Uttarakhand : 103 साल के बुजुर्ग का अकेलापन, खुद ही करवा लिया अपना पिंडदान, तेरहवीं और वार्षिक भोज
रामनगर : दुनिया में अकेलेपन का एहसास, मजबूरियां और हालात किसी भी इंसान को क्या कुछ करने पर मजबूर नहीं करते। ऐसी ही कुछ कहानी रामनगर के बंबाघेर के रहने वाले 103 वर्षीय बुजुर्ग रूप राम की भी है, जिन्होंने जिंदा रहते हुए ही अपने क्रिया कर्म के साथ ही पिंडदान, तेरहवीं और वार्षिक भोज तक लोगों को करवा दिया।
दरअसल 103 साल के रूप राम का इस दुनिया में कोई नहीं है, यही कारण है कि रूप राम ने मरने से पहले ही अपना क्रिया कर्म करने के साथ ही वे सभी रस्में पूरी कर ली हैं जो हिंदू धर्म में जरूरी होती हैं। रूप राम बताते हैं कि उनकी बेटियां हैं पर उनका कोई पता नहीं, जिसके कारण वे दुनिया में अकेले हैं और मोक्ष की आस में उन्होंने पहले ही अपना क्रिया कर्म करवा दिया है। रूप राम कहते हैं कि मैं मरने के बाद बैंड-बाजों के साथ जाना चाहता हूं, इसलिए उन्होंने बैंड वालों तक को भी पैसे दे दिए हैं, साथ ही पंचायत को भी पांच से 6 हजार दे दिया है ताकि मरने के बाद उनके लिए कफन या अन्य सामग्री लाई जा सके।
रूपराम के ऐसा करने पर पुरोहित-पंडित भी इतिहास का जिक्र करते हुए इसे सही बताते हैं। रामनगर के पंडित मोहन पांडे बताते हैं कि अपने जीवन में मोक्ष के लिए मनुष्य स्वयं की तेरहवीं कर सकता है, इससे मनुष्य को संतुष्टि होती है कि उसने अपने पाप, पुण्य कर्म से मुक्ति पाने के लिए कुछ बेहतर करने का प्रयास किया है। मरने के बाद मनुष्य को पता नहीं चलता कि उसके मोक्ष के लिए परिवार क्या कुछ कर रहा है।
बता दें कि शास्त्रों के अनुसार भी मनुष्य मोक्ष प्राप्ति के लिए अपना पिंड दान कर सकता है। मोहन पांडे ने बताया कि महाभारत में भीम ने मोक्ष के लिए पिंडदान करवाया था। कुल मिलाकर कहा जाए तो अपनों का छूटा साथ और मोक्ष की आस में 103 साल के बुजुर्ग का ये फैसला कहीं न कहीं दिल को कचोटने के साथ ही रूप राम की जिंदादिली का भी परिचय देता है।
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