वंदना पंवार ने कड़ी मेहनत और जिद के जरिए स्कीइंग में लहराया परचम, प्रेरणास्रोत बनी पहाड़ की बेटियों के लिए
आजकल चैत्र नवरात्रि चल रहे है। नवरात्रि का अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि के दौरान आपको उत्तराखंड की एक ऐसी महिला से रूबरू करवा रहे हैं जिन्होंने अपने कार्यों, संघर्षों और जिजीविषा से समाज के लिए एक मिशाल पेश की है। आइए आपको रूबरू करवाते हैं स्कीइंग खिलाड़ी पहाड़ की ‘स्नो लेडी’ सीमांत जनपद चमोली के पोखरी ब्लाक के गिरसा गाँव की वंदना पंवार से–
जोशीमठ के स्व. रणजीत सिंह पंवार की बेटी वंदना पंवार बचपन से है बहुमुखी प्रतिभा की धनी रही है। खासतौर पर स्कीइंग के प्रति बचपन से ही वंदना को लगाव था। लकड़ी की परखच्चियों से शुरू हुआ सफर आज भी बदस्तूर जारी है। वंदना नें बेहद छोटी उम्र में वर्ष 1998 में नेशनल स्कीइंग चैंपियनशिप में प्रतिभाग कर जूनियर गर्ल्स वर्ग में प्रथम स्थान हासिल कर स्कीइंग मे सुनहरे भविष्य की उम्मीदों को पंख लगाये। जिसके बाद वंदना नें कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2000 में आयोजित महिला स्पोटर्स चैंपियनशिप में सलालम जूनियर में भी वो प्रथम स्थान पर रही। 2002 में नेशनल स्कीइंग चैंपियनशिप में वंदना को दूसरा स्थान मिला। 2003 में आयोजित नेशनल विंटर गेम्स में भी वंदना दूसरे स्थान पर रही। 2006 में आयोजित वाटर स्कीइंग प्रतियोगिता में वंदना नें A ग्रेड हासिल किया। जबकि 2008 मे भी वाटर स्कीइंग में फिर A ग्रेड प्राप्त किया। 2007 में नेशनल स्कीइंग चैंपियनशिप में वंदना को तीसरा स्थान मिला। वहीं 5 वीं नेशनल विंटर गेम्स गुलमर्ग (कश्मीर) में पहला स्थान मिला। 2010 में मनाली में आयोजित नेशनल स्कीइंग चैंपियनशिप में एक बार फिर वंदना को दूसरा स्थान मिला। 2011 में औली में आयोजित औली स्कीइंग चैंपियनशिप में वंदना को द्वितीय स्थान मिला। 2011 में ही साउथ एशियन विंटर गेम्स में तीसरा स्थान मिला। इसके अलावा वंदना पंवार नें दर्जनों राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कई मेडल झटके और उत्तराखंड और देश का नाम रोशन किया। वंदना नें स्कीइंग की कई ट्रेनिंगों में भी हिस्सा लिया और स्कीइंग की बारीकी सीखी। वंदना नें निम- नेहरू पर्वतरोहण संस्थान उत्तरकाशी से भी प्रशिक्षण लिया है।
वंदना नें स्कीइंग के जरिए पहाड़ की बेटियों को नयी पहचान दिलाई। स्कीइंग को हमेशा ही पुरूषो को खेल माना जाता रहा। लेकिन वंदना नें स्कीइंग में बर्फीली ढलानों पर हैरतंगेज करतब दिखाकर कई मेडल हासिल करके स्कीइंग खेलो में पुरूषो को चुनौती देकर महिलाओं के लिए नयी उम्मीदों की राह खोली। विषम परिस्थितियों और संसाधनों के आभावों में भी वंदना नें कठिन मेहनत और जिद के बलबूते सफलता की ऊचांईयों को छुआ है।आज वंदना युवाओं के लिए राॅल माॅडल है।
बकौल वंदना स्कीइंग जैसा रोमांच से भरा, साहसिक खेल और कोई नहीं है। लेकिन स्कीइंग मे रोजगार के सीमित अवसर होने से युवा पीढ़ी इसमें अपना कैरियर बनाने से अपने कदम पीछे खींच रही है। साहसिक खेलों में स्कीइंग में असीम संभावनाएँ हैं। इसलिए नीति नियंताओ को चाहिए की स्कीइंग को रोजगार से जोड़ने की कयावद की जाय ताकि युवा अपने भविष्य और रोजगार को लेकर आशंकित न हो। साथ ही औली में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का स्कीइंग और माउनटेंनिग संस्थान खोला जाय।
वास्तव मे देखा जाय तो स्कीइयर वंदना पंवार नें पहाड़ की बेटियों के जुनून, जिद और बुलंद हौंसलो को स्कीइंग के जरिए एक नयी पहचान दिलाई है। विपरीत परिस्थितियों का डटकर सामना कर ऊचांईयों को छुआ है।
इस आलेख के जरिए ‘पहाड़ की स्नो लेडी’ वंदना पंवार को बर्फीली ढलानों पर दर्जनों मेडल हासिल करने और चमोली, उत्तराखंड व देश का नाम रोशन करने व पहाड़ की बेटियों को नयी पहचान दिलाने के लिए धन्यवाद और शुभकामनाएं।
Sanjay Chauhan, Journalist, Chamoli
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