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आज नीतीश के साथ जानिए उत्तराखंड के बागेश्वर के बारे में, पढ़िए इस तीर्थस्थान के बारे में

आज नीतीश के साथ जानिए उत्तराखंड के बागेश्वर के बारे में, पढ़िए इस तीर्थस्थान के बारे में

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by July 5, 2018 Culture

बागेश्वर उत्तराखण्ड राज्य में सरयू और गोमती नदियों के संगम पर स्थित एक तीर्थ है। बागेश्वर कुमाँऊ के सबसे पुराने नगरो में से एक है। यह काशी के समान ही पवित्र तीर्थ माना जाता है। यहा बागेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर है, जिसे स्थानीय जनता बाघनाथ के नाम से जानती है। जहा गोमती नदी और सरयू नदी का संगम होता है उस जगह में भगवान शिव को समर्पित बाघनाथ मंदिर है। यहां पर स्थित पवित्र गुफा गौरी उडियार में भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है। यह बागेश्वर से 8 किमी की दुरी पर स्थित है। स्वतंत्रता संग्राम में भी बागेश्वर का बड़ा योगदान रहा है। 415 गांवों के हज़ारो परिवारो के होने के कारण बागेश्वर जिला घोषित कर दिया गया था। बागेश्वर में 95% पुरुष और 86% महिला आबादी साक्षर हैं। यहा के ज्यादातर लोग बेरोजगारी के चलते बागेश्वर से बाहर ही रह रहे है। पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी शहरो के मुकाबले दिखावा बहुत कम है सीधे साधे लोग है जो बहुत थोड़े में भी बहुत खुश रहते है कारण यहा का मन मोह देने वाला प्राकृतिक परिवेश है।

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उत्तराखण्ड का एक लोकप्रिय संगीत बागेश्वर के उत्तरायण मेले पर प्रसिद्ध कुमाऊंनी गायक कलाकार ललित मोहन जोशी द्वारा गाया गया है जिसके बोल है “हिट बसंती मेर दगरा घूम आली पहाड़, उत्तरायणी क मायल लगी रो बागेश्वर बजार”।
मकर संक्रांति के दिन यहाँ उत्तराखण्ड का सबसे बड़ा विश्व प्रसिद्ध उत्तरायण मेला लगता है। मकर संक्रान्ति के दौरान लगभग महीने भर चलने वाले उत्तरायणी मेले की व्यापारिक गतिविधियों, स्थानीय लकड़ी के उत्पाद, चटाइयाँ एवं शौका तथा भोटिया व्यापारियों द्वारा तिब्बती ऊन, सुहागा, खाल तथा अन्यान्य उत्पादों के विनिमय ने इसको एक बड़ी मण्डी के रूप में प्रतिष्ठापित किया। 1950-60 के दशक तक लाल इमली तथा धारीवाल जैसी प्रतिष्ठित वस्त्र कम्पनियों द्वारा बागेश्वर मण्डी से कच्चा ऊन क्रय किया जाता था।

वैसे तो उत्तराखंड में जगह जगह मंदिर ही मंदिर है मगर बागेश्वर के दो प्राचीन बैजनाथ और चंडिका देवी मंदिर विश्व में प्रसिद्ध है बागेश्वर जिले में स्थित प्रसिद्ध बैजनाथ मंदिर गरुड़ से दो किमी की दूरी पर गोमती नदी के किनारे पर स्थित है। मंदिर के अंदर शिव की एक मूर्ति है जिसमें कोई शिलालेख नहीं है। बैजनाथ मन्दिर लगभग 1000 साल पुराना है इस मंदिर के बारे में कहते है कि यह मन्दिर सिर्फ एक रात में बनाया गया था। ऐसी मान्यता है कि शिव और पार्वती ने गोमती व गरुड़ गंगा नदी के संगम पर विवाह रचाया था | हिन्दी साहित्य के एक महान कवी सुमित्रानंदन पंत की जन्मभूमि कौसानी से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बैजनाथ गोमती नदी के तट पर स्थित है। बैजनाथ को पहले “कार्तिकेयपुर” के नाम से जाना जाता था , जो कि 12वीं और 13वीं शताब्दी में कत्यूरी वंश की राजधानी हुआ करती थी। चंदिका देवी मंदिर हिंदू देवी चंदिका माई को समर्पित है, जिसे काली भी कहा जाता है। यह पवित्र मंदिर उत्तराखंड के बागेश्वर जिले से करीब आधे किलोमीटर दूर स्थित है। मंदिर लोगों के जीवन में धार्मिक महत्व रखता है। नवरात्रों के दौरान दूरदराज के स्थानों से कई भक्त इस मंदिर में जाते हैं। स्थानीय जनसंख्या चंदिका देवी मंदिर का सम्मान करती है और उसी पर एक दैनिक पूजा देखी जाती है।

