सीएम पुष्कर सिंह धामी ने पवलगढ़ में सरफेस हाइड्रो कायनेटिक परियोजना का शुभारम्भ किया, पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है परियोजना
कोटाबाग/कालाढूंगी 29 दिसम्बर 2021-मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पवलगढ़ में सरफ़ेस हाइड्रो कायनेटिक परियोजना का शुभारम्भ किया। यह परियोजना पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विकास खण्ड कोटाबाग के पवलगढ में कहा कि देव भूमि उत्तराखंड सम्पूर्ण विश्व में अपने परम पावन चार धाम, माँ गंगा, जिम कॉर्बेट तथा हमारे राज्य की विशिष्ठ परम्पराओं, धार्मिक संस्कृति के लिए जाना जाता है। उन्होने कहा कि इस कार्यक्रम के बाद, उत्तराखंड सम्पूर्ण विश्व में पूर्ण स्वदेशी सरफ़ेस हाइड्रो कायनेटिक टरबाइन तकनीक का प्रथम उपयोगकर्ता के रूप में भी जाना जाएगा जो की मेरे साथ-साथ समस्त उत्तराखंडियों के लिए एक गर्व का विषय है। आज रामनगर वन प्रभाग में ऊर्जा उत्पादन की जो तकनीक संचालित हो रही है वो 100 प्रतिशत पर्यावरण प्रदूषण मुक्त है तथा छोटी से छोटी पहाड़ी गूल से लेकर उत्तराखंड से निकलने वाली बड़ी से बड़ी नदियों से बिना कोई बांध बनाए या पानी को रोके चौबीसों घंटे, सातों दिन, बारह महीने सतत विद्युत् उत्पादन, न्यूनतम लागत में करने में सक्षम है। उन्होने कहा कि मुझे बताया गया है कि मेकलेक पिछले 8 वर्षों से उत्तराखंड में कार्यरत है एंव उनके अनुसार उत्तराखंड की नदियों तथा प्रवाहित जल धाराओं से लगभग 1500 मेगावाट विद्युत का उत्पादन उनके द्वारा निर्मित स्वदेशी सरफ़ेस हाइड्रो कायनेटिक तकनीक के माध्यम से किया जा सकता है क्योकि भारत की अधिकांश बारहमासी नदियों का उद्गम उत्तराखंड से ही होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उतराखंड सरकार ने युवाओं को स्वरोज़गार के लिए प्रेरित करने का हर सम्भव प्रयास किया है और ऐसी अनेकों अनुकरणीय योजनाओं का आरंभ भारम्भ किया है उसी के परिणाम स्वरूप उत्तराखंड का युवा आज कुछ अलग करने के जज़्बे से मेहनत कर रहा है जिसका ही एक जीवंत उदाहरण आज हमारे बीच में है। उन्होने कहा कि 15 किलोवाट विद्युत उत्पादन की सरफ़ेस हाइड्रो कायनेटिक परियोजना जिसका संचालन पवलगढ़ के ऐतिहासिक 111 वर्ष पुराने वन विश्राम भवन के प्रांगण में हुआ है, यह कोई साधारण जल विद्युत परियोजना का आरंभ मात्र नहीं है, यह देश के दो युवा वैज्ञानिको नारायण तथा बलराम भारद्वाज की लगभग दस वर्षों के अथक परिश्रम से निर्मित पूर्णतः स्वदेशी तकनीक के माध्यम से नवीनिकरनिय ऊर्जा के क्षेत्र में एक नए युग का आग़ाज़ है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि वन विभाग उत्तराखंड सरकार के सहयोग से प्रारम्भ हुआ यह नवीन ऊर्जा का युग यहाँ रुकने वाला नहीं है। देश के हर राज्य के साथ -साथ सम्पूर्ण विश्व की सरकारें उत्तराखंड सरकार की इस पहल का अनुसरण करते हुए बिना किसी पर्यावरण प्रदूषण तथा नदियों एंव वन्य जीवन को बचाते हुए इस स्वदेशी तकनीक का उपयोग कर 100 प्रतिशत ग्रीन एनर्जी उत्पादित करने की योजना पर कार्य प्रारम्भ करेगी। उन्होने