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गौरा देवी का अंग्वाल (चिपको आंदोलन) : पढ़िए कैसे बना वो इतिहास जो आज भी है दुनिया के लिए उदाहरण

गौरा देवी का अंग्वाल (चिपको आंदोलन) : पढ़िए कैसे बना वो इतिहास जो आज भी है दुनिया के लिए उदाहरण

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by March 26, 2019 News

गौरा देवी का अंग्वाल (चिपको आंदोलन) ! — दुनिया ने सराहा, अपनों ने भुलाया। 45 बरस बाद आज भी बरकरार है चिपको की चमक ..

मैं गौरा का अंग्वाल (चिपको आन्दोलन) हूँ!
मैंने विश्व को अंग्वाल के जरिये पेड़ों को बचाने और पर्यावरण संरक्षण का अनोखा मंत्र दिया। जिसके बाद पूरी दुनिया मुझे चिपको के नाम से जानने लगी। मेरा उदय ७० के दशक के प्ररारम्भ में विकट व विषम परस्थितियों में उस समय हुआ जब गढ़वाल के रामपुर- फाटा, मंडल घाटी, से लेकर जोशीमठ की नीति घाटी के हरे भरे जंगलों में मौजूद लाखों पेड़ो को काटने की अनुमति शासन और सरकार द्वारा दी गई। इस फरमान ने मेरी मात्रशक्ति से लेकर पुरुषों को उद्वेलित कर दिया था। जिसके बाद मेरे सूत्रधार चंडी प्रसाद भट्ट, हयात सिंह बिस्ट, वासवानंद नौटियाल, गोविन्द सिंह रावत, तत्कालीन गोपेश्वर महाविद्यालय के छात्र संघ के सम्मानित पधादिकारी सहित सीमांत की मात्रशक्ति और वो कर्मठ, जुझारू, लोग जिनकी तस्वीर आज 45 साल बाद भी मेरी मस्तिष्क पटल पर साफ़ उभर रही है ने मेरी अगुवाई की। मेरे लिए गौचर, गोपेश्वर से लेकर श्रीनगर, टिहरी, उत्तरकाशी, पौड़ी में गोष्ठियों का आयोजन भी किया गया। अप्रैल १९७३ में पहले मंडल के जंगलों को बचाया गया और फिर रामपुर फाटा के जंगलो को कटने से बचाया गया। जो मेरी पहली सफलता थी।

जिसके बाद सरकार मेरे रैणी के हर भरे जंगल के लगभग २५०० पेड़ो को हर हाल में काटना चाहती थी। जिसके लिए साइमन गुड्स कंपनी को इसका ठेका दे दिया गया था। १८ मार्च १९७४ को साइमन कम्पनी के ठेकेदार से लेकर मजदुर अपने खाने पीने का बंदोबस्त कर जोशीमठ पहुँच गए थे। २४ मार्च को जिला प्रसाशन द्वारा बड़ी चालकी से एक रणनीति बनाई गई जिसके तहत मेरे सबसे बड़े योद्धा चंडी प्रसाद भट्ट और अन्य को जोशीमठ-मलारी सडक में कटी भूमि के मुवाअजे दिलाने के लिए बातचीत हेतु गोपेश्वर बुलाया गया। जिसमे यह तय हुआ की सभी लोगो के १४ साल से अटके भूमि मुवाअजे को २६ मार्च के दिन चमोली तहसील में दिया जायेगा। वहीँ प्रशासन नें दूसरी और मेरे सबसे बड़े सारथी गोविन्द सिंह रावत को जोशीमठ में ही उलझाए रखा ताकि कोई भी रैणी न जा पाये। २५ मार्च को सभी मजदूरो को रैणी जाने का परमिट दे दिया गया।

