उत्तराखंड : बंदर, सूअर और आवारा पशु बढ़ा रहे हैं राज्य में पलायन, पढ़िए एक गंभीर आलेख
भारत सदैव ही कृषि प्रधान देश रहा है किसान देश में अन्न का भंडार भरने के लिए सदैव जी तोड़ मेहनत करता है। और अपनी लहलहाती फसलों को देखकर जो सुख की अनुभूति वह प्राप्त करता है उसे शायद शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। देखा जाय तो हमारी प्रकृति में पारिस्थितिकी तंत्र का बहुत बड़ा महत्व है और प्रत्येक प्राणी का भी अपना महत्व है जिससे पारिस्थितिकी तंत्र का चक्र पूरा होता है, किन्तु किसी प्राणीयों की संख्या का अत्यधिक बढ़ जाने से असंतुलन बन जाता है।यही हाल आजकल हर स्थान चाहे बाजार हो या गली मुहल्ले गाँव हो या कोई मंदिर हर स्थान पर सैकड़ो हजारों की संख्या में बंदर उत्पाद मचाते हुए नजर आ जायेंगे।इनके आतंक से हर कोई परेशान है चाहे वह विद्यालय जाने वाले बच्चे हों या आफिस जाने वाले लोग, बाजार में घूमने वाले आम राहगीर और हर कोई आम जनमानस। इन्होंने न जाने कितने लोगो को घायल जख्मी कर दिया है। इनके बढ़ते आतंक से अब हर कोई भयभीत हैं। जंगलों की ओर से इन्होंने आबादी वाले क्षेत्रों में डेरा जमाना शुरू कर दिया है। इनसे कोई अछूता नहीं है न जाने कितने लोगो को काटकर घायल जख्मी कर चुके हैं। सरकारें आज इन सब पर काबू पाने में लाचार है।
सबसे अधिक आज बंदरों व आवारा पशुओं के आतंक से आमजनमानस व किसान प्रभावित है कठिन मेहनत से उगायी हुई इन फसलों को ये चौपट कर देते हैं। फल फूल साग सब्जी एंव अन्य फसलें भी ये सब चौपट कर देते हैं। वहीं दूसरी ओर आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या से पहाड़ के गाँव व शहर सभी परेशान हैं। शहरों में तो आवारा पशुओं की वजह से अनेक बार जाम भी लग जाता है वहीं दोपहिया वाहन चालक व पैदल राहगीर भी इनसे दुर्घटनाओं का शिकार होकर चोटिले हो जाता हैं। आवारा पशुओं को किसी गौशाला, बड़े वन क्षेत्र अथवा बड़े वन भू भाग में छोड़ने की व्यवस्था सभी स्थानों के स्थानीय प्रशासन को करनी चाहिए इसके लिए सरकारों को ठोस पहल करने की भी आवश्यकता है। पशुपालन को कैसे बढ़ावा दिया जाय पशुपालको को कैसे प्रोत्साहित किया जाय इन सब चिंतन मनन करने की भी नितान्त आवश्यकता है। पशुओं को छोड़ना पशुपालकों की विवशता न बने इसके लिए गौशालाओं या अन्य उपायों को सरकार और प्रशासन द्वारा खोजा जाने की नितान्त आवश्यकता है। आवारा पशुओं, सुवरों और बंदरों ने तो मानो पहाड़ की खेती पर पूर्ण रूप से कब्जा बनाकर उसे चौपट कर दिया है।
साल भर की मेहनत के बाद जहाँ अनेक बार मौसम की मार झेलनी पड़ती है वहीं दूसरी ओर आवारा पशुओं, सुअरों ,बंदरों द्वारा इस प्रकार फसलों को नष्ट कर देने से ग्रामीण निराश एंव हताश हो जाते हैं। अनेक बार इनके भय से फसलों को बोना ही छोड़ दिया जाता है। आज सबसे अधिक पहाड़ के गांवों शहरों कस्बों हर जगह में बंदरों का आतंक मचा हुआ है। बंदरों के आतंक से हर कोई परेशान है। बंदरों द्वारा अनेक लोगों अभी तक जख्मी कर दिया है। बंदर राहगीरों अथवा बाजार में चलते घूमते फिरते लोगों पर हमला बोल देते हैं। बंदरों के आतंक से पहाड़ के अनेक स्थानों पर भी व्यवसाय चौपट होते जा रहा है। दुकानों को जाली से चारों ओर से ढककर व्यवसाय को बचाया व चलाया जाना मजबूरी बन गयी है। बंदरों के आतंक से हर कोई परेशान है। इनसे कब निजात मिल पायेगी यह विचारणीय एंव चिंतनीय है। क्या सरकारें कोई ठोस कदम उठायेगी। यह तो समय ही बतलायेगा। वास्तव में एक कुमांऊनी कहावत है “खायी के जाणू भूखै बात”। आवारा पशुओं बंदरों के आंतक से पहाड़ के गांवों में खेत खलिहान चौपट होने के कारण पलायन की समस्या भी बढ़ते जा रही है। इन समस्याओं का समाधान खोजने की नितान्त आवश्यकता है।
भुवन बिष्ट, रानीखेत, अल्मोड़ा
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