Uttarakhand बंगाण के समाज, भाषा एवं लोक साहित्य पर लिखी पहली किताब, उत्तरकाशी के मोरी तहसील का इलाका है बंगाण
एक कुटीण थी औनि एक तिरौं बोटौ थौ। दुइंयां आपस माईं इली मिलिऔ रौऐण थै। कुटीण आपड़ै बोटे आरि बोलै थी कि जौ तांउंकै औड़ोस पौड़ोस दी बौंठिया नानै मिलैंण तै तिंउं गोरै आणनि। तिंरौ सेउ बोटौ तेशौइ कौरै थौ। सै कुटीण तेस नानेइपोरू खा थी। कुछ समझ में आया? आगे पढ़िये…..
ये बंगाणी भाषा में बंगाण की लोककथा का एक अंश है। इस कथा का नाम है कुटन्याटि। यह कथांश मैंने बलवीर सिंह रावत द्वारा सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘बंगाण : समाज, भाषा एवं लोक साहित्य’ पुस्तक से लिया है। बंगाण हमारे राज्य के उत्तरकाशी जिले के मोरी तहसील में है। यह टौंन्स व पावर (पब्बर) नदी की खूबसूरत घाटी में बसा सांस्कृतिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है। पश्चिम में इसकी सीमा हिमांचल से लगी है और दक्षिण की तरफ देहरादून जिले का जौनसार बाबर वाला इलाका पड़ता है।
इस पुस्तक में लेखक ने बंगाण के समाज, भाषा एवं लोकसाहित्य के बारे जानकारी दी है। पुस्तक में- बंगाण एक परिचय, बंगाण के गांव एवं खानदान, बंगाणी भाषा, बंगाणी लोक साहित्य, बंगाणी लोककथाएं, तीर्थस्थल देव वन, मेले एवं त्योहार, बंगाण का लोकसंस्कार, बंगाण का लोकजीवन और विविध शब्दावली ये दस अध्याय हैं। परिचय में बताया गया है कि इसकी तीन पट्टियां हैं। मासमोर, पिंगल और कोठीगाड़। ‘बंगाण के गांव एवं खानदान’ अध्याय में बंगाण के गांवों तथा उसमें बसे विभिन्न खानदानों की सूचना दी गई है। बंगाण में दो गांव होते हैं। एक ऊंचाई वाले इलाके में स्थित, वो मूल गांव होता है। दूसरा घाटी की तलहटी और नदी किनारे स्थित, इसे दोगरी कहते हैं। बंगाणी भाषा पर पुस्तक में शोधपरक जानकारियां हैं। कम ही लोगों को जानकारी होगी कि हमारे उत्तराखण्ड में बंगाणी भी कोई भाषा है। बंगाण की तीन पट्टियों में यह भाषा बोली जाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार इसके बोलने वालों की संख्या 21000 है। पुस्तक में बंगाणी भाषा में उच्चारण की विविधता, ल और ल का अन्तर, ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ का प्रयोग, इसकी व्याकरणीय विशेषता आदि को बताया गया है। चूंकि लेखक भाषा (अंग्रेजी) शिक्षक हैं इसलिए भाषा पर उनकी पकड़ स्वाभाविक है। लेखक ने भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण के अन्तर्गत बंगाणी भाषा का अध्ययन व शब्दों का संकलन किया तथा उत्तराखण्ड की भाषाओं के शब्दकोश ‘झिक्कल काम्ची उडायली’ में बंगाणी भाषा के शब्दों का संग्रह किया।
