साहित्य
उत्तराखंड के पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी की पुस्तक ‘खाकी में स्थितप्रज्ञ’ का विमोचन, पुलिस अधिकारी के रूप में साढ़े तीन दशक के अनुभवों पर है आधारित
21 September. 2024. Dehradun. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शनिवार को सर्वे चौक, देहरादून स्थित आई.आर.डी.टी सभागार में उत्तराखण्ड के पूर्व पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘खाकी में स्थितप्रज्ञ’’ का विमोचन किया। अनिल रतूड़ी ने यह पुस्तक एक आईपीएस अधिकारी के रूप में अपने संस्मरण एवं अनुभव के आधार पर लिखी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि अनिल रतूड़ी द्वारा इस पुस्तक के माध्यम से एक…
कहानी संग्रह ‘रुकी हुई नदी’ की समीक्षा की साहित्यकारों ने, गांव और आम जनमानस से जुड़ा हुआ पाया
5 August. 2023. Dehradun. कहानीकार शूरवीर सिंह रावत द्वारा लिखित रुकी हुई नदी कहानी संग्रह पर आज देहरादून में एक संवाद गोष्ठी का आयोजन किया गया। साहित्यकारों ने सम्मिलित कहानियों की समीक्षा की व कहानियों की भाषा ,शैली व बुनावट पर अपने विचार व्यक्त किए। डॉ नंदकिशोर हटवाल ने कहा है कि कोई भी कहानी संग्रह, तभी अच्छा कहलाता है जब भाषा सहज और बोधगम्य हो, उसमें शब्दों का प्रवाह…
पहाड़ और साहित्य दोनों को खलेगा शेखर जोशी का निधन, पढ़िए मिरर उत्तराखंड का खास संपादकीय
5 Oct. 2022. प्रख्यात साहित्यकार शेखर जोशी का निधन न सिर्फ साहित्य जगत के लिए बल्कि उत्तराखंड के पहाड़ों के लिए भी एक बड़ी क्षति है। मंगलवार दोपहर को शेखर जोशी का निधन गाजियाबाद के एक अस्पताल में हो गया, वह 90 वर्ष के थे। शेखर जोशी उत्तराखंड में जन्मे उन विरले साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने अपने लेखन से उत्तराखंड के तत्कालीन समाज गांव-घरों को दुनिया से परिचित करवाया,…
Uttarakhand श्राद्ध और पहाड़, सराद का भात, एक रोचक लेख श्राद्ध की परंपरा पर
बातों बातों में :- पिताजी का श्राद्ध और सराद का भात (लेखक द्वारा ये आर्टिकल अपने स्वर्गीय पिताजी की याद में लिखा गया है ) : फिल्म ‘झुक गया आसमान’ का गीत सुना ही होगा-“जिस्म को मौत आती है लेकिन, रूह को मौत आती नहीं है”। रूह (आत्मा) अजर-अमर कही जाती है। माना जाता है कि आत्मा कभी नष्ट नहीं होती। श्रीमद् भागवत के अनुसार जन्म लेने वाले की मृत्यु…
साहित्य समीक्षा – लोकगंगा : मध्य हिमालय की जनजातियों पर केन्द्रित अंक
उत्तराखण्ड को यहां के पर्वत, झरने, नदियों, तीर्थ और पर्यटन स्थलों के साथ यहां की सामाजिक विविधता ने भी खूबसूरती बख्शी है। विशेषकर यहां निवास करने वाली जनजातियां इस राज्य की विशिष्ठ पहचान को स्थापित करती हैं। जनजातियों की सामाजिक सांस्कृतिक विशिष्ठता हमारे राज्य की धरोहर है। लोकगंगा का जुलाई 2021 का ‘मध्य हिमालय की जनजातियों’ पर केन्द्रित विशेषांक हमें इस धरोहर से परिचित कराने का महत्पूर्ण प्रयास है। अंक…
