चौंकाने वाला खुलासा : पहाड़ की ये हकीकत हर उत्तराखंडी जान ले, इससे तो उत्तर प्रदेश में ही बने रहना अच्छा था
एक लंबे आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश से अलग कर उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया, इसका कारण था राज्य की कठिन भौगोलिक परिस्थिति, विरल जनसंख्या घनत्व और विकास में ज्यादा संसाधनों की जरूरत। लेकिन आज यहां विकास के नाम पर राज्य के मैदानी इलाकों को ही तरजीह मिल रही है इसे खुद राज्य सरकार की एक रिपोर्ट परिभाषित कर रही है।
दैनिक जागरण अखबार की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग द्वारा ग्राम्य विकास कार्यक्रमों के सामाजिक एवं आर्थिक आकलन को लेकर कराए गए सर्वे पर गौर करें तो पहाड़ की कई ग्राम पंचायतों को सालभर में 10 लाख रुपये तक का बजट भी नहीं मिल पा रहा। यही नहीं, मनरेगा, आवास योजना, सड़क से जुड़े बिंदुओं पर भी कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। सूत्रों के मुताबिक सर्वे की प्रारंभिक रिपोर्ट में बजट आवंटन को लेकर सामने आ रही तस्वीर से आयोग भी हैरत मे है। ग्राम पंचायतों को बजट आवंटन के मानकों में जनसंख्या को 60 फीसद, क्षेत्रफल व दुर्गम क्षेत्र को 20-20 फीसद वेटेज देना शामिल है। ऐसे में मैदानी क्षेत्रों की अधिक आबादी वाली कई पंचायतों को साल में एक-एक करोड़ तक की राशि मिल रही है, जबकि पहाड़ में कई जगह 10 लाख रुपये सालाना भी नहीं। 2016-17 से यह स्थिति बनी हुई है। ऐसे में पहाड़ के गांवों में मुश्किलें आ रही हैं।
आपको बता दें कि पर्वतीय क्षेत्रों में कुल 6830 तो मैदानी क्षेत्रों में 932 ग्राम पंचायतें हैं। लेकिन पर्वतीय क्षेत्रों से लगातार हो रहे पलायन के कारण विकास के लिए उचित धन नहीं मिल पा रहा, जबकि इनकी अपेक्षा मैदानी इलाकों में अधिक जनसंख्या होने के कारण विकास के लिए काफी धन उपलब्ध हो रहा है। असल में जरूरत ये थी कि पर्वतीय क्षेत्रों की कठिन भौगोलिक-सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति को देखते हुए यहां ज्यादा धन उपलब्ध कराया जाता। कुछ यही हाल पिछले कुछ सालों में परिसीमन के बाद देखा गया, राज्य के मैदानी इलाकों में विधानसभा की सीटें अधिक जनसंख्या होने के कारण पर्वतीय इलाकों से ज्यादा हो गई । ऐसे में अलग उत्तराखंड राज्य बनाने का मकसद कहीं भी परिभाषित नहीं हो रहा है। सर्वे में यह भी सामने आया है कि मनरेगा जैसी योजना में 55% के करीब महिलाएं हैं तब भी महिलाओं की आर्थिक स्थिति नहीं सुधरी है, आवास योजना में भी पहाड़ में जो आवास बनाए गए हैं उनमें अनुसूचित जाति के लोग तो रह रहे हैं लेकिन बाकी लोग इन आवासों का उपयोग भी नहीं कर रहे । इस तरह के कई तथ्य हैं जो अभी धीरे-धीरे मीडिया के माध्यम से सामने आ रहे हैं। जल्द ही इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाएगा और सूत्रों का कहना है कि रिपोर्ट में उत्तराखंड में ग्राम पंचायतों और लोगों की आर्थिक सामाजिक स्थिति को लेकर कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आने वाले हैं।
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Mirror News