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पहाड़ की बेटी किसी से कम नहीं, रोशनी चौहान पूरी दुनिया को दिखा रही है एक नई राह

पहाड़ की बेटी किसी से कम नहीं, रोशनी चौहान पूरी दुनिया को दिखा रही है एक नई राह

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by April 13, 2019 All, News

आजकल चैत्र नवरात्रि चल रहे है। नवरात्रि का अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि के अवसर पर इस बार हम लगातार आपको उत्तराखंड की है ऐसी बेटियों से रूबरू करवा रहे हैं जिन्होंने अपने कार्यों, संघर्षों और जिजीविषा से समाज के लिए एक मिशाल पेश की है। आज आपको रूबरू करवाते हैं स्वरोजगार के जरिए पलायन रोकने और रोजगार सृजन की उम्मीदों को पंख लगाती केदार घाटी के कविल्ठा (कालीमठ) गांव की रोशनी चौहान से…

जिस उम्र में देश का युवा अपने बेहतर भविष्य के लिए ऐशोआराम और शानो शौकत की जिंदगी के सपने बुनने लगता है। माॅल, मेट्रो और गेजेट की दुनिया में रम जाना चाहता है। ठीक इसके विपरीत मध्य हिमालय में केदार घाटी के प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां कालीमठ की थाती में बसे कविल्ठा गाँव की 22 वर्षीय रोशनी चौहान आज पलायन के कारण वीरान और खंडर हो चुके पहाड के गांवो की खोई रौनक को वापस लानें के सपनें को हकीकत में बदलने के सपनें को स्वरोजगार और ट्रैकिंग के जरिए साकार करने में लगी हुई है। आंकणो की बात करें तो बीते 10 सालों में गढ़वाल के पौडी, रूद्रप्रयाग, चमोली में 300 से अधिक गाँव पूरी तरह से खाली हो गयें हैं। बेहतर भविष्य और रोजगार के लिए सबसे ज्यादा पलायन हुआ है। आज पहाड़ के गाँवों को पलायन रूपी दानव की नजर लग चुकी है। इन सबके बीच केदार घाटी की बेटी रोशनी चौहान की हिम्मत और हौंसलो की दाद तो देनी ही होगी। आखिर कुछ न कुछ खास बात तो होगी रोशनी में वरना इस उम्र में यों ही कोई अपने लिए पहाड़ के खाली गांवो की खुशियाँ वापस लौटाने के सपने न बुनती।

कविल्ठा गाँव में सुशीला देवी चौहान और प्रदीप सिंह चौहान के घर जन्मी रोशनी चौहान को अपने पहाड़ के प्रति लगाव बचपन से ही रहा है। पांचवी तक की पढ़ाई प्राथमिक विद्यालय कविल्ठा से पूरी की जबकि 12 वीं तक की पढ़ाई राजकीय इंटर काॅलेज कोटमा से ग्रहण करनें के पश्चात रोशनी वर्तमान में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय अगस्तयमुनि से स्नातक अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही है।

मशरूम बिटिया ‘दिव्या रावत’ नें दिलाई ट्रेनिंग, परिवार और गुरूजनो से मिला सहयोग!

कालीमठ घाटी और आपदा एक दूसरे के पर्यावाची है। बीते तीन दशकों के दौरान आपदा नें कालीमठ घाटी का भूगोल तक बदल कर रख दिया है। 2013 आपदा के बाद तो इस घाटी से पलायन भी तेजी से बढा। परिणामस्वरूप गाँव के गांव खाली हो गये। ये केवल कालीमठ घाटी तक ही सीमित नहीं था अपितु पूरी केदारघाटी सहित अलकनंदा घाटी में भी इसके बाद पलायन तेजी से बढा। आपदा के बाद रिवर्स माइग्रेशन पर कार्य कर रही उत्तराखंड की मशरूम बिटिया दिव्या रावत अपनी टीम के साथ कविल्ठा गाँव पहुंची जहां उन्होंने ग्रामीणों को मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग दी। दिव्या नें इस दौरान रोशनी को भी मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग दी और इसके द्वारा स्वरोजगार को बढावा देने के गुरु भी सिखाये। रोशनी बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थी तो उसने घरवालों को मशरूम उत्पादन करने की बात रखी। घरवालों के सहयोग और गुरूजनो के हौंसलाफजाई नें रोशनी की उम्मीदों को पंख लगा दिये। महज 3 हजार से शुरू हुआ रोशनी का मशरूम यूनिट आज हर पैदावार पर 30 हजार का शुद्ध मुनाफा देता है।

बागवानी, फूलों की खेती और ट्रैकिंग को भी बनाया स्वरोजगार का जरिया!

रोशनी को बचपन से ही पहाड़ आकर्षित करते रहे है। इसलिए उसने इन पहाड़ों में रहकर इन्हें रोजगार का जरिया बनाने की ठानी। रोशनी नें मसूरी से ट्रैक लीडर कोर्स भी किया है। पढाई के साथ साथ वो खाली समय न केवल ट्रैकिंग करवाती है अपितु बागवानी और फूलों की खेती भी करती है जिससे अच्छी आमदनी भी हो जाती है।

महानतम कवि कालीदास की जन्मस्थली है कविल्ठा गाँव…..

