उत्तराखंड : उतीस और बांज जैसे पेड़ दूर कर सकते हैं पहाड़ों का जल संकट, जरूरत है मुड़ कर देखने की
उत्तराखंड का एक बड़ा हिस्सा बर्फ से आच्छादित रहता है जिसे हिमालय कहते हैं, इसी हिमालय से निकलती हैं दर्जनों जीवनदायिनी नदियां जो पहाड़ों से बहती हुई मैदानों तक आती हैं और समुंदर में मिल जाती हैं। अपनी इस यात्रा के दौरान यह नदियां लोगों की प्यास बुझाती हैं, खेतों में अनाज उगाती हैं और इंसान के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन जाती हैं, लेकिन यह एक विडंबना ही है कि उत्तराखंड में पहाड़ों पर बर्फ गिरती है, हिमालय सालों भर बर्फ से ढका रहता है, जहां से नदियां निकलती हैं पर यहां के अधिकतर पहाड़ आज पेयजल की किल्लत से जूझ रहे हैं। हर साल मार्च से लेकर जुलाई,अगस्त तक का महीना यहां रहने वाले लोगों के लिए काफी कठिन होता है। गांव में लोगों को दूर दूर से पानी भरकर लाना पड़ता है क्योंकि इस वक्त तक अधिकतर जल स्रोत सूख जाते हैं । वही शहरों में जहां आधुनिक पाइप लाइन लग चुकी है लोग रात रात भर उठ कर पानी का इंतजार करते हैं, जल निगमों के टैंकरों से पानी बांटा जाता है ।
इसी साल की अगर हम बात करें तो अल्मोड़ा, चंपावत डीडीहाट और गढ़वाल के कई कस्बे ऐसे हैं जहां लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं । प्राकृतिक स्रोत सूख चुके हैं, आधुनिक पाइप लाइनों में पानी नहीं आता, जल संस्थान और निजी टैंकरों के सहारे यहां लोग अपना जीवन जी रहे हैं।
इस सबके हल के रूप में जो व्यवस्था सामने आ रही है वह है पेयजल योजनाओं की, लोग मांग करते हैं कि उनके इलाके में पेयजल योजनाएं लगाई जाएं और सरकार जितना हो सके उतनी कोशिश करके ऐसा करती हैं, लेकिन तब भी लोगों की परेशानियां दूर नहीं होती।
अब जरा उत्तराखंड के पहाड़ों की पुरानी व्यवस्था की ओर जाएं तो हम देखेंगे कि हर गांव में बहुतायत में धारे और नौले जैसे जल स्रोत होते थे जो आज भी हैं, लेकिन क्या कारण है कि आज गर्मी के वक्त इन जल स्रोतों में पानी सूख जाता है। थोड़ा सा अगर शोध किया जाए तो कारण आपके सामने आ जाएंगे, पारंपरिक जल स्रोतों के आसपास के पेड़ काटे जा चुके हैं, पुराने चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों की जगह यूकेलिप्टस और चीड़ के पेड़ों ने ले ली है और यह पेड़ जहां होते हैं उसके आसपास का पानी खत्म कर देते हैं। अंधाधुंध निर्माण कार्य, पहाड़ों में निर्माण कार्य के लिए ब्लास्टिंग का उपयोग करना, जल स्रोतों के आसपास की जमीन पर निर्माण कार्य कर बरसाती पानी को जमीन के अंदर जाने से रोकना, ऐसे कई कारण हैं जो सामने आएंगे।
फिलहाल आज हम बात कर रहे हैं दो पेड़ो की, इनमें से एक पेड़ है उतीस, जिसका वैज्ञानिक नाम Alnus Nepalinesis और दूसरा पेड़ है बांज, जिसका वैज्ञानिक नाम है क्वेरकस इंकाना।
इन पेड़ों में जमीन को बांधे रहने की अद्भुत क्षमता होती है, साथ ही साथ यह पेड़ गर्मी के मौसम में अपने आसपास भूमिगत जल के स्तर को भी बनाए रखते हैं, यही कारण है कि उत्तराखंड में नालों, गधेरों, धारे और नौलों के आसपास इन पेड़ों को बहुतायत में पाया जाता था।
एक बार फिर अगर उत्तराखंड के पारंपरिक जल स्रोतों के आसपास चौड़ी पत्ती वाले ऐसे पेड़ों को बढ़ावा दिया जाए तो निश्चित रूप से यह जल स्रोत एक बार फिर रिचार्ज हो जाएंगे। इसके अलावा प्राकृतिक जल स्रोतों के आसपास हैंडपंपों को भी हतोत्साहित करने की जरूरत है। आप भी अगर ऐसी ही कोई जानकारी लोगों को बताना चाहते हैं तो अपना आर्टिकल हमें mirroruttarakhand@gmail.com पर भेज सकते हैं!
Editorial Panel, Mirror
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