उत्तराखंड- लौट आई गांवों की रंगत, ध्याणियों के झुमेलो, चौंफुला, दांकुणी के गीतों से
इन दिनों उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के कई गांवों में पांडव नृत्य की धूम है, पलायन का दंश झेल रहे इन गांवों में काम से बाहर रह रहे भी लोग इन दिनों वापस आए हुए हैं उदाहरण के लिए सीमांत जनपद चमोली का किरूली गाँव। 10 बरस बाद गाँव मे पांडव नृत्य का आयोजन हो रहा है।
पांडव नृत्य देखने के लिए गाँव की ध्याणी (शादी हुई बेटियाँ) बीते एक पखवाड़े से अपने मायके में है। पांडव नृत्य के दौरान गाँव की ध्याणियां गाँव के पांडव चौक, पदान चौक, पंचायत चौक में पारम्परिक झुमेलो, चौंफुला, दांकुणी के गीतों पर देर रात तक पारम्परिक लोकनृत्य करते दिखाई दे रही हैंं। जिससे पूरा गाँव लोकसंस्कृति के रंग में डूब गया है। गाँव मे ध्याणियों की चहल पहल से गाँव की खोई रौनक लौट आई है।
खोल जा माता खोल भवानी….
जय बद्रीनाथ जी की जामको…….
बिकरम डेराबेर….
छि दारू नी पीण गजे सिंह …
ते नीति बोडर बेटा जाण पडोलु…
तु घास कटोलु, मीं पूली बांधोलू…जैसे पारम्परिक लोकगीतों से आजकल गाँव में बरसों से पसरा सन्नाटा भी टूट गया है। गाँव के वीरान पड़े घरों में आजकल खुशियाँ लौट आई हैंं। लोगों का कहना है कि पांडव नृत्य के आयोजन से हम अपनी पौराणिक सांस्कृतिक विरासत को संजो तो रहे हैंं अपितु गाँव की रौनक भी लौट आई है। पांडव नृत्य के बहाने बरसों बाद मिल रहे ध्याणी और नाते रिश्तेदारों को भी एक दूसरे की कुशलछेम पूछने का अवसर भी मिल रहा है।
वास्तव मे देखा जाय तो इस प्रकार के आयोजन यदि निश्चित समयावधि में होते रहे तो गाँवों में पसरा सन्नाटा तो टूटेगा अपितु हम अपनी लोकसंस्कृति को भी बचाने में सफल होंगे…. वहीं लोग अपनी माटी और घर गाँव वापस लौटने को मजबूर होंगे, जो रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगायेगा।
Mirror News