देहरादून की रंगत खत्म कर दी है यहां की ट्रैफिक व्यवस्था ने, बता रहे हैं बलबीर सिंह
देहरादून का नाम सुनते ही एक ऐसे शहर की छवि मन-मस्तिष्क में बनती है जहां शांत, सुंदर और हरी-भरी वादियां हैं. वो शहर जहां लोग सुकून के दो पल बिताने आया करते हैं. और जो यहां आया, यहीं का हो कर रह गया. उसके तन-मन में यह शहर पूरी तरह बस गया ।
लेकिन यह शहर अब धीरे-धीरे बदल रहा है. अपना रंग बदल रहा है. ये बातें बीते समय का इतिहास बनती जा रही हैं. उत्तराखंड राज्य की राजधानी बनने के बाद एक छोटा सा शहर देहरादून अब महानगर बनने की ओर है. एक बड़े शहर की हर उस समस्या को देहरादून अपनाता जा रहा है जो पहले कभी यहां के लोगों ने शायद ही कभी महसूस की हो ।
एक बड़ी आबादी को समेटे यह शहर अब हांफने लगा है और यह बोझ दिन-प्रति-दिन बढ़ता ही जा रहा है. वर्ष 2001 में देहरादून की जनसंख्या 12,82,143 थी जो कि वर्ष 2011 में बढ़कर 16,96,694 हो गई. बढ़ती जनसंख्या का असर देहरादून की यातायात व्यवस्था पर भी पड़ा है. राजधानी बनने के बाद से यहां पर गाड़ियों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. यहां के शांत माहौल और स्वच्छ आबो-हवा में अब गाड़ियों का तेज़ शोर और दम घोटू धुंआ घुल गया है ।
एक शहर जो पिछले 19 वर्षों से हर प्रमुख राजनीतिक दल के चुनावी वादों के पूरा होने की आस में अपने हाल पर रो रहा है. विकास ज़रूरी है, बदलाव भी ज़रूरी है. समय की मांग को ध्यान में रखते हुए हर शहर में बदलाव भी हुए हैं लेकिन इस कीमत पर नहीं कि वहां के बाशिंदों को अपने शहर की पुरानी यादों को तस्वीरों में ही देखना पड़े।
शहर के बीच में पहुँचते ही देहरादून में ट्रैफिक जाम की समस्या से दो-चार होना पड़ता है. इससे पता चल जायेगा कि अगले कुछ घंटे आपको शहर की सडक पर अपनी गाड़ी में बंद होकर ही गुज़ारने हैं।
देहरादून के सहारनपुर चौक, आढ़त बाज़ार, प्रिंस चौक, तहसील चौक या फिर दर्शनलाल चौक सभी प्रमुख चौराहों पर आम जनता को ट्रैफिक जाम की समस्या से जूझना पड़ रहा है. इस समस्या के समाधान के लिए कई कोशिशें भी हुईं. पूरे शहर में सड़के चौड़ी करने का अभियान चलाया गया. यहां तक कि देहरादून की सड़कों के किनारे बहने वाली सभी नहरों को बंद कर दिया गया. यह नहरें आसपास क्षेत्र को हराभरा रखने में अहम भूमिका अदा करती थी लेकिन विकास की बड़ी कीमत इन नहरों को भी चुकानी पड़ी. यह शहर तब भी चुप रहा और अब भी चुप है।
तहसील चौक के आस पास का इलाका और चकराता रोड तो पूरी तरह से ही बदल गई लेकिन घंटाघर पर लगने वाले जाम से जनता को छुटकारा नहीं मिल सका।
बल्ली वाला चौक, बल्लूपुर और आई एस बी टी पर फ्लाई ओवर का निर्माण किया गया ताकि जाम कि समस्या से छुटकारा मिले लेकिन इन फ्लाई ओवर पर आए दिन हो रही दुर्घटनाओ से विशेषज्ञों ने इनके डिज़ाइन पर ही सवाल खड़े कर दिये हैं, इसके साथ साथ अजबपुर फ्लाई ओवर से भी कुछ राहत मिली है।
यहां एक सवाल उठता है कि क्या फ्लाई ओवर बना कर ट्रैफिक जाम की समस्या से निजात पाई जा सकती है।
शहर के अन्दर भारी वाहनों को आने से रोकने के लिए रिंग रोड बनाई गई है लेकिन इसका असर शहर के अंदर लगने वाले ट्रैफिक जाम पर पड़ा हो ऐसा नहीं लगता।
सरकार की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि स्थानीय स्तर पर यातायात की व्यवस्था दुरुस्त करे. ऐसे उपाय करे कि लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें. लोकल बसों की संख्या बढ़ाये ताकि लोग इनका उपयोग करें. इससे ट्रैफिक जाम से भी मुक्ति मिलेगी और शहर कि आबो-हवा भी साफ़ होगी. सी एन जी गाड़ियाँ भी एक विकल्प हो सकती हैं. पिछली कांग्रेस सरकारों के दौरान देहरादून में मेट्रो परियोजना शुरू करने की बात भी उठी थी लेकिन फ़िलहाल मेट्रो के दून पहुँचने में काफी वक़्त लगेगा. इसके लिए काफी बड़ी योजना बनानी होगी और वित्त का प्रबंध करना भी एक बड़ी चुनौती है. इस सबके बीच देहरादून शहर हांफ रहा है, अब और लम्बा इंतज़ार नहीं कर सकता।
हमारे देश में बेहतरीन योजनायें बनती है लेकिन जब उन्हें लागू करने का समय आता है तो परिस्थितियाँ पूरी तरह से बदल जाती हैं. यही हाल अब देहरादून के साथ हो रहा है. अब समय आ गया है कि देहरादून के बाशिंदे ख़ुद आगे आयें और ख़ुद इस समस्या को सुलझाएं क्योंकि इसके लिए हम ही ज़िम्मेदार हैं।
Balbir Singh Gulati, Dehradun
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