२६ मार्च १९७४ को रैणी और उसके आस पास के सभी पुरुष भूमि का मुवाअजा लेने के लिए चमोली आ गए और गांव में केवल महिलायें और बच्चे, बूढ़े मौजूद थे। अपने अनुकूल समय को देखकर साइमन कम्पनी के मजदूर और ठेकेदार ने रैणी के जंगल में धावा बोल दिया। और जब गांव की महिलाओं ने मजदूरों को बड़ी बड़ी आरियाँ और कुल्हाड़ी सहित हथियारों को अपने जंगल की और जाते देखा तो उनका खून खौल उठा वो सब समझ गए की इसमें जरुर कोई बड़ी साजिश की बू आ रही है। उन्होंने सोचा की जब तक पुरुष आते हैं तब तक तो सारा जंगल नेस्तानाबुत हो चूका होगा। ऐसे में मेरे रैणी गांव की महिला मंगल दल की अध्यक्षा गौरा देवी ने वीरता और साहस का परिचय देते हुये गांव की सभी महिलाओं को एकत्रित किया और दारांती के साथ जंगल की और निकल पड़े। सारी महिलायें पेड़ो को बचाने के लिए ठेकदारों और मजदूरों से भिड गई। उन्होंने किसी भी पेड़ को न काटने की चेतावनी दी। काफी देर तक महिलायें संघर्ष करती रही। इस दौरान ठेकेदार नें महिलाओं को डराया धमकाया। पर महिलाओं ने हार नहीं मानी। उन्होंने कहा ये जंगल हमारा मायका है, हम इसको कटने नहीं देंगे। चाहे इसके लिए हमें अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े। महिलाओं की बात का उन पर कोई असर नहीं हुआ। जिसके बाद सभी महिलायें पेड़ो पर अंग्वाल मारकर चिपक गई। और कहने लगी की इन पेड़ो को काटने से पहले हमें काटना पड़ेगा। काफी देर तक महिलाओं और ठेकेदार मजदूरो के बीच संघर्ष चलता रहा। आखिरकार महिलाओं की प्रतिबद्दता और तीखे विरोध को देखते हुये ठेकदार और मजदूरो को बेरंग लौटना पड़ा। और इस तरह से महिलाओं ने अपने जंगल को काटने से बचा लिया।

देर शाम को जब पुरष गांव पहुंचे तो तब जाकर उन्हें इसका पता लगा। तब तक मैं अंग्वाल की जगह चिपको के नाम से जानी जाने लगी थी। उस समय आज के जैसा डिजिटल का जमाना नहीं था। लेकिन इसकी गूंज अगले दिन तक चमोली सहित अन्य जगह सुनाई देने लगी थी। लोग मेरी धरती की और आने लगे थे। मेरी अभूतपूर्व सफलता में ३० मार्च को रैणी से लेकर जोशीमठ तक विशाल विजयी जुलुस निकाला गया। जिसमे सभी पुरुष और महिलायें परम्परागत परिधानों और आभूषणों में लकदक थे। साथ ही ढोल दंमाऊ की थापों से पूरा सींमात खुशियों से सरोबोर था। इस जलसे के साक्षी रहे हुकुम सिंह रावत जी कहते है की ऐसा ऐतिहासिक जुलुस प्रदर्शन आज तक नहीं देखा गया। वो जुलुस अपने आप में अभूतपूर्व था। जिसने सींमात से लेकर दुनिया अपना परचम लहराया था।

मैं आज 45 बसंत पार कर चूका हूँ। इन 45 बरसों में मेरी चमक रैणी के गांव से लेकर पूरे विश्व में बढ़ी है। पेड़ो की रक्षा एवं पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से शुरू हुआ मेरा यह आन्दोलन 45 साल बाद भी अपनी चमक बिखेरे हुये है।आज के इस दौर में मेरी प्रशंगिगता उस दौर की तुलना में कहीं अधिक बढ़ी है।

