
‘आइडिया ऑफ इंडिया’ वाले आदि शंकर को प्रणाम!.. चारधाम यात्रा से लौटे वरिष्ठ पत्रकार विनोद मिश्रा का लेख
17 May. 2025. New Delhi. केदारनाथ मंदिर के चारों ओर निहारते हुए मेरे मन में पहला सवाल आया कि क्या आदि शंकराचार्य एडवेंचर टूरिस्ट थे या केरल के एक सुदूर गांव के कोलंबस थे या चारों दिशा में चार मठ स्थापित करके सनातन संस्कृति के धर्म ध्वजाधारी। बद्रीनाथ धाम पहुंच कर लगा अगर यहां बद्री विशाल न होते तो क्या हिमालय के नंदा देवी और शिवालिक जैसी पर्वत श्रंखलाएं भी कैलाश मानसरोवर की तरह हमे परमिशन लेकर आना पड़ता।एक सन्यासी बिना युद्ध लड़े सांस्कृतिक राष्ट्र के स्वरूप से समाज का परिचय कराया था।
हिमालय की तंग सीढ़ियों और जोखिम भरे रास्ते पर चलते हुए हजारों की तादाद में निरंतर चल रहे यात्रियों में किसी को मोक्ष की कामना है, किसी को बाबा केदारनाथ का दर्शन तो नई पीढ़ी के लिए भारत का सबसे सुंदर एडवेंचर ट्रैकिंग प्लेस। लेकिन आज के आइडिया ऑफ इंडिया वाले लोगों ने कभी यह सोचा भी नहीं होगा कि आदि शंकर ने इन दुर्गम पहाड़ों पर भी सर्विस सेक्टर बना कर हजारों लोगों की जीविका का बड़ा साधन यात्रा के रूप में दे दिया था।

ये भारत का ओरिजिनल आइडिया ऑफ इंडिया है जिसमें सिर्फ गंगा के दम पर देश के 100 से बड़े महानगर आज अपनी समृद्धि पर इठला रहे हैं। भारत के इन तीर्थ स्थानों की क्षमता किसी इंडस्ट्रियल सिटी से ज्यादा है। दुनिया के शायद ही किसी देश में धर्म की व्यवस्था में अर्थ की महत्ता की प्राथमिकता इतनी बेहतरीन दिखे। अर्थ धर्म काम मोक्ष।धर्म में अर्थ उपार्जन के सूत्र को हमने चारधाम यात्रा में करीब से देखा। यात्रा में आपकी हर सुविधा हर जगह मौजूद है इसमें सरकार भी है और समाज भी।
ऋषि मुनियों की परम्परा और व्यवस्था ही भारत को एक राष्ट्र के रूप में फ़ेबिकल से जोड़ा है।दक्षिण भारत के सैकड़ों यात्रियों के बीच बद्रीनाथ मंदिर परिसर में मैं खुद को अकेला महसूस कर रहा था।लेकिन उन समूहों के जयघोष में स्वर मिलाकर कुछ पल में ही मैं उनके बीच घुल गया था।यही तो भारत है और उसके प्राण तत्व। उनकी भाषा से अनभिज्ञ मैं उनके बोले जाने वाले हर श्लोक से परिचित था और मैं उनकी सामूहिक प्रार्थना का हिस्सा बन गया था।

फिर वे कौन ऐसे बुद्धिजीवी विचारक और इतिहासकार हुए जिन्होंने भारत की इस शानदार विरासत को ब्राह्मणवाद का नाम देकर पंडितों के प्रति नफरत फैलाने की कोशिश की।हिंदू समाज में जाति और छुआछूत के कलंक को ब्राह्मणवाद से जोड़ दिया गया और मनु को बिना पढ़े उन्हें खलनायक बना दिया। उनके नाम पर फर्जी किताबें छापी और उन्हें शोषक साबित करने की भरपूर कोशिश की गई।
आज के भारत में जातीय गठजोड़ के बीच तीर्थस्थानों पर बढ़ी भीड़ ने भारत की आत्मा को काफी सकून पहुंचाया है।तीर्थ स्थान पर सेवा देने वाले और लेने वालों में जातीय पहचान विलीन सी हो गई है।आज के शिक्षित समाज ने आदर के भाव को विकसित करके आदि शंकर के नींव को काफी मजबूत किया है।

प्रकृति की कठोर चुनौतियों को सामना करते हुए दुर्गम पहाड़ों पर बसे लोगों को शायद यह विश्वास होता है कि उनके परवरिश की चिंता करने वाला कोई जरूर है।केदारनाथ यात्रा में सेवा में जुटे घोड़ा,खच्चर ,पालकी वाले नेपाल के हजारों मजदूर परिवार के लिए यह यात्रा लाइफ लाइन होती है।बोझिल चढ़ाई की असहज पीड़ा के बीच किसी बुग्गी वाला का निमंत्रण यात्री में भरोसा पैदा करता है।हर ट्रेकर्स की उम्मीद उसके आस पास से गुजरने वाले बुग्गी वालों पर होती है। यहां नर और नारायण हिमालय की पर्वत चोटी भी है लेकिन इस कठिन यात्रा में नर के साथ नारायण भी चलते हैं।यह पहली बार देखा
सनातन परंपरा में कुंभ मेला गृहस्थ समाज और संत संन्यासियों के बीच आध्यात्मिक चिंतन का है तो यात्रा स्व की खोज में निकले गृहस्थ,संत,सन्यासी को मोक्ष की प्रेरणा से अभिभूत करती है।दोनों व्यवस्थाओं में ईश्वर के साक्षात्कार से ज्यादा स्व से साक्षात्कार की अनुभूति ज्यादा होती है।यात्रा के एडवेंचर में आपकी आत्मा प्रफुल्लित होती है।लेकिन शरीर कष्ट से तड़प रहा होता है।तभी आपको शरीर और आत्मा में फर्क महसूस होता है।यह सब हमारी ऋषि परम्परा ने करके दिखाया है।
विज्ञान और तकनीकी ने हमारी इन विश्वासों को और अधिक पुख्ता किया है।हमे हमारे आध्यात्मिक केंद्रों के करीब लाया है।अर्थ के दवाब में पीड़ित हमारे समाज के बीच धर्म मोक्ष का पक्ष ही गौण हो गया था।आज का भारत अपनी परम्परा और आध्यात्मिक केंद्रों पर गौरव करने लगा है।
लोग अब यात्रा पर निकलना चाहते हैं।लोग अपने देश की अनेकता में एकता के सूत्र को जानना चाहते हैं।राष्ट्र कोई भौगोलिक सीमा नहीं है राष्ट्र एक संस्कृति ,परम्परा,रिवाज और विश्वास का नाम है।राजे म्हाराजे आते रहे जाते रहे लेकिन एक राष्ट्र के रूप में हमारे धार्मिक केंद्रों ने आइडिया ऑफ इंडिया को कभी कमजोर नहीं होने दिया।इसी का नाम भारत है जो लोगों की आस्था से जुड़ी हुई रही है।जिसे गंगा और गोदावरी जैसी नदियों ने जोड़ा है जिसे हमारे मठों और यात्राओं ने जोड़ा है।
सादर। विनोद मिश्रा, सलाहकार संपादक, डीडी न्यूज़, दिल्ली
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