Uttarakhand वन विभाग ने किया बंदरों के स्वभाव का अध्ययन, चौंकाने वाले तथ्य आए सामने
24 Dec. 2021. Pithoragarh. उत्तराखंड के पिथौरागढ़ रेंज में वन क्षेत्राधिकारी दिनेश जोशी के आदेश पर विभागीय कर्मचारियों ने बंदरो की गणना के अलावा सड़कों या मनुष्य के बीच रहने वाले बंदरों व जंगलों में रहने वाले बंदरों के स्वभाव को लेकर चण्डाक, सोडलेख, गुरना, दिगतोली, थलकेदार गुरना की वन बीटों में कर्मचारियो की अलग अलग टीमें बना कर अध्ययन किया गया। जिसमें टीम ने पाया कि बंदरों को खाना खिलाने की प्रथा उनके समुदायों के लिए हानिकारक हो सकती है। बंदरों को खिलाने से उनके समुदायों का सामाजिक जीवन प्रभावित हो सकता है।
विभागीय कर्मचारीयों ने सड़क के किनारे बंदरों के व्यवहार पर नजर रखी जिसमें पाया कि जो बंदर व्यस्त सड़क पर जमा होते हैं तथा वहां से गुजरने वाले मोटर चालकों द्वारा दिए गए खाने को खाते हैं, उनमें से कुछ बंदर लोगों के साथ घुल-मिल रहे हैं, जिससे बंदरों द्वारा सड़क पर बिताया गया समय उनके सामाजिक रिश्तों को प्रभावित करता है और उनके फैसले लेने की भूमिका भी बदलती नजर आयी।
जहा इंसानों से बंदरों को ईनाम के रूप में खाना मिल रहा है वहां पर बंदरो का व्यवहार खतरों से भरा व ज्यादा आक्रमक नजर आया, समूह के बंदर लोगों के करीब पहुंचने का खतरा अधिक उठाते हैं, जो उन्हें रोटी, फल, आलू के चिप्स और अन्य खाने की चीजें देते हैं। विभागीय कर्मचारियों ने देखा कि जिस समय बंदर सड़क पर थे, उनके अपने समुदाय के बीच सामाजिक संबंध कम पाए गए। वही जंगलो में रह रहे बंदरों का एक दूसरे को संवारना या एक-दूसरे को सहलाना, जिसमें इन बंदरो में कम आक्रमकता व आपसी सामंजस्य ज्यादा देखा गया। बंदरों का ये व्यवहार महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये सामाजिक शिक्षा और संबंध निर्माण की नींव के रूप में काम करता है, जो एक मजबूत, सामंजस्यपूर्ण समुदाय का नेतृत्व करते हैं। लेकिन सड़क के साथ उनका व्यवहार अक्सर जंगल में उनके व्यवहार के विपरीत था, जहां वे अपना अधिकांश समय जंगली फल-फूल खाने और व्यस्त सड़क मार्ग के शोर-शराबे से दूर रहने में व्यतीत करते थे।
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