कैसे बचेंगे उत्तराखंड के जंगल और कितना असर है सरकारी योजनाओं का, खास रिपोर्ट
प्रकृति ने उत्तराखंड की भूमि के कदम-कदम पर अपनी अनोखी चित्रकारी से अनेक रंग भरकर इसके प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगाएं हैं । यहां का प्राकृतिक सौंदर्य ही नहीं बल्कि यहां का भूभाग भी विस्मित कर देने वाला है। यहां का आधा भू-भाग तो एकदम मैदान हैं तो आधा भू-भाग ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों ,पर्वतों, झरनों, ऊंचे-ऊंचे पेड़ों, जंगलों तथा बर्फ से ढके हुए हिमालय से बना है।
वन किसी भी समाज का अभिन्न अंग होते हैं। वहां के आर्थिक जीवन का हिस्सा होते हैं। साथ ही साथ वहां के पर्यावरण संतुलन को भी संतुलित रखने में मददगार होते हैं। उत्तराखंड में इसी प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए निश्चित क्षेत्र में दो तिहाई यानी लगभग 66 प्रतिशत वनों का होना जरूरी है जिसमें मैदानी भू-भाग में लगभग 21 प्रतिशत वनों का होना जरूरी है। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इसमें भारी बदलाव आया है जिससे पर्यावरणीय संतुलन के बिगड़ने का खतरा बन गया है। इसकी वजह शायद सरकार की इन वनों के प्रति उदासीनता, जनता में जागरूकता की कमी, कभी विकास के नाम पर, कभी सड़क बनाने के नाम पर, तो कभी भवन बनाने के नाम पर या किसी अन्य कारण से हर साल बेतहाशा वृक्षों का कटान, काटने के बाद सही ढंग से वृक्षारोपण का न होना, वृक्षारोपण हो भी जाए गया तो वृक्षारोपण के बाद उन पौधों की सही देखभाल ना होने के कारण वृक्षों का ढंग से न पनप पाना, लकड़ी की तस्करी और रही सही कसर हर साल होने वाली आगजनी (जंगल में लगने वाली आग) पूरी कर देती है।
पिछले कई सालों से लगातार गर्मियों में उत्तराखंड के जंगलों में आग लग जाती हैं। यह माना जाता है कि इन जंगलों में लगने वाली अधिकतर आग मानव जनित (इंसान की गलती से लगने वाली आग) होती है जिसमें करोड़ों रुपए की अमूल्य वन संपत्ति को नुकसान पहुंचता है। पेड़ पौधों के साथ-साथ वन्यजीवों,पक्षियों तथा कीड़े-मकोड़ों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है। और कई तो इसमें अपनी जान भी गंवा बैठते हैं। और सबसे बड़ी बात पक्षियों के धोंसलों व अण्डों को भी नुकसान पहुंचता है जिससे नई पीढ़ी की संभावनाएं ही खत्म हो जाती है। क्योंकि यही वन विभिन्न वन्यजीवों का आसरा होते हैं। उनका पूरा जीवन चक्र जैसे उनका आवास, उनका भोजन, नई पीढ़ी का जन्म ,पालन पोषण इन्हीं पर आधारित होता है।
उत्तराखंड के वन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप हमारे जीवन की कई जरूरतों को पूरा करते हैं
ये वन वन्यजीवों के साथ-साथ हमको भी बिना कहे कई उपहार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देकर हमारे जीवन की कई जरूरतों को पूरा करते हैं। अनेक प्रकार के कंद, मूल, फल व सब्जी जैसे वनराई, काफल, वेडू, किलमोडा, हिसालू, काला हिसालू, आंवला, बमौर, जामुन, किंमु (शहतूत), च्यूरा, भीमल, काफल, भीं-काफल, धिंधारू, बेल, बेर, क्वेराल, कचनार, मालू , सेमल, डोलू, दालचीनी, चीड़ के बीज, चलमोर, गनिया, महवा, लिगुडा़, तिमुल, अखरोट, मेहल (मेल), भेकुल/भीमल, तौडा़ (तरूड़), गेठी, च्यौ (कुकुरमुत्ता), सिसूण आदि वनों से ही उपलब्ध होते हैं। साथ ही साथ भवन बनाने के लिए लकड़ी जैसे चीड़, देवदार, साल ,शीशम ,हल्दू ,अखरोट व पांगर आदि तथा ईंधन के रूप में जलाने के लिए लकड़ी जैसे चीड़, बांज, काफल, महवा, मेहल, हरड़, कैल, बरौंस, रियाज, धिंगारू, किरोमोर, हल्दू, साल, देवदार, आंवला, टीक ,मखौल आदि तथा अनेक प्रकार के चरागाहों में उगने वाली घास भेड़, बकरियों तथा जंगली जानवरों के लिए अच्छा भोजन है। बरगद, बेडुली ,क्वेराल, कचनार, मालू, रियांज, रिंगाल ,फलियांट,कौल, काभौर, खसटिया, गूलर, सानन, भिमल, कुंजी, कौल ,तिमूल ,बेडू, बांज, भीमल/भेकुल की कोमल पत्तियों को जानवरों के चारे के रूप में प्रयोग करते हैं।
उत्तराखंड का प्राकृतिक सौंदर्य सदैव ही पर्यटन के आकर्षण का केंद्र रहा है