Uttarakhand बंगाण के समाज, भाषा एवं लोक साहित्य पर लिखी पहली किताब, उत्तरकाशी के मोरी तहसील का इलाका है बंगाण
एक कुटीण थी औनि एक तिरौं बोटौ थौ। दुइंयां आपस माईं इली मिलिऔ रौऐण थै। कुटीण आपड़ै बोटे आरि बोलै थी कि जौ तांउंकै औड़ोस पौड़ोस दी बौंठिया नानै मिलैंण तै तिंउं गोरै आणनि। तिंरौ सेउ बोटौ तेशौइ कौरै थौ। सै कुटीण तेस नानेइपोरू खा थी। कुछ समझ में आया? आगे पढ़िये….. ये बंगाणी भाषा में बंगाण की लोककथा का एक अंश है। इस कथा का नाम है कुटन्याटि। यह…
‘काऽरि तु कब्बि ना हाऽरि’, उत्तराखंड के शैक्षिक और सामाजिक इतिहास की झलक दिखाती एक जीवनी
‘‘…तब इलाके में वधू-मूल्य चुकाने का चलन था। लड़के वाले कन्या पक्ष को नगदी में चांदी के कळदार तो देते ही थे, ऊपर से खुशामदें भी करते थे। वधू के पिता से चिरौरी करते, ‘‘मेरा लड़का तो सरकारी नौकरी में है। इतना जुल्म न करो। थोड़ा गम खाओ।’’ ‘‘…सास चौबीसों घण्टे बहुओं पर चौकसी रखती थीं। वे घास लकड़ी को जंगल जाती तो मुखबिर बनाकर अविवाहित ननद को साथ भेजती,…
कौन हैं पहाड़ों के नये ककड़ी चोर, किसने चुराई भागीरथी आमा की ककड़ी, पढ़िए आपको जड़ों से जोड़ता ये आलेख
पहाड़ों की पहाड़ जैसी जिन्दगी जीते-जीते बहुत बड़ा बदलाव हो गया। चंद राजाओं की प्राचीन राजधानी चंपावत के आसपास कई गांव हैं। ये गांव भी इस बदलाव से अछूते नहीं रहे। इन नजदीकी गांवों को आम बोली में चाराल कहा जाता है। राजबुङ्गा (वर्तमान तहसील दफ़तर) किले से चारों तरफ फैले हुए ये गाँव दिखते हैं। इसी चाराल के एक गाँव में बहुत से परिवार धीरे-धीरे एक-दूसरे को देख कर…
पढ़िए कैसे उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक प्रतिनिधि हैं लोकोत्सव और मेले – डा. नंदकिशोर हटवाल
उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक प्रतिनिधि हैं लोकोत्सव और मेले उत्सव, मेले और त्योहारों का मनुष्य के सामाजिक जीवन में अहम् स्थान होता है। वो किसी भी देश, धर्म, सम्प्रदाय में निवास करता हो लेकिन स्वभावतः मनुष्य उत्सव प्रेमी है। विभिन्न प्रकार के धर्म और सम्प्रदायों में विश्वास करते हुए पूरी दुनियां में मनुष्यों ने हजारों प्रकार के उत्सवों का सृजन किया। कुछ उत्सव खानपान, रहन-सहन के तौर तरीकों के साथ छोटे…
‘को बणौल पधान’, एक कुमांउनी भाषा की कविता, पंचायत चुनाव पर लेखक के विचार
हलचल हैरै आब ऐगी चुनाव, फेसबुक मुबाईल में मारण रयी उच्छयाव। क्वें जोड़न लागि रयीं आब हाथ, क्वें चाण फैगी आब दयाप्तों थान। गौनूँक बाखई में या माल धारकिं दुकान, गौ गौनूंमें सब जाग एकै चर्चा हैरै। को बणौल पधान….को बणौल पधान।। आब द्वी नानतिन आठ दस पास, दाज्यूल लगै रछी बरसों बै आश। आब कभै इथां कभै उथां चाईयै रैगयीं, है गयीं आब नेताज्यू निराश। जुटी रछीं लगै बे उं जी जान, बंद हैगे दाज्यू…