यहा मंदिरो के साथ- साथ दो प्रमुख नादिया भी है गोमती और सरयू नदी। ऐसा माना जाता है कि है कि सरयू नदी के पानी में चर्म रोगों को दूर करने की अद्‌भुत शक्ति है। इस नदी में विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं के साथ ही ऐसी वनस्पतियां भी हैं, जो नदी के पानी को शुद्ध कर पानी में औषधीय शक्ति को भी बढ़ाती हैं। मत्स्य पुराण के अध्याय 121 और वाल्मीकि रामायण के 24वें सर्ग में इस नदी का वर्णन है। कहा गया है कि हिमालय पर कैलाश पर्वत है, जिससे लोकपावन सरयू निकली है, यह अयोध्यापुरी से सटकर बहती है। वामन पुराण के 13वें अध्याय, ब्रह्म पुराण के 19वें अध्याय और वायुपुराण के 45वें अध्याय में गंगा, जमुना, गोमती, सरयू और शारदा आदि नदियों का हिमालय से प्रवाहित होना बताया गया है। सरयू का भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रगट होना बताया गया है। उत्तराखण्ड को ऋषि मुनियो की तप भूमि कहा जाता रहा है। ट्रेकिंग के शौकीनो के लिए भी बागेश्वर से कुछ ही दूरी पर पिंडारी ग्लेशियर है पिंडारी ग्लेशियर समुद्र तट से 3,627 मीटर की ऊंचाई पर देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। पिंडरी ग्लेशियर ट्रेक कई टूर ऑपरेटर द्वारा आयोजित किए जाते हैं। वे मानसून के बाद सितंबर-अक्टूबर में आयोजित होते हैं। हाल ही में ओएनजीसी में कार्यरत उत्तराखंड के मूल निवासी पंकज जोशी ने विश्व की 8586 मीटर तीसरी सबसे ऊंची कंचनजंघा चोटी पर चढ़कर एक नया रिकॉर्ड बना लिया है। इस कठिन और अनोखी उपलब्धि को पंकज जोशी के द्वारा पूरा करने पर ओएनजीसी दुनिया का पहला कॉर्पोरेट बन गया है। बागेश्वर में पर्वतारोहण को खूब पसंद किया जाता है।

गोमती नदी से सटे बागेश्वर ग्रामीण क्षेत्र बमराड़ी ओर रवाईखाल नामक जगह के बीच आधे किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद एक सुंदर सा गाँव आता है जो “तालर” के नाम से मशहूर है ये बागेश्वर जिले के 415 गांवों में से एक है जिसे जोशी खोला भी कहा जाता है। इस गांव में सिर्फ़ ब्राह्मण समाज के लोग ही रहते है जो महाराष्ट्र के कोकण क्षेत्र से आए है। भारत के संविधान में पंचायती राज अधिनियम के अनुसार, तालर गांव सरपंच (गांव के प्रमुख) के द्वारा प्रशासित है। एक स्टडी के आधार पर इस गाँव में पुरुष साक्षरता दर 92% है जबकि महिला साक्षरता दर 78% है। गाँव में रहने वाले लगभग 35 परिवार है। इस गांव में उत्तराखंड के बाकी ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले साक्षरता दर काफ़ी अधिक है। ये आंकड़े चोकाने वाले है जबकि गांव में एक भी अच्छा कॉलेज नही है। इस गांव का नाम तालर इसलिए रखा गया क्यूंकी स्थानीय निवासी बताते है की पूर्वजों के जमाने से यहा एक बहुत बड़ा तालाब था जिसकी वजह से इस गांव का नाम तालर पड गया था। इस गांव की खूबसूरती ये भी है की थोड़ी चढाई चढ़ने के बाद यहा एक बहुत ही समतल जगह है जिसके चारो दिशाओ में ग्राम देवता के प्राचीन मंदिर है यहा के मंदिरो में ऋषि मुनियों ने हज़ारो साल तक योग साधना की थी। गांव से सम्बंधित किसी भी व्यक्ति को जब भी कोई समस्या होती है तो यहा जागर लगाकर देवी देवताओ का आवाहन किया जाता है।

