, नदियां और प्रकृति माता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण को जन आंदोलन बनाया जाना चाहिए। उप राष्ट्रपति ने कहा कि मनुष्य और वन के बीच सहजीवन का संबंध है और यह हमारे देशवासियों के धार्मिक तथा सामाजिक – सांस्कृतिक मानसिकता के साथ गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। हाल के वर्षों में प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती मांग तथा प्रकृति के बारे में समझ की कमी के कारण यह संबंध अस्त व्यस्त हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति पारंपरिक रूप से पेडों को दिव्यता के प्रतीक के रूप में सम्मानित करती है। ‘’फिकस रैलीजियोसा’’ के नाम से जाने जाने वाले पीपल पेड़ को काटना पाप माना जाता है। उप राष्ट्रपति ने कहा कि जनजातियों तथा स्थानीय समुदायों को संरक्षण के तरीकों के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। वन्यकर्मियों को विकास के लिए सुविधा प्रदान करने वाला बनना चाहिए और इसके लिए राष्ट्रीय हित से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। वन्य कर्मियों को आम लोगों विशेषकर जनजातियों के कल्याण पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि जनजाति समुदाय अपनी आजीविका के लिए वन पर निर्भर होते हैं। वन प्रबंधन के प्रति रणनीति के बदलाव के संदर्भ में भारत ने लम्बी दूरी तय की है। पहले वन संरक्षण के नाम पर लोगों को वन से दूर रखा जाता था। अब संयुक्त वन प्रबंधन के तहत लोगों के सहयोग से वन का प्रबंधन किया जाता है।
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