उत्तराखंड : पहाड़ की ममता रावत, अमिताभ बच्चन ने भी माना जिसका लोहा
आजकल चैत्र नवरात्रि चल रहे है। नवरात्रि का अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि के बाद इस बार भी ग्राउंड जीरो से चैत्र नवरात्रि विशेष के तहत आपको उत्तराखंड की ऐसी महिलाओं से रूबरू करवा रहे हैं जिन्होंने अपने कार्यों, संघर्षों और जिजीविषा से समाज के लिए एक मिशाल पेश की है। आज आपको रूबरू करवाते हैं उत्तरकाशी के असी गंगा घाटी के भंकौली गांव की बहादुर बेटी ममता रावत से…
संघर्षमय जीवन, गुरबत में बीता बचपन, किस्मत ने पग पग पर ली परीक्षा…
उत्तरकाशी से 40 किमी दूरी पर असी गंगा घाटी के भंकौली गांव में 8 जून 1991 को रामचंद्र सिंह रावत व भूमा देवी के घर ममता रावत का जन्म हुआ। ममता बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती है। ममता के पिता रामचंद्र सिंह रावत खेतीबाड़ी और चाय की दुकान चलाकर बड़ी मुश्किलों से अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपने माता-पिता की 4 संतानों में ममता तीसरे नंबर पर हैं। जब ममता सिर्फ 10 साल की थी, तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। पिता के असमय चले जाने से ममता के पूरे परिवार पर दु:खो का पहाड़ टूट पड़ा था। इस घटना नें ममता को झकझोर कर रख दिया था। पिता के जाने के बाद परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी ममता के कंधों पर आ गयी थी, लेकिन ममता नें हिम्मत नहीं हारी।और अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी खुद उठाई और कड़ी मेहनत की। ममता नें अपने गाँव के प्राथमिक विद्यालय भंकोली से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की और राइंका भंकोली से 12वीं पास की। लेकिन, इसी बीच मां भूमा देवी बीमार पड़ गईं, जिससे ममता आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाई। कठिन हालात के बीच जिंदगी के संघर्ष से गुजर रही ममता का नाम जब श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम के अधिकारियों ने सुना तो उन्होंने 2006 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) से ममता को पर्वतारोहण का बेसिक कोर्स कराया। इसके बाद ममता ट्रेकिंग के रास्ते पर चल पड़ी। वर्ष 2010 में उसने निम से एडवांस कोर्स के साथ पर्वतारोहण में मास्टर डिग्री भी हासिल की। इसके अलावा उसने निम से ही सर्च एंड रेस्क्यू कोर्स भी किया है।
आपदा में फरिश्ता बनकर बचाई 40 बच्चों की जिंदगी, चट्टान की तरह अडिग रहकर बच्चों को सकुशल निकाला…
उत्तरकाशी से 40 किमी दूर असी गंगा घाटी के भंकौली गांव की ममता रावत। वर्ष 2013 में 16 जून की काली रात जब विनाशकारी आपदा ने हजारों जिंदगियों को लील लिया और हजारों घर तबाह हो गए, तब वह ममता ही थी, जिसने लाचारी छोड़कर इससे लड़ने का हौसला दिखाया। ममता ने परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी तो ली ही, 40 स्कूली छात्र-छात्राओं को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के साथ कई यात्रियों व ग्रामीणों की जिंदगी भी बचाई। 2013 में 16 जून की रात जब अचानक आपदा का कहर टूटा। तब ममता दिल्ली व मुंबई के 40 स्कूली छात्रों के साथ दयारा कैंप में थी। वह इन बच्चों को पर्वतारोहण के साथ एडवेंचर का प्रशिक्षण दे रही थी। लगातार बारिश होने और बाढ़ आने पर ममता के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन छात्रों को बचाने की थी। जंगल के रास्ते से ममता बच्चों को लेकर गंगोरी पहुंची और फिर डीएम को फोन से सूचना दी कि उसके साथ 40 बच्चे हैं, जिन्हें सुरक्षित उत्तरकाशी पहुंचाना है। डीएम के आदेश पर पुलिस ने ममता के साथ 40 बच्चों को उत्तरकाशी आने की अनुमति दी। इसके बाद ममता ने अपनी गर्भवती भाभी को पीठ पर लादकर अस्पताल पहुंचाया और फिर बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने मनेरी पहुंची। निम की टीम के साथ उसने कई लोगों को वहां से सुरक्षित निकाला।
दुनिया नें किया सैल्यूट, विभिन्न मंचों पर मिला सम्मान..। महानायक अमिताभ बच्चन ने किया हौसले को सलाम..
ममता रावत की बहादुरी को उत्तरकाशी से लेकर देहरादून, दिल्ली, चंडीगढ़ सहित कई जगहों पर सम्मान भी मिला है, जहाँ उन्हें विभिन्न मंचो पर सम्मानित किया गया। विगत दिनों दिल्ली मे 8 मार्च को महिला दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में भी मीरा रावत को सम्मानित किया गया। वहीं तीन जून 2016 की रात एक चैनल प्रसारित कार्यक्रम में अभिनेता अमिताभ बच्चन ने ममता से जाना कि 2013 की आपदा में उसने किस तरह लोगों की जान बचाई। ममता के इस हौसले के लिए अमिताभ ने उसे हनुमान की संज्ञा प्रदान की। कार्यक्रम में पहुंची टेनिस स्टार सानिया मिर्जा व प्रसिद्ध गायक सान ने भी ममता के हौसले को सलाम किया।
रैंथल गांव में पलायन रोकने और रोजगार सृजन की मुहिम को कर रही है साकार…
ममता ग्रीन पीपुल सोसाइटी की मार्केटिंग व ट्रेकिंग हेड है। पलायन रोकने, गांव में ही लोगों को रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से रैथल गांव को स्क्रीनिंग विलेज बनाने की योजना तैयार कर ग्रीन पीपुल सोसाइटी ने इसकी जिम्मेदारी ममता को सौंपी गई। ममता ने इसके लिए रैथल व आसपास के गांवों की लड़कियों को साथ में जोड़ना शुरू कर दिया है। उसने रैथल में स्थानीय उत्पादों को एकत्र करने के लिए कलेक्शन सेंटर भी बनाया है। यहां से स्थानीय जैविक उत्पाद सीधे पांच सितारा होटलों में जा रहे हैं। ममता अपने आसपास की युवतियों को भी माउंटेन गाइड की ट्रेनिंग देने लगी हैं। अब लोग अपनी बेटियों को भी ममता के जैसा बनता देखना चाहते हैं। वैसी ही निडर, वैसी ही बहादुर, और वैसी ही दूसरों के लिए जान की बाजी लगाने वाली।
वास्तव मे देखा जाय तो असी गंगा घाटी के भंकौली गांव की बहादुर बेटी ममता रावत नें दुनिया को दिखलाया की पहाड़ की बेटियों के बुलंद हौंसलो का कोई सानी नहीं है। यदि वे मन ठान ले तो कोई भी कार्य कठिन नहीं है। पहाड की बेटियों नें कभी हारना नहीं सीखा है। आज ममता देश के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है।
इस आलेख के जरिए ममता रावत को उनकी बहादुरी और पहाड़ की बेटियों के बुलंद हौंसलो की ताकत को देश दुनिया तक पहुंचाने को एक छोटी सी कोशिश कर रहे हैं।
Special thanks शैलेन्द्र गोदियाल जी
Sanjay Chauhan, Journalist, Chamoli
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Mirror News