उत्तरायणी पर्व विशेष – जब कौथिग के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा हुआ था उत्तराखंड
इस वक्त उत्तराखंड और उत्तराखंड से बाहर रहने वाले लोगों में उत्तरायणी या मकर संक्रांति को लेकर खासा उत्साह है, मकर संक्रांति से सूर्य का उत्तरायण प्रारंभ हो जाता है । शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण को देवताओं का दिन और सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है , इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाओं का विशेष महत्व है । उत्तरायणी का पर्व 14 जनवरी, सोमवार को है, इस मौके पर पहले से ही उत्तराखंड, दिल्ली, मुंबई, लखनऊ जैसे शहरों में उत्तरायणी मेले का आयोजन उत्तराखंड के लोगों के द्वारा किया जा रहा है, जहां राज्य की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाता है ।
उत्तराखंड के बागेश्वर में भी हमेशा की तरह सरयू और गोमती नदी के तट पर 14 जनवरी से ये मेला शुरू हो रहा है, जहां काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं । धीरे-धीरे धार्मिक और आर्थिक रुप से समृद्ध यह मेला व्यापारिक गतिविधियों का भी प्रमुख केन्द्र बन गया है लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि 14 January 1921 को मकर सक्रांति के दिन उत्तरायणी के दिन इसी संगम स्थल पर बद्रीनाथ पाण्डे के नेतृत्व में कई हज़ारो आंदोलनकारियो ने अंग्रेजो की कई बेकार प्रथा से सम्बंधित रजिस्टर को इसी संगम में बहा दिया, इसी प्रथा के कारण कुली बेगार प्रथा का अंत हुआ और इस आन्दोलन का सफल नेतृत्व करने में बद्रीनाथ पांडे को “कुर्मांचल केसरी” की उपाधि दी गयी थी । 1929 में महात्मा गाँधी ने इस संगम पर “स्वराज भवन” का शिलान्यास किया , जिसका उपयोग स्वतंत्रा संग्राम के दौरान राजनैतिक और राष्ट्रीय चेतना फैलाने के लिए किया जाता था ।
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Mirror News
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