केदारनाथ का भूत पीएम मोदी ने भगाया, लेकिन अभी रास्ते में कोरोना आ गया, आपदा के 7 साल
आज केदारनाथ में आई आपदा को 7 साल पूरे हो चुके हैं, 7 साल पहले आज ही के दिन केदारनाथ के ऊपर हिमालय में स्थित एक झील के फट जाने के कारण उस समय केदारनाथ मंदिर के आसपास का पूरा इलाका तबाह हो गया था, बल्कि उस समय अपने चरम पर चल रही चार धाम यात्रा में मौजूद श्रद्धालु और उससे जुड़े हुए लोग इस आपदा में बह गए थे। हजारों लोगों को इस आपदा में अपनी जान गंवानी पड़ी थी, इस आपदा के कारण पूरा देश हिल गया था, यहां जान गंवाने वाले लोगों में देश के हर राज्य का व्यक्ति मौजूद था।
उस समय वायुसेना और थलसेना की मदद से उत्तराखंड के इस पूरे इलाके में राहत और बचाव अभियान चलाया गया था, इसके बाद राज्य में मौजूद आपदा प्रबंधन तंत्र में भारी खामियों की भी बात हुई थी, इसके बाद चार धाम यात्रा इतनी असुरक्षित हो गई कि श्रद्धालुओं ने यहां का रुख करना छोड़ दिया, फिर शुरू हुआ केदारनाथ पुनर्निर्माण का काम। पुनर्निर्माण से भी ज्यादा जरूरी था, केदारनाथ के भूत को भगाने का काम, भूत का तात्पर्य यहां बीते हुए समय से है, बुरा समय जिसकी स्मृति के भय के कारण केदारनाथ की ओर श्रद्धालुओं का आना काफी कम हो गया था। इसमें कोई दो राय नहीं कि केदारनाथ के पुनर्निर्माण और केदारनाथ के इस भूत को भगाने के काम में सबसे ज्यादा रुचि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ली, वो न सिर्फ दिल्ली में अपने कार्यालय में बैठकर केदारनाथ के पुनर्निर्माण के काम की समीक्षा करते रहे, बल्कि बार-बार यहां की यात्रा कर लोगों के दिमाग से भय को भी निकालते रहे। इसके परिणाम भी सामने आने लगे, चारधाम यात्रा 2019 में रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे, लेकिन इस बार इस यात्रा को कोरोनावायरस की नजर लग गई है, कोरोना संक्रमण के कारण यह यात्रा 2020 में अभी तक शुरू नहीं हो पाई और अगर यात्रा शुरू हो भी जाएगी कुछ दिनों में तो यहां इस बार श्रद्धालुओं की संख्या नगण्य के बराबर रहेगी।
बाबा केदार से हमारी प्रार्थना है कि कोरोनावायरस दुनिया से जल्द से जल्द खत्म हो जाए और यहां पुनर्निर्माण का काम जल्द से जल्द पूरा हो, इसके बाद केदारनाथ की यात्रा या यूं कहें कि चार धाम की यात्रा पहले की तरह शुरू हो, जिसके भूत को प्रधानमंत्री मोदी ने भगाने में पूरी तरह सफलता प्राप्त की है। इस सबके बीच सरकारों ने केदारनाथ से सबक लेते हुए न सिर्फ आपदा प्रबंधन तंत्र को समय अनुकूल बनाए रखना चाहिए बल्कि उत्तराखंड के संवेदनशील हिमालय और पहाड़ी इलाकों में आ रहे हो भूगर्भीय परिवर्तन और पर्यावरण असमानता पर भी नजर रखने के लिए अत्याधुनिक और समय अनुकूल तंत्र को विकसित करना जारी रखना चाहिए।
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