यहां तक कि ये वन हमारा मनोरंजन भी करते हैं क्योंकि वन, वन्य जीव, तथा प्राकृतिक सौंदर्य सदैव ही पर्यटन के आकर्षण का केंद्र रहते हैं। वर्षभर लाखों पर्यटक और तीर्थयात्री वहां आकर इन वनों के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं जैसे जिम कॉर्बेट पार्क,फूलों की घाटी, रूपकुंड, पिंडारी ग्लेशियर, राजाजी पार्क, गंगोत्री, गोविंद राष्ट्रीय उद्यान, अस्कोट वन्य विहार, केदार वन्य विहार , सोना नदी वन्य विहार, बिनसर वन्य जीव विहार आदि स्थानों पर पर्यटक वन्य जीव को देखने व वहां की सुंदर प्राकृतिक छटा को निहारने के लिए ही आते हैं। ऐसे ही ऊंचे पर्वतीय इलाकों में या उच्च हिमालई क्षेत्रों में मिलने वाले वन्य जीव जैसे विभिन्न तरह के पक्षी,हनुमान लंगूर, स्नो लेपर्ड फिशिंग कैट, गोल्डन ईगल ,चौसिंधा ,कस्तूरी मृग, रीछ, बाघ , बारहसिंघा,काकड़ ,घुरड ,शेर ,हाथी, चितल आदि अनेक जीवो को देखने के लिए वन्यजीव प्रेमी लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष इन पहाड़ों में आते हैं ।क्योंकि यहां उनको वनों में मनोरंजन के साथ साथ शांति के कुछ पल प्रकृति की गोद में बिताने को भी मिलते हैं।
उत्तराखंड के जंगलों में अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां
उत्तराखंड के वन जंगलों में खासकर हिमालय क्षेत्रों में अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां मिलती हैं जो असाध्य रोगों को दूर करने के काम में आती है साथ ही साथ कुछ जड़ी बूटियां तो शरीर को स्फूर्तिवान तथा स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होती है। आंवला,बहेड़ा, जटामासी, जम्बू, कुटगी,गुरजा, हरड़, गंदरायण, मुलेठी, खुचौडी़, शिलाजीत, यारसागंबो (कीड़ा जड़ी), किलमोडा की जड़, वनस्पा, डोलू, जैसी अनेक बेशकीमती जड़ी बूटियां इन जंगलों में आसानी से मिल जाती है।
इन महत्वपूर्ण कदमों से जंगलों को बचाया जा सकता है
अगर वनों में पौधारोपण तथा उनके रखरखाव के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएं। समय-समय पर पौधारोपण हो, शीघ्र उगने वाली प्रजाति के पौधों का रोपण किया जाए, और उससे भी महत्वपूर्ण है पौधारोपण होने के बाद उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी तय की जाएगी, वन अनुसंधान की मदद ली जाए, स्थानीय गांव की मदद ली जाए, वनों तथा आरोपित पौधों की सुरक्षा की जिम्मेदारी गांव वालों को ही दी जाए और गांव वालों की इच्छा व जरूरत के अनुसार ही पौधों का रोपण किया जाए जिससे उनको आर्थिक व सामाजिक रुप से लाभ हो और उनकी रुचि उन वनों में बनी रहे, वृक्षों को काटने तथा कच्चे माल के दोहन के बाद पुनः नए वृक्षों को लगाने के आवश्यक नियम बनाए जाए, वन पंचायतों की फिर से स्थापना की जाए तथा उनके अधिकारों को बढ़ाया जाए। महिलाओं को वनों का महत्व उसकी सुरक्षा संबंधी जानकारी व प्रशिक्षण दिया जाना आवश्यक है क्योंकि महिलाएं ही जानवरों के लिए चारा तथा जलाने के लिए लकड़ी आदि का प्रबंध करने इन जंगलों में जाती हैं। और हर साल लगने वाली आग सबसे अधिक इन वनों को नुकसान पहुंचाती है इसलिए अग्नि सुरक्षा से संबंधित उपाय किए जाने आवश्यक हैं।
पेड़ों को बचाने के लिए ‘प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना’ निभा रही है महत्वपूर्ण भूमिका
केन्द्र सरकार की ‘प्रधानमंत्री उज्जवला योजना’ इस योजना के तहत उत्तराखंड में करीब 5 करोड़ लोगों को एलपीजी कनेक्शन प्रोवाइड किए जांएगे। यह लक्ष्य 2019 तक पूरा कर लिया जाएगा। राज्य सरकार ने इस बात का दावा किया है केन्द्र सरकार की इस योजना के तहत नए डिस्ट्रीब्यूटर्स और रिटेलर्स को स्थापित किया जा सकेगा। सरकार का मानना है कि इससे उन महिलाओं की स्थिति में सुधार किया जा सकेगा जो पहाड़ी इलाकों में रहती हैं। महिलाओं की सिथति पर भी देखने को मिलेगा। केन्द्र सरकार इस योजना के तहत राज्य को 1.2 करोड़ रुपए के बजट का बड़ा लक्ष्य रखा गया है।
उन्होंने उत्तराखंड में वनों और पर्यावरण की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन के कार्यकर्ताओं की कृषक सेवाओं का स्मरण करते हुए पर्यावरण सुरक्षा और पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति को सुधारने में प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के महत्व को समझाया।
Dharmendar Aarya, Mirror News