लेकिन आज जब 45 साल का आंकलन करता हूँ तो मुझे महसूस होता है कि लोग मेरे मूल मंत्र पर्यावरण संरक्षण को भूल रहे हैं। धरातलीय कार्य को महत्व नहीं दिया जा रहा है। मौसम चक्र में बदलाव, बढता पर्यावरणीय असुंतलन, अनियोजित विकास के लिए जंगलो का अंधाधुँध कटान, मेरे मायके चमोली से लेकर पूरे पहाड़ में दर्जनों जल विधुत परियोजनाओ का निर्माण। बिगत बरसों में प्रलयकारी आपदा का सम्बन्ध कंही न कंही मेरी धरातलीय उपेक्षा का ही परिणाम है। यदि मुझे लेखों से दूर असली धरातल पर पहुँचाने के लिए अमलीजामा पहनाया जाय तो तब कही जाकर मेरी सार्थकता सफल हो पाएगी। मैंने 45 बरसों में लोगो को काफी कुछ दिया और कभी भी अपने लिए कुछ नहीं मांगा। मैं चाहता हूं कि यदि मेरी जन्मभूमि रैणी गांव में उत्तराखंड के लिए प्रस्तावित हिमालय पर्यावरण विश्वविद्यालय (केंद्र सरकार द्वारा पूर्व में घोषणा) को सरकारों की आपसी सहमती से खोला जाता है तो मेरी आने वाली पीढ़ी को मेरे बारे में और पहाड़ को बेहद करीब से जानने का मौका मिलेगा साथ ही मेरी सार्थकता भी सफल होगी।

मेरी सफलता में मात्रशक्ति के इस गीत का भी अहम योगदान रहा है। जिसे मात्रशक्ति अक्सर गाती थी।

चिपका डाल्युं पर न कटण द्यावा,
पहाड़ो की सम्पति अब न लुटण द्यावा।
मालदार ठेकेदार दूर भगोला,
छोटा- मोटा उद्योग घर मा लगुला।
हरियां डाला कटेला दुःख आली भारी,
रोखड व्हे जाली जिमी-भूमि सारी।
सुखी जाला धारा मंगरा, गाढ़ गधेरा,
कख बीठीन ल्योला गोर भेन्स्युं कु चारू।
चल बैणी डाली बचौला, ठेकेदार मालदार दूर भगोला ।..

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चिपको आन्दोलन के 45 बरस पूरे होने पर ये आलेख मेरी और से चिपको की मूल अवधारणा पेड़ो को बचाने और पर्यावरण संरक्षण के साथ साथ गौरा देवी, बाली देवी, गोविन्द सिंह रावत, वासुवानंद नौटियाल, आलम सिंह बिष्ट सहित चिपको के सभी सच्चे सिपाही (जो आज भी दुनिया की नजरों से ओझल है) जिन्होंने दिन रात एक करके चिपको को उसके मुकाम तक पहुचाया है के संघर्ष की गाथा को समर्पित है।

पिछले बरस सर्च इंजन गूगल नें भी चिपको आंदोलन पर डूडल चित्र बनाकर गौरा के अंग्वाल आंदोलन को सैल्यूट किया था। जो चिपको आंदोलन की महत्ता को साबित करता है।

(गौरा देवी का स्केच — ये गौरा देवी के फोटो का रेखांकन है। जिसे आकर दिया है उत्तराखंड पुलिस में देहरादून में कार्यरत सुनीता नेगी जी नें, जो एक बेहतरीन चित्रकार हैं। इनके पास अद्भुत कला है। इन्होंने अपनी चित्रकारी से हर किसी को प्रभावित किया है। बेहद कम समय में इन्होंने इस स्कैच को तैयार किया है जो इनकी प्रतिभा को दर्शाता है। हमारी ओर से सुनीता नेगी जी को ढेरों बधाईया। आशा और उम्मीद करते है कि आप पेंसिल, रंग और कूची से नये प्रतिमान स्थापित करेंगे…)

ग्राउंड जीरो से – संजय चौहान!

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