पाताल में समाएगा जोशीमठ, हिंदू किंवदंतियों में है भविष्यवाणी, वैकल्पिक व्यवस्था का भी है जिक्र, हैरान कर देने वाले तथ्य पढ़िए
7 Jan. 2023. Dehradun. उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में हालात काफी चिंताजनक है, यहां लगातार जमीन में दरारें पड़ रही हैं, जमीन धंस रही है, 500 से ज्यादा घरों में दरारें आ चुकी हैं, जमीन में पड़ी दरारों से पानी निकल रहा है, लोग घबराए हुए हैं, लोगों की रातें अपने घरों में नहीं बल्कि खुले में गुजर रही हैं। यहां से गुजरने वाले बद्रीनाथ हाईवे में भी बड़ी-बड़ी दरारें आ चुकी हैं, भूगर्भ विज्ञानी और प्रशासन ऐसे में लोगों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने में जुटा हुआ है। हिंदू धर्म ग्रंथों में इस इलाके का काफी जिक्र आता है, क्योंकि जोशीमठ में ही प्रसिद्ध ज्योतिरमठ है, यहां आदि शंकराचार्य की गद्दी स्थित है, साथ ही शीतकाल में यहां भगवान बद्रीनाथ निवास करते हैं। हिंदू किंवदंतियों में अगर ध्यान दें तो इस इलाके के लुप्त होने का काफी पहले ही जिक्र किया गया है, साथ ही इस इलाके के लुप्त होने की स्थिति में वैकल्पिक व्यवस्था का भी जिक्र है।
यहां नृसिंह देवता का एक मंदिर है, कहा जाता है कि नृसिंह देवता की दाहिनी भुजा लगातार पतली होती जा रही है, ऐसा कहा जाता है कि जब यह भुजा पूरी तरह पतली होकर गिर जाएगी तो यह इलाका पाताल में समा जाएगा और लुप्त हो जाएगा। केदारखंड में इसका जिक्र किया गया है, इस इलाके से करीब 25 किलोमीटर दूर भविष्य बद्री स्थित है, कहा जाता है कि इस इलाके के लुप्त होने के बाद भविष्य बद्री में ही लोग भगवान के दर्शन कर सकेंगे।
वहीं अगर आप भविष्य बद्री से जुड़ी हुई किंवदंतियों को देखें तो उसमें कहा गया है कि भविष्य में बड़े आध्यात्मिक और प्राकृतिक बदलाव होंगे, बद्रीनाथ मार्ग पर स्थित जय और विजय नाम के दो पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ धाम का रास्ता इससे काफी दुर्गम हो जाएगा, नृसिंह मंदिर में भगवान की मूर्ति खंडित हो जाएगी, यह इलाका लुप्त हो जाएगा, तब भगवान बद्रीनाथ के दर्शन भविष्य बद्री में किया जा सकेंगे।
वहीं भविष्य बद्री के आसपास के इलाकों के लोगों का कहना है कि भविष्य बद्री में मंदिर में धीरे-धीरे भगवान बदरीनाथ की मूर्ति दृष्टिगत होने लगी है, ऐसे में लोगों का मानना है कि धीरे-धीरे वह समय नजदीक आ रहा है जिसके बारे में किंवदंतियों में भविष्यवाणी की गई है।
अगर आप इन सभी किंवदंतियों, स्कंद पुराण मानस खंड और केदारखंड में इस इलाके के बारे में कही गई बातें और मौजूद ऐतिहासिक तथ्यों की विवेचना करते हैं तो पता चलता है कि यह सभी किवदंतियां 1000 साल से 15 साल पहले तक से चली आ रही हैं।
70 के दशक में जब इस इलाके में काफी भूस्खलन और भूधंसाव सामने आने लगा तो उसके बाद जो तकनीकी सर्वे किया गया, उसमें भी यह बात साफ हुई कि यह इलाका ग्लेशियर के द्वारा लाई गई मिट्टी पर बसा हुआ है। इलाके को काफी संवेदनशील माना गया है और अंदर से धूसर माना गया है।
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