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उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में आपको एक जंगली फल मिलेगा जिसे यहा के लोग घिंगारू के नाम से जानते है छोटे बच्चो को जब जंगल में भूख लगती है तो वो इस फल को बड़े चाव से खाते है ये स्वाद में हल्का खट्टा-मीठा होता है इसके आयुर्वेद में भी काफ़ी फ़ायदे बताए गये है यहा के सेब, आम, अमरूद, पपीते, हिसालू, काफल, पोलम, बेडू, खुबानी, आलू बुख़ारा नाशपाती आदि के बगीचे प्रकृति का सुखद अनुभव देते है। बागेश्वर कुमाऊं का प्रमुख कृषि क्षेत्र है कृषि प्रधान देश होने के नाते कई सीखें विरासत में हमें मिली हैं पर हम उनका सही से प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं। हमारे खेत छोटे हैं, बिखरे पड़े हैं और जहां गांवों में पलायन हो चुका है वहां खेत बंजर और खाली पड़े हैं। उत्तराखंड की लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर ही निर्भर है। मडुआ, गडेरी (लाल अरबी), बाल मिठाई, सिंगोडी, चॉकलेट, तिल के लड्डू, परती उड़द, चौलाई, गहत, भट्ट, पहाड़ी आलू, पहाड़ी खीरा, बुरांश जूस, माल्टा जूस, पहाड़ी गाय का दूध, घी और गौमूत्र आदि पहाड़ी उत्पादों ने बाज़ार में अपना प्रभुत्व जमाना आरम्भ कर दिया है। पिथौरागढ़ कस्बे की रहने वाली देवकी जोशी प्रतिवर्ष दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में कुमाऊंनी नमकीन उद्योग के द्वारा पहाड़ की बनी नमकीन को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचती है अब तो विदेशों में भी पहाड़ी उत्पादों की माँग बढ़ रही है अब चुनौती है कि इनके उत्पादन को किस प्रकार आगे बढ़ाया जाये।

कृषि प्रधान बागेश्वर की स्वच्छ वस्तुएं जैसे यहा के पहाड़ी मसाले, दालें एवं सब्जी जैसे लिगड़ा, सियूँण (Urtica Dioica), पहाड़ी जूस आदि का सही दाम यहा के पहाड़ी क्षेत्रों में नही मिल पाता है जिस वजह से बागेश्वर के ज्यादातर ग्रामीण लोग खेती सिर्फ परिवारिक जरूरतों को पूरा करने लिए ही कर रहे है आज भी कृषि प्रधान बागेश्वर देश के अन्य बड़े शहरों से संपर्क नही जोड़ पाया है जिस वजह से यहा के ग्रामीण किसानो के पास उपजाऊ जमीन होने के बाद भी उन्हे और देश दोनो को ही इसका लाभ नही मिल पा रहा है नतीजन शहरी लोग मिलावटी सब्जियां खाने को विवश है।

बागेश्वर जिले में बड़ी मात्रा में सोप स्टोन (Talc) पाया जाता है। सोप स्टोन का उपयोग कॉस्मेटिक्स, पेस्ट, साबुन, कीटनाशक पाउडर, वस्त्र उद्योग व कागज आदि के निर्माण में किया जाता है। बागेश्वर जिले में रीमा से लेकर कांडा क्षेत्र तक लगभग 75 खड़िया की खानें हैं। इन खानों से हर साल तीन लाख टन सोप स्टोन निकाला जाता है। बागेश्वर जिले में खड़िया से हर साल लगभग 150 करोड़ का कारोबार होता है। जिस तरह से देश के कोने-कोने में फ्रेट कॉरीडोर बनाए जा रहे है ऐसे ही बागेश्वर में भी बनाया जा सकता है जो यहा रोज़गार के अवसरो को खोलेगा लेकिन अभी तो बागेश्वर वासियों के लिए यहा टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन ही एक सपना बनकर रह गया है।


नीतीश जोशी, मिरर न्यूज़
बागेश्वर

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