उत्तराखंड का एक गांव जहां एक पत्नी के होते हैं कई पति, मिलिए पहाड़ की द्रौपदी से
महिलाएं आज भी पहाड़ की जीवन रेखाएं है या यूँ कहिये की यहाँ की आर्थिकी उसी के इर्द गिर्द घुमती है, आज भी उसके सामने पहाड़ जैसी चुनौतियों का अम्बार लगा हुआ है जिसका वह बरसों से डटकर मुकबला कर रही है। हिंदू महाकाव्य महाभारत में पंचला के राजा की बेटी द्रौपदी का विवाह पांच भाइयों से हुआ है। महाभारत में द्रौपदी के पांच पति थे। वे प्राचीन काल थे, लेकिन आधुनिक भारत में देश के कई हिस्से हैं जहां बहुविवाह अभी भी अभ्यास में है। कुछ धार्मिक परंपरा की वजह से करते हैं जबकि अन्य ज़रूरत से। यहां एक परिवार में एक परिवार के सभी भाई एक ही महिला से विवाह करते हैं।
उत्तराखंड में एक गाँव ऐसा भी है जहा आज कलयुग की द्रौपदी आपको देखने को मिल जाएँगी। उत्तराखंड के देहरादून जिले में लाखामंडल गांव की जौनसारी जनजाति के लोग आज भी अपनी धार्मिक परम्परा के चलते पॉलीऐन्ड्री विवाह करते है।
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पांच भाइयों की पत्नी राजो वर्मा का जब बेटा हुआ तो उसे यह भी नहीं मालूम चल सका कि उसके पिता कौन हैं। कई लोगों के लिए भले ही यह प्रथा अजीब हो, लेकिन कुछ स्थानीय लोग इसे नॉर्मल मानते हैं। उनके मुताबिक, यह एक प्रथा है जिसमें महिला को पहले पति के भाइयों से शादी करनी होती है। राजो की पहली शादी हिन्दू परंपरा से पहले पति गुड्डू के साथ 7 साल पहले हुई थी। इसके बाद उसने 32 साल के बैजू, 28 के संत राम, 26 के गोपाल, 19 के दिनेश से भी शादी हुई। सबसे आखिरी में दिनेश से शादी हुई जब उसकी उम्र 18 साल हो गई। राजो बताती है कि उन्हे मालूम था कि उन्हे सभी पति को स्वीकार करना होगा, क्योंकि उसकी मां ने भी तीन पुरुषों से शादी की थी।
भारत में इसे पॉलींड्री कहा जाता था पॉलींड्री दुनिया भर में कई समाजों का एक हिस्सा रहा है। जिसमे एक महिला के पास एक ही समय में दो या दो से अधिक पति होते हैं इसका कारण बढ़ती लिंग असमानता है। इस क्षेत्र में महिलाओं की संख्या बहुत कम है और हर दूल्हे के लिए दुल्हन को ढूंढना संभव नहीं है। पहले के दिनों में एक महिला से कई पुरुषों (जो आपस में भाई हों) की शादी की परंपरा को अधिक लोग फॉलो करते थे। लेकिन आज ऐसा कम ही फैमिली में होता है। कहते हैं कि महाभारत में द्रौपदी के पांच भाइयों से शादी करने की वजह से ही इस परंपरा की शुरुआत हुई।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तरी भारत में हिमालय के आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले और तिब्बत में यह प्रथा पाई जाती है। आज के समय में महिलाओं की आबादी में कमी की वजह ने भी इस प्रथा को जिंदा रखा गया है। भारत में पांच से कम उम्र की लगभग 240,000 शिशु लड़कियों को लिंग भेदभाव के चलते मार डाला जाता है। आज जिस तरह से भारत देश में लड़कियो की भ्रूण हत्या हो रही है वो दिन दूर नही है जब पांच या उससे अधिक लोग राजो की तरह एक ही महिला से विवाह करने को विवश हो जाएँगे और ये आधुनिक समाज की मजबूरी होगी।
Nitish Joshi, Mirror News
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