माना जाता है कि कविल्ठा गाँव में ही महानतम कवि कालीदास का जन्म हुआ था। तब गढ़वाल केदारखंड और कुमाऊ मानसखंड से नामित था। इनका जन्म ३३५ इसवी में मन्दाकिनी क्षेत्र में गुप्तकाशी के कालीमठ के आसपास स्थित “कविल्ठा” ग्राम में हुआ था। इनके बाल्यकाल का नाम बांदरु था। इनकी माता का नाम पारवती तथा पिता का नाम परामेश्वारानंद था। पारिवारिक कारणों से ये केदारखंड से बहुत दूर निकल गए। भटकते भटकते काफी समय के उपरांत वे राजस्थान के पुष्कर क्षेत्र पहुंचे और एक मंदिर में शरण ली। यहाँ उन्हने अपनी रचनाओ को गायनशैली में सुनाकर स्थानीय लगो को बहुत प्रभावित किया क्षेत्र के लोग उनकी नई नई रचनाओ को सुनने के लिए सदैव लालायित रहते थे। वे अपनी कालजयी रचनाओ में लीन हो गये। समयोपरांत तत्कालीन महाराजा विक्रमादित्य को इस महान कवि की अति विशिष्ठ रचनाओ और विद्वता की प्रसिद्धि पहुची तो उन्होंने इन्हे सआदर राजदरबार बुलावा भेजा। महाराजा विक्रमादित्य इनकी रचनाओ से इतने प्रभावित हुए की उन्होेने कालिदास को राज कवि घोषित कर दिया। महाकवि कालीदास की महानतम रचनाये (काव्य ग्रंथ )१) मेघदूतम २) कुमारसंभव ३) रघुवंशम ४) विक्रमोवर्शियम ५) अभिज्ञान सकुंतलम है। कालीदास के जन्म को लेकर लोगों में जरूर मतभेद है।

रोशनी से पलायन और ट्रैकिंग पर हुई लंबी गुफ्तगु पर रोशनी नें बताया की कुछ अलग करने का सपना तो मेरा बचपन से ही था। मैं पलायन के कारण अपने पहाड़ों के खाली गांवो और उत्तराखंड के लिए कुछ करना चाहती थी। जिसकी शुरुआत मैंने खुद के गाँव कविल्ठा से की। मैं यहाँ पर मशरूम उत्पादन करती हूँ और बागवानी, फूलों की खेती भी करती है जिससे अच्छी आमदनी हो जाती है। वहीं पढ़ाई के बाद खाली समय में ट्रैकिंग भी कराती हूँ। मैंने कई ग्रुपों को चंद्रशिला, चोपता, तुंगनाथ, चौमासी, केदारनाथ, देवरियाताल, मद्दमहेश्वर सहित अन्य स्थानों की ट्रैकिंग करवायी है। मैंने मसूरी से ट्रैक लीडरशीप कोर्स भी किया है। मैं चाहती हूँ कि लोग वापस अपने पहाड और गाँव लौटे। गाँव की रौनक वापस लौट जाये। लोगों को अपने ही घर में रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें। अभी मैंने अपनी मंजिल की ओर पहला कदम बढ़ाया है। अभी तो मंजिल कोसों दूर है। मुझे पूरा विश्वास है कि एक दिन मेरा सपना जरुर पूरा होगा। मुझे ये देखकर बहुत दुःख होता है कि पूरी दुनिया के लोग पहाड़ों का रूख कर रहे है और हम लोग पहाड़ के इस अनमोल खजाने को छोड़कर जा रहें हैं। हमें इस परिपाटी को बदलना होगा। अपने ऊपर भरोसा करना होगा। पहाड़ की माटी में भी सोना उगाया जा सकता है।

वास्तव मे देखा जाय तो पहाडो से होते बदस्तूर पलायन नें पहाड़ के गाँवों को वीरान कर दिया है। बेहतर भविष्य और रोजगार के लिए हर दिन औसतन लगभग 37 लोग पहाड़ को छोड़ रहे है। ऐसे मे रोशनी चौहान का अपने पहाड़ के प्रति लगाव और कुछ करने की ललक उन्हें भीड़ से इतर अलग कतार में खड़ा करता है। रोशनी न केवल स्वरोजगार को बढ़ावा दे रही है अपितु पर्यावरण संरक्षण, स्वच्छता अभियान, बेटी बचाओ, बेटी पढाओ के जरिए समाज को जागरूक करने का नेक कार्य कर रही है। जरूरत है ऐसे युवाओं को प्रोत्साहित करने की ताकि अन्य लोग भी इनसे प्रेरणा ले सके।

इस लेख के जरिए केदार घाटी की बेटी रोशनी चौहान को उनके हौंसलो, सोच, माटी के प्रति लगाव और स्वरोजगार के जरिये पलायन रोकने व रोजगार सृजन की उनकी सराहनीय पहल को एक छोटी सी भेंट। भले ही रोशनी के मंजिल के सफर का अभी ये पहला पड़ाव है लेकिन आशा और उम्मीद करते है कि आने वाले दिनों में ‘उम्मीदों की रोशनी’ पूरे प्रदेश ही नहीं अपितु देश में भी अपनी चमक बिखेरेगी…..

Sanjay Chauhan, Sr journalist

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