गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक बारूद के ढेर पर बैठा है उत्तराखंड, कभी भी आ सकती है त्रासदी
उत्तराखंड में कभी भी आठ रिक्टर से ज्यादा का विनाशकारी भूकंप आ सकता है। राज्य की जमीन के नीचे 90 से 95 प्रतिशत तक भूकंपीय ऊर्जा जमा है, जो कभी भी बड़े भूकंप के रूप में बाहर आ सकती है। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के साथ ही वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के शोध में इसकी पुष्टि हुई है। अब 22 अप्रैल को हिमाचल के मंडी में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हो रहा है। इसमें दुनियाभर के भूकंप विशेषज्ञ इस बात पर मंथन करेंगे कि इस आपदा से कैसे निपटा जाये। इस सम्मेलन में वाडिया संस्थान से भी वैज्ञानिक शिरकत करेंगे।
हिमालय रेंज से लगते देश भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाते हैं, क्योंकि इंडियन प्लेट और यूरेशिया प्लेट दोनों एक-दूसरे से नीचे खिसक रही हैं। लिहाजा, हर दिन कहीं न कहीं छोटे भूकंप आते रहते हैं। लेकिन जब इन दोनों प्लेटों को टकराने के लिए ज्यादा गैप मिल जाता है तो टकराहट जोरदार होती है जो बेहद तेज कंपन (उदाहरण नेपाल भूकंप) पैदा करती है। लेकिन बड़े भूकंपों से पहले छोटी टकराहट होती है। जो रिक्टर एक से तीन तक के भूकंप लाती हैं। अभी तक वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान की मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट ने ऐसे सूक्ष्म भूकंप को मॉनिटर करने के लिए उत्तराखंड और हिमाचल से लगते हिमालयी क्षेत्रों में सिस्मोग्राफ और एक्सलरोग्राफ उपकरण लगाये थे। इन उपकरणों से मिले संकेतों के आधार पर वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट तैयार की है। उन्होंने कहा कि छोटे भूकंप इस बात का भी संकेत होते हैं कि भूगर्भीय प्लेटों में तनाव की स्थिति है। शोध में सामने आया कि देहरादून से टनकपुर के बीच करीब 250 किलोमीटर क्षेत्रफल भूकंप का लॉक्ड जोन बन गया है। इस क्षेत्र की भूमि लगातार सिकुड़ती जा रही है और धरती के सिकुड़ने की यह दर सालाना 18 मिलीमीटर प्रति वर्ष है। पूरे भूभाग में भूकंपीय ऊर्जा संचित हो रही है।
अभी तक ये आए बड़े भूकंप
उत्तराखंड में बड़ा भूकंप 1334 और 1505 में आ चुका है जबकि 1905 में हिमाचल के कांगड़ा में आये 7.8 रिक्टर के भूकंप के बाद उत्तरी भारत में कोई ऐसा भूकंप नहीं आया है, जिससे जमीन के नीचे की ऊर्जा बाहर निकली हो। लिहाजा, जमीन के भीतर, खासकर उत्तराखंड में जमीन के नीचे 95 प्रतिशत तक ऊर्जा इकट्ठी हो चुकी है। ये कभी भी बाहर निकल सकती है। नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के निदेशक डा विनीत गहलोत भी अपनी रिपोर्ट में इसकी पुष्टि कर चुके हैं।
क्या है बचाव की रणनीति
वैज्ञानिक बताते हैं कि उत्तराखंड घरों और अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठानों का निर्माण भूकंप रोधी होना चाहिये। इसके साथ ही हर गांव में बड़ा स्टोर बनाना चाहिये, जिसमें कई दिनों का अनाज और अन्य साजोसामान कई दिनों तक के लिये सुरक्षित रखा जा सके। असल में, भूकंप आने पर जानमाल का काफी नुकसान होता है। लेकिन उसके बाद सड़कें ढह जाने से राहत कार्य और खद्यान्न संकट भी होता है। News Source – livehindustan.com
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