उत्तराखंड में सरकार की निगरानी में चल रही हैंं जहर की मशीनें, नेताओं को कोई चिंता नहीं है
उत्तराखंड में हर साल लाखों सैलानी यहां की साफ आबो-हवा का आनंद लेने पहुंचते हैं, लेकिन नैनीताल जिले में रहने वाले लाखों लोग इस साफ हवा-पानी से महरूम हैं। हाईकोर्ट के सालों पुराने निर्णय के बावजूद इन लोगों को साफ हवा नसीब नहीं हो पा रही है, देहरादून से खनन विभाग के प्रमुख सचिव आनंद बर्द्धन द्वारा जारी चिठ्ठी एक तरफ हल्द्वानी और लालकुआं के आबादी क्षेत्रों में लगे स्टोन क्रशर के लिए वरदान है तो वहीं दूसरी तरफ इन स्टोन क्रशरों के करीब रहने वाली लाखों की आबादी के लिए मौत की मीठी गोली भी है। प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी नियमों को ताक पर रखने वाले ये स्टोन क्रशर अगले तीन साल तक यूं ही चलते रहेंगे क्योंकि सरकार ने इन्हें अभयदान दे दिया है।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने साल 2010 में राज्य सरकार को आबादी क्षेत्रों में लगे स्टोन क्रशर एक समय सीमा के भीतर शिफ्ट करने को कहा था, लेकिन अदालत के आदेश के आठ साल बीत जाने के बाद भी कोई स्टोन क्रशर शिफ्ट नहीं किया गया। पिछले आठ सालों में इन स्टोन क्रशर्स से उठने वाली धूल से कई लोग काल के मुंह में समा गए और कई तैयारी में हैं।
हाईकोर्ट के अधिवक्ता दुष्यंत मेनाली ने कहा कि सरकार ने स्टोन क्रशरों को आबादी वाले क्षेत्रों से शिफ्ट करने के बजाए उन्हें लगातार एक्सटेंशन दिया, बार – बार ये कारण दिया गया कि इन्हें शिफ्ट करने के लिए अभी और समय की जरूरत है। इसी दौरान सरकार ने उन्हें और तीन साल का एक्सटेंशन दे दिया, उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के ऑर्डर की अनदेखी करते हुए स्टोन क्रशरों को 11 बार एक्सटेंशन दिया गया है।
वहीं वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. हरीश बिष्ट ने कहा कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से मानसिक बीमारी भी हो सकती है, उन्होंने कहा कि इन स्टोन क्रशरों की वजह से यहां लोगों को चर्म से जुड़ी बीमारी होने लगी है, अस्थमा जैसी बीमारी बच्चों से लेकर बड़ों को होने लगी है, उन्होंने कहा कि इन स्टोन क्रशरों से फैलने वाला प्रदूषण ज्यादा घातक है।
साभार ntinews.com
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