उत्तराखंड के इस गांव में दिया भी जलाना मना था, लेकिन अब ग्रामीणों को मिल गई रोशनी
कोटद्वार। वन कानूनों की मार के चलते आज भी आदिम काल का जीवन जी रहे रिखणीखाल ब्लाक के ग्राम तैड़ियावासियों को पहली बार विकास की हल्की रोशनी नजर आई है। वन कानूनों के चलते चिमनी के भरोसे रात काटने वाले इस गांव के वाशिंदे अब अपने घरों में बल्ब भी जला सकेंगे। दरअसल, प्रधानमंत्री सौभाग्य योजना के तहत गांव सौर ऊर्जा की रोशनी से आच्छादित कर दिया गया है।
कई सरकारें आई और चली गई। मुख्यमंत्री आए और चले गए, लेकिन कोई ऐसा नहीं जो उनकी किस्मत बदलता। सरकारी गलियारों के चक्कर काटते-काटते एड़ियां घिस गई, लेकिन फरियाद सुनने वाला कोई नहीं। शुभ कार्यों पर ढोल-दमाऊ बजता तो है, लेकिन यही डर लगा रहता है कि कब सरकारी अधिकारी आकर ढोल-दमाऊं समेटकर कारागार में बंद कर दें। यही नहीं इस गांव में दीपावली पर पटाखे फोड़ना तो दूर, घर से बाहर ‘दिया’ तक जलाना प्रतिबंधित है।
जिला पौड़ी गढ़वाल के रिखणीखाल प्रखंड के ग्राम तैड़िया के वाशिंदों के लिए ऐसा जीवन जीना नियति बन गया है। पूर्वजों ने गांव तो सही जगह पर बसाया था, लेकिन उन्हें क्या पता था कि उनके गांव की खुशियों को जंगली जानवर निगल लेंगे।
अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कार्बेट नेशनल पार्क (टाइगर प्रोजेक्ट) के कोर जोन में बसे इस गांवों के वाशिंदों की मजबूरी ही कहें कि शुभ मौकों पर ग्रामीण अपने घरों में रोशनी तक नहीं कर सकते। गांव के हालातों पर नजर डालें तो आज भी इस गांव में न तो विद्युतीकरण है और न ही सड़क बनी है।
दुगड्डा-रथुवाढाब-हल्दूखाल-नैनीडांडा मोटर मार्ग से करीब पांच किमी. भीतर घने जंगल में बसे इस गांव के वाशिंदों का जीवन जैसे तैसे कट ही रहा है। जंगली जानवरों का इस कदर आतंक है कि ग्रामीणों ने खेतों का रूख करना ही छोड़ दिया है।
वन कानूनों की बंदिशों में जकड़े इस गांव के वाशिंदे गुलामी के इस जीवन से त्रस्त होकर वर्ष 1998 से विस्थापन की मांग कर रहे हैं। इन ग्रामीणों की आज तक सुध नहीं ली गई है, लेकिन अब हालात बदलते नजर आ रहे हैं।
पिछले कई वर्षों से आदिमकाल जीवन जी रहे इस ग्रामीणों की आवाज सरकार के कानों तक पहुंच गई है। गांव का विस्थापन तो नहीं हो रहा, लेकिन गांव को रोशन करने की कवायद अवश्य शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री सौभाग्य योजना के तहत गांव को विद्युत रोशनी से जगमग करने की दिशा में ग्रामीणों को सौर ऊर्जा प्लेट दी गई हैं।
तैड़िया विस्थापन एवं पुनर्वास संघर्ष समिति के अध्यक्ष डॉ.एपी ध्यानी ने बताया कि गांव में सौर ऊर्जा लाइटें लगनी शुरू हो गई हैं। कहा कि गांव में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, लेकिन वन कानूनों की मार तमाम संभावनाओं पर पानी फेर रही है। उन्होंने पर्यटन के दृष्टिगत गांव को सड़क से जोड़ने की मांग की है।
साभार ntinews.com
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