कहा कि पवलगढ़ में ही देख लीजिए, यह जो छोटी सी गूल यहाँ से बैल पड़ाव जा रही है ना जाने कितने किसानो के खेतों से हो कर जा रही है। अगर ऐसी छोटी-छोटी टरबाइन उस हर किसान को दे दी जाए जिसका खेत ऐसी नहर या नदी के आस-पास है तो में आशा करता हूँ वो हर किसान ऊर्जा के लिए आत्मनिर्भर हो जाएगा। हमारी सरकार, देश के यशस्वी प्रधान सेवक नरेंद्र भाई मोदी जी के “सबका साथ-सबका विकास” के सपने को साकार करने का हर संभाव प्रयास उत्तराखंड की जनता के लिए करती आयी है और आगे भी करती रहेगी।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि उत्तराखंड सरकार उत्तराखंड के मेरे किसान भाइयों तथा उन सभी पहाड़ी गावों के लिए इस स्वदेशी टरबाइन तकनीक का उपयोग कर एक ऐसी ऐतिहासिक योजना ले कर आएगी जिस से हर किसान के पास खुद का पावर प्लांट होगा और “हर किसान को पानी, हर घर को बिजली” उत्तराखंड राज्य की स्थापना से ले कर आज तक की सबसे कम दरों पर उपलब्ध होगा। मेरा मानना है कि सस्ती तथा अनवरत ऊर्जा की उपलब्धता हर क्षेत्र के विकास के लिए सबसे अहम संसाधन है। इसलिए आगामी योजनाओं में हमारी सरकार पहाड़ी गावों में भी नवीन उद्योगों का मार्ग प्रशस्त करने और रोज़गार के नवीन अवसर उत्पन्न करने के लिए “हर उद्यम के लिए सुगम ऊर्जा” योजना का प्रारूप तैयार करने के लिए कार्य करेगी जिसमें इस स्वदेशी तकनीक का भी समुचित उपयोग किया जाएगा। उन्होने कहा कि इस स्वदेशी तकनीक से उत्तराखंड वन विभाग को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक डॉ पराग मधुकर धकाते की पहल का में स्वागत करता हूँ ओर आशा करता हूँ कि वन विभाग उत्तराखंड इस तकनीक का उपयोग वन विभाग के अंतर्गत उन सभी स्थानो पर करेगा जहां इस तरह की बहती हुई जल धारायें उपलब्ध है। मेने ये अनुभव किया है कि उत्तराखंड के वनों में लगने वाली आग का एक बड़ा कारण जंगलों से हो कर जाने वाली बिजली की खुली तारों से हुए शॉर्ट सर्किट भी हो सकता है। आस पास की छोटी बड़ी नदियों नहरों से स्थानीय रूप से ही पर्यावरण तथा वन्य जीवों को बिना कोई नुक़सान पहुँचाये विद्युत उत्पादन की उत्तराखंड वन विभाग की यह पहल पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करेगी और जंगलों से जाने वाली बिजली की तारों का उपयोग सीमित करेगी जिस से वन विभाग का राजस्व बचेगा, जंगल आग से बचेंगे और जंगली जानवर तथा वन कर्मी करेंट लगने के ख़तरे से बचेंगे। इस ऐतिहासिक विश्व प्रथम स्वदेशी सूक्ष्म जल विद्युत परियोजना को मूर्तरूप देने की दिशा में अपना सहयोग देने के लिए में समस्त मेकलेक टीम के साथ-साथ मुख्य वन संरक्षक (कुमाऊँ) तेजस्विनी पाटिल, वन संरक्षक (हल्द्वानी सर्कल) दीपचंद आर्या, प्रभागिया वन अधिकारी चंद्र शेखर जोशी, रेंज अधिकारी (देचौरी रेंज) ललित जोशी एंव समस्त वन कर्मियों को बधाई देता हूँ। जनप्रतिनिधियों व जनता द्वारा मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिए गए। इसके उपरान्त मुख्यमंत्री द्वारा विश्राम गृह लाइब्रेरी का भी निरीक्षण किया।
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