उत्तराखंड : चीन युद्ध के दौरान सेना के मददगार बाबा ने अब बनाया अद्भुत म्यूजियम, 60 साल की मेहनत दिखेगी इसमें
आज हम आपको बताते हैं एक ऐसे बाबा की कहानी, जो खुद तो दक्षिण भारत के रहने वाले थे लेकिन उन्हें हिमालय से ऐसा प्यार हुआ कि वो अपनी युवावस्था में ही गंगोत्री में आकर बस गए। ट्रैकिंग और पर्वतारोहण के शौकीन बाबा ने अपने कैमरे के जरिए उत्तराखंड और हिमालय के दूसरे क्षेत्रों की दुर्लभ तस्वीरें खींचीं। करीब छह दशक तक बाबा गंगोत्री से हिमालय के विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करते रहे और इस दौरान उनका कैमरा भी चलता रहा। वक्त के साथ तकनीक बदली, तो कैमरे भी बदले, बाबा ने ब्लैक एंड व्हाइट से लेकर डिजिटल फोटोग्राफी तक का उपयोग कर हिमालय को अपने कैमरे में कैद किया।
और जब बाबा अपनी वृद्धावस्था के करीब पहुंचे तो उन्होंने अपने संकलन के लिए एक म्यूजियम तैयार करने की ठानी। उनके म्यूजियम को तैयार होने में एक दशक लगा और ये अब लगभग तैयार हो चुका है।
हम बात कर रहे हैं स्वामी सुंदरानंद की, स्वामी जी का जन्म 1926 में आंध्र प्रदेश में हुआ था लेकिन पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगने के कारण वो 1948 में गंगोत्री आ गए। यहां तपोवन बाबा के सानिध्य में रहने के बाद उन्होंने संन्यास ले लिया। इसका उल्लेख स्वामी सुंदरानंद ने अपनी आत्मकथा में भी किया है। वर्ष 2002 में उन्होंने अपने अनुभवों को पुस्तक ‘हिमालया : थ्रू द लैंस ऑफ ए साधु’ (एक साधु के लैंस से हिमालय दर्शन) में प्रकाशित किया। पुस्तक का विमोचन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था।
दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार गंगोत्री हिमालय के हर दर्रे से परिचित स्वामी सुंदरानंद वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के दौरान भारतीय सेना की बार्डर स्काउट के पथ-प्रदर्शक रह चुके हैं। सुंदरानंद बताते हैं कि भारत-चीन युद्ध के दौरान उन्होंने एक माह तक कालिंदी, पुलमसिंधु, थागला, नीलापाणी, झेलूखाका बॉर्डर एरिया में सेना का मार्गदर्शन किया।
अब गंगोत्री धाम में बीते एक दशक से बन रही तपोवनम् हिरण्यगर्भ आर्ट गैलरी (हिमालय तीर्थ) तैयार हो चुकी है। अब सिर्फ ध्यान टावर का निर्माण होना बाकी है, जो अगस्त से पहले पूरा हो जाएगा। करीब ढाई करोड़ की लागत से तैयार इस आर्ट गैलरी को स्वामी सुंदरानंद ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सुपुर्द कर दिया है। दरअसल आर्ट गैलरी के संचालन के लिए उन्हें कोई योग शिष्य नहीं मिल पाया। इसी कारण उन्होंने कोई शिष्य भी नहीं बनाया और आर्ट गैलरी आरएसएस को सौंप दी। इसी वर्ष 14 सितंबर को इसके उद्घाटन की तिथि भी तय कर दी गई है। उम्मीद है कि उद्घाटन के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गंगोत्री पहुंचेंगे।
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