उत्तराखंड में एक अदृश्य मक्खी मिली, विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और छात्र ने ऐसे खोजा, किया जा रहा है शोध
उत्तराखंड ( Uttarakhand) में एक अदृश्य मक्खी की खोज की गई है, ये मक्खी नंगी आंखों से नहीं दिखाई देती है। मक्खी को देखने के लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत पड़ती है।देश में भी अभी तक इस तरह की कोई मक्खी नहीं खोजी गई है, यह एक फलों में लगने वाली फल मक्खी है और भारत में अपने तरह की ऐसी आठवीं फल मक्खी है। आइए हम आपको बताते हैं कि इसकी खोज कहां, कैसे और किसने की….
इसकी खोज की है हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर आर एस फर्त्याल और उनके शोध छात्र प्रदीप चंद ने। इस मक्खी का जीव वैज्ञानिक नाम फोर्टिका वाटेवी रखा गया है। प्रोफ़ेसर फर्त्याल ने मीडिया को बताया कि ये मक्खी घरेलू मक्खियों से अलग होती है और चमोली जिले में शोध के दौरान यह मक्खी पाई गई थी। यह काफी छोटी मक्खी होती है और इसकी लंबाई 2 मिलीमीटर से लेकर एक मिलीमीटर के दसवां भाग तक होती है, इस तरह की मक्खी को देखने के लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत होती है। प्रोफ़ेसर फर्त्याल ने बताया इस मक्खी का पूरा जीवन चक्र 16 से 23 दिन के बीच होता है, विश्वविद्यालय में इस मक्खी के ऊपर माइक्रोबायोलॉजी स्तर पर काम किया जा रहा है, मक्खी के क्रोमोजोम्स को स्टडी करने के साथ-साथ जेनेटिक स्तर पर भी काम चल रहा है।
ये मक्खी भारत में अपने तरह की आठवीं फल मक्खी है, कई तरह की बीमारियों को दूर करने में मक्खियों के जेनेटिक क्रोमोजोम्स काफी प्रभावशाली सिद्ध हुए हैं, इसे देखते हुए हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय इस मक्खी के जेनेटिक क्रोमोजोम्स पर शोध कर रहा है।
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