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दून मेट्रो रेल परियोजना ठंडे बस्ते की ओर, सरकार नहीं लगती है गंभीर

दून मेट्रो रेल परियोजना ठंडे बस्ते की ओर, सरकार नहीं लगती है गंभीर

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by November 27, 2018 News

देहरादून। दून मेट्रो रेल परियोजना (एलआरटीएस यानी लाइट रेल ट्रांजिट सिस्टम) की डीपीआर स्वीकृत होने से पहले ही परियोजना हिचकोले खाने लगी है। एलआरटीएस को लेकर लंबी-चौड़ी कसरत की जा चुकी है।

उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन और दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के अधिकारी जर्मनी का दौरा कर चुके हैं और इसके बाद प्रदेश सरकार की एक टीम लंदन-जर्मनी का भ्रमण करके आ चुकी है। इस सबके बाद अब शासन का नजरिया परियोजना को लेकर बदलता दिख रहा है। यह बात निकलकर आ रही है कि मुख्य सचिव दून में रोपवे संचालित करने के पक्ष में हैं, जबकि विशेषज्ञ यहां के लिए लाइट रेल ट्रांजिट सिस्टम को ही मुफीद मान रहे हैं।

मेट्रो रेल परियोजना के तहत एलआरटीएस की डीपीआर तैयार करने के बाद उसकी संशोधित डीपीआर भी तैयार की गई है, जिसे दिसंबर 2017 में केंद्र सरकार को भी भेज दिया गया था। हालांकि परियोजना की डीपीआर को अंतिम स्वीकृति से पहले दूसरे देशों में इसके संचालन के तौर-तरीकों को समझने का निर्णय लिया गया था। अंतिम विदेश दौरों की ही बात करें तो अगस्त 2018 में शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक की अध्यक्षता में एक दल ने लंदन व जर्मनी का दौरा किया था।

दल ने सितंबर 2018 में इसकी रिपोर्ट भी शासन को सौंप दी और एलआरटीएस को दून के लिए बेहतर विकल्प बताया। हालांकि इस बीच आयोजित विभिन्न बैठकों में मुख्य सचिव उत्पल कुमार ने इस बात पर बल देकर विशेषज्ञों के सामने असमंजस वाली स्थिति पैदा कर दी कि दून के लिए रोपवे सिस्टम अधिक बेहतर है। फिलहाल गेंद शासन के ही पाले में है और उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के अधिकारी इंतजार में हैं कि वहां से किस तरह के दिशा-निर्देश प्राप्त होते हैं।

मोबिलिटी प्लान में भी एलआरटीएस को बढ़त

वर्ष 2017 के अंत में केंद्र सरकार ने निर्देश दिए थे कि सार्वजनिक परिवहन की किसी भी बड़ी परियोजना पर काम करने से पहले कॉम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान (सीएमपी) तैयार किया जाना चाहिए। इसके बाद उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने केंद्र सरकार के संयुक्त उपक्रम अर्बन मास ट्रांजिट कंपनी को जनवरी 2018 में यह काम सौंपा। इसकी रिपोर्ट नवंबर माह में सौंपी जा चुकी है और इसमें भी एलआरटीएस को अधिक उपयुक्त बताया गया है।

अडानी समूह ने किया है निवेश को एमओयू

दून मेट्रो रेल परियोजना के लिए अडानी समूह ने राज्य सरकार के साथ करीब 4500 करोड़ रुपये का एमओयू किया है। ऐसे में यदि शासन परियोजना में बदलाव करता है तो निवेश के इस अवसर से राज्य को हाथ धोना पड़ सकता है।

उतार-चढ़ाव से गुजरती रही परियोजना

दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक (एमडी) पद से रिटायर होने के बाद जितेंद्र त्यागी ने राज्य सरकार के आग्रह पर फरवरी 2017 में नवगठित उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक का पदभार ग्रहण किया।
परियोजना की डीपीआर तैयार होने के कई माह तक कुछ भी काम न होने पर सितंबर 2017 में जितेंद्र त्यागी ने एमडी पद से इस्तीफा दे दिया था।
सरकार ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया और जितेंद्र त्यागी से आग्रह किया, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा वापस लिया।
इसके बाद सरकार ने 75 करोड़ रुपये का प्रारंभिक बजट भी मेट्रो के लिए जारी कर दिया। हालांकि यह बजट सिर्फ वेतन-भत्तों व छोटे-मोटे कार्यों के लिए ही है।

मेट्रो परियोजना का आकार भी किया गया कम

मेट्रो परियोजना के लिए सरकार ने अप्रैल 2017 में देहरादून से लेकर हरिद्वार व ऋषिकेश समेत मुनिकीरेती तक मेट्रोपोलिटन क्षेत्र घोषित किया था। इसी के अनुरूप मेट्रो के संचालन का निर्णय लिया गया था। हालांकि परियोजना के निर्माण पर आ रही 25 हजार करोड़ रुपये से अधिक की लागत को देखते हुए इसे दो चरणों में पूरा करने का निर्णय लिया गया।

जुलाई 2017 में तय किया गया कि दून के भीतर मेट्रो का संचालन करने के लिए दो कॉरीडोर को भी डीपीआर में शामिल किया गया। यह कॉरीडोर आइएसबीटी से राजपुर (कंडोली) व वन अनुसंधान संस्थान के बाहर से रायपुर तक प्रस्तावित किए गए। हालांकि मोबिलिटी प्लान के बाद फिर रूट में संशोधन करने की तैयारी चल रही है। इसके तहत पहले रूट को कंडोली की जगह कैनाल रोड की तरफ जोड़ने और दूसरे रूट को रायपुर की जगह रिस्पना पुल तक ले जाने की कवायद चल रही है।

शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने बताया कि लंदन और जर्मनी के दौरे में शामिल लोगों की समिति ने एलआरटीएस पर सहमति दी है। इसकी रिपोर्ट में मुख्य सचिव ने भी हस्ताक्षर किए हैं। हालांकि इस दिशा में परीक्षण होना शेष था। दून के हित में जो होगा, उस पर ही काम किया जाएगा।

मुख्य सचिव उत्पल कुमार ने बताया कि एलआरटीएस लागत से लिहाज से बड़ी परियोजना है। ऐसे में सार्वजनिक परिवहन के हर एक विकल्प पर विचार किया जाना जरूरी है। इस दिशा में काम भी चल रहा है। जल्द निर्णय ले लिया जाएगा कि दून के लिए कौन सा विकल्प बेहतर रहेगा।

साभार ntinews.com

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