उत्तराखंड राज्य आंदोलन और खटीमा गोलीकांड, 1 सितंबर 1994, जब पुलिस की बर्बरता ने आग में पेट्रोल का काम किया, पढ़िए क्या हुआ था उस दिन
1 September. 2023. Nainital. उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड राज्य को बने कई साल हो चुके हैं, तबसे राज्य की नदियों और नालों में न जाने कितना पानी बह चुका है, राज्य अपनी अलग पहचान भी बना चुका है, लेकिन इस अलग राज्य के पीछे एक सशक्त आंदोलन और कई लोगों का बलिदान शामिल है! आज ही के दिन 1 सितंबर 1994 को खटीमा में पुलिस के द्वारा आंदोलनकारियों पर गोलियां बरसाई गई थी, इस घटना ने उत्तराखंड आंदोलन कि आग में पेट्रोल का काम किया! आइए आपको बता दें कि क्या हुआ था उस दिन…
एक सितम्बर 1994 को उत्तराखंड में काले दिन के रूप में याद किया जाता है। हर उत्तराखंडी के जेहन में आज भी वर्ष 1994 के सितंबर महीने की पहली तारीख का वो मंजर ताजा है जब उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर सुबह से हजारों की संख्या में लोग खटीमा की सड़कों पर आ गए थे। इस दौरान ऐतिहासिक रामलीला मैदान में जनसभा हुई, जिसमें बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक शामिल थे। उनकी शांतिपूर्ण आवाज दबाने के लिए पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार करते हुए निहत्थे उत्तराखंडियों पर गोली चलाई थी, जिसमें सात राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे, जबकि कई लोग घायल हुए थे। जिसके बाद ही उत्तराखंड आंदोलन ने रफ़्तार पकड़ी और इसी के परिणाम स्वरुप अगले दिन यानी दो सितम्बर को मसूरी में गोली काण्ड की पुनरावृति हुई और यह आंदोलन तब एक बड़े जन आंदोलन के रूप में बदल गया।
जनसभा के बाद दोपहर का समय रहा होगा, सभी लोग जुलूस की शक्ल में शांतिपूर्वक तरीके से मुख्य बाजारों से गुजर रहे थे। जब आंदोलनकारी कंजाबाग तिराहे से लौट रहे थे तभी पुलिस कर्मियों ने पहले पथराव किया, फिर पानी की बौछार करते हुए रबड़ की गोलियां चला दीं। उस समय भी जुलूस में शामिल आंदोलनकारी संयम बरतने की अपील करते रहे। इसी बीच अचानक पुलिस ने बिना चेतावनी दिए अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, जिसके परिणामस्वरूप प्रताप सिंह मनोला, धर्मानंद भट्ट, भगवान सिंह सिरौला, गोपी चंद, रामपाल, परमजीत और सलीम शहीद हो गए और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। उस घटना के करीब छह साल बाद राज्य आंदोलकारियों का सपना पूरा हुआ और उत्तर प्रदेश से अलग होकर नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड के रूप में नया राज्य अस्तित्व में आया। (तस्वीर के लिए यहां इस घटना के दूसरे दिन प्रकाशित एक अखबार की कटिंग का उपयोग किया गया है)
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