लोकसाहित्य अध्याय के अन्तर्गत पुस्तक में लोककथाएं, औनाणे (मुहावरे और कहावतें) बुजाउणी (पहेलियां) के साथ विभिन्न प्रकार के लोकगीत और उनका परिचय भी दिया है। यथा ‘छोड़े’ लोकगीत के बारे में लेखक ने बताया है कि इन्हें विरह और दुख का साहित्य कहा जाता है। गढ़वाली में इन्हें बाजूबंद और कुमाउनी में न्योली कहते हैं। पुस्तक में ‘बाजू’ नाम से अलग गीत श्रेणी दी गई है जो कि बाजूबंद से मिलती-जुलती प्रतीत हो रही है। इसके अलावा बैणी, हारूल, मगोज गीत, बादरी का गीत, कौंला रणिए आदि गीतों से भी इस पुस्तक के माध्यम से हम परिचित होते हैं। सभी प्रकार के लोकसाहित्य का हिंदी अनुवाद भी है जिससे इसे समझने में आसानी होती है।
आगे के अध्यायों में बंगाण के प्रसिद्ध तीर्थस्थल, देवताओं, मेले और त्योहारों, बंगाण के लोकसंस्कारों यथा- नामकरण, चूड़ाकर्म, उपनयन आदि के बारे में जानकारी है। बंगाण के लोकजीवन अध्याय में वहां के खेलां, पकवानो, घरेलू दवा, नुस्खे, कृषि उत्पादों की जानकारी, बंगाण के गांवों में प्रयोग में लाए जाने वाले बर्तनों, औजारों की सूची, पेड़-पौधे, जंगली जीवजन्तु, पक्षी, पालतू पशु, वस्त्राभूषण की सूची बंगाणी भाषा में दी है जिसका हिंदी तर्जुमा भी है। अंत में विविध शब्दावली अध्याय में हिंदी अर्थ सहित वर्गीकृत शब्द सूची है।
पुस्तक के लेखक मूल रूप से बंगाण के निवासी होने के कारण इस पुस्तक को हम उनके अपने जीवन के अधारभूत अनुभव और जानकारी भी मान सकते हैं। अपने क्षेत्र पर लिखना अपने बारे में लिखना जैसा भी है। इसकी जानकारियों और सूचनाओं को प्राथमिक जानकारियां और सूचनाएं अथवा सीधी फस्टहैंण्ड जानकारियां कह सकते हैं। हम इसे सीधे लोक से प्राप्त सूचनाओं के रूप में देख सकते हैं। इस दृष्टि से भी यह पुस्तक एक अलग महत्व रखती है। प्रशासनिक इकाइयों (प्रदेश, मण्डल, जिले, विकासखण्ड) के अंदर इस प्रकार की छोटी-छोटी भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषाई इकाइयों के पृथक, सूक्ष्म और विकेन्द्रित अध्ययन भी आज बेहद जरूरी और उपयोगी हैं। तभी उत्तराखण्डी लोकजीवन की विविधतापूर्ण और समग्र तस्वीर हमारे सामने आ सकती है। अपने आस-पास के वैविध्य को देखना, समझना देश-दुनिया के वैविध्य (क्पअमतेपजल) की समझ और स्वीकार की ओर बढ़ना जैसा है। यह सहअस्तित्व के सिद्धान्त को समझने और अपने जीवन में उतारने की ओर पहला कदम बढ़ाना जैसा भी हो सकता है…शुरूवात अपने घर से होती है…जैसा कुछ…।
इस दृष्टि से लिखी गई यह बंगाणी समाज, भाषा और लोकसाहित्य पर लिखी प्रथम पुस्तक है। इस किताब से गुजरते हुए बंगाण को जानना वहां के लोक से सीधे सम्पर्क करने जैसा है। इसके लिए लेखक बधाई के पात्र हैं।
पुस्तक का नाम- बंगाण : समाज, भाषा एवं लोक साहित्य
लेखक- बलवीर सिंह रावत, फोन नं. 8126313740
समीक्षक-नंद किशोर हटवाल
प्रकाशक एवं मुद्रक- समय साक्ष्य, 15 फालतू लाइन, देहरादून, 248001
दूरभाष 0135-2658894
मूल्य जनसंस्करण 125.00
पुस्तकालय संस्करण 200.00
पृ.सं. 119
समीक्षक : नंद किशोर हटवाल
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