उत्तराखंड के देवी-देवता : न्याय के लिए प्रसिद्ध गोलू देव की कथा
दोस्तो उत्तराखंड देवभूमि है, यहां के कण-कण में देवताओं का वास है, हमारी इस खास सीरीज ” उत्तराखंड के देवी-देवता ” में हम राज्य में प्रसिद्ध देवी-देवताओं की कथा आपको बताएंगे, ताकि नई पीढ़ी उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा को समझ सके, भैरव जोशी आपको परिचित करवाएंगे, हमारे देवी-देवताओं से, सबसे पहले शुरुआत कर रहे हैं न्याय के लिए प्रसिद्ध गोलू देवता से, जिनका चितई मंदिर खासा लोकप्रिय है, तो आइये जानिये गोलू देवता की कथा……श्री गोलू देवता उत्तराखण्ड के शक्तिशाली तथा सम्माननीय देवता हैं, जो ग्यारहवीं शताब्दी के सूर्यवंशी राजा थे, जिनको भूमी देवता (पृथ्वी से सम्बंधित) देव भी कहा जाता है जो पृथ्वी मै रहने वाले लोगो को बुरी आत्माओं और उनके कुप्रभाओ से भी बचाते हैं, उत्तराखण्ड के लगभग सभी गावों में श्री गोलू देवता सम्मान से पुजे जाते हैं, इनकी जन्म से कथा बताने से पहले हम आपको इनके विभिन्न नाम बताते हैं जो इस प्रकार हैं… 1-बाला गोरिया 2 – कुंवर ग्वेल राय 3 गिरीराज चक्रचूड़ामणि महाधीराज कत्युर राजवंशी चक्रवर्ती सम्राट गोरिया देव 5-राजवंशी गोरीया -6 कंन्डोलिया ठाकुर देव 7-गोरील 8-गोर भैरव 9-कत्युरी देव 10-शिवांष पुत्र 11-पंचनाम भान्जा 12-मामु महादेव अगवाई देव 13-गोलु महाराज 14-ग्वल देव 15-चंपावती गोलु देव 16-चितई न्यायकारी राजा 17 गढ़ कुमाऊँ देव 18-घोड़ाखाल बटुक गोलु देव 19-ताड़ीखेत गोरीया 20-उदयपुर गोलु देव 21-चमड़खानी गोलु देव 22 – सुरई ग्वेल – 23-गनाई चोखुटिया ग्वेल राजवंशी देव 24-बंगारी राजवंशी बाला गोरीया 25 श्री कृष्ण अवतारी 26 श्री भनारी 27 दादू गोरिया 28. भनारी 29. भूमिया 30. अगवानी देव
आइये अब कथा को शुरू करते हैं….. आज के चंपावत और तत्कालीन गढ़ चम्पावत में राजा झालुराय का राज था। उनकी सात रानी थीं, राज्य में चारों ओर खुशहाली थी लेकिन खुशहाली होते हुए भी राज्य में एक कमी थी , वो कमी थी राजा की सात रानी होते हुए भी उनका कोई पुत्र नहीं था । इस वजह से राजा हर वक्त दुखी रहने लगा, सोचने लगा की मेरा वंश आगे कैसे बढे़गा, ज्योतिषियों ने सुझाव दिया कि आप भैरव देव को प्रसन्न करें, आपको अवश्य ही सन्तान सुख प्राप्त होगा। ज्योतिषी की बात मानते हुए राजा ने भैरव पूजा का आयोजन किया । श्री काल भैरव नगरी काशी से भैरब पुजारी यज्ञ के लिये बूलाये गए और यज्ञ सफलता के बाद श्री काल भैरव देव ने राजा को सपने में खुद उनके पुत्र रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद दिया । पर उसके लिये राजा को 8वीं शादी करने का निर्देश दिया, आदेश पालन करते हूए राजा ने पंचनाम देवों की धर्म बहन कालिन्गा से विवाह किया और निश्चित अविधि में माता कलिन्गा के गर्भ में बालक ने स्थान ग्रहण कर लिया ।
दरअसल ये बालक अर्थात भगवान ग्वल्ल या गोलू जब कालिंगा के गर्भ में थे तो अन्य सात रानियाँ ईर्ष्या से भर उठीं और उन्होंने सोचा कि यदि कालिंगा का पुत्र होगा तो राजा उसे अधिक प्यार करने लगेगा और उनकी उपेक्षा होने लगेगी। इससे बेहतर होगा कि वे किसी भी प्रकार कालिंगा के गर्भ के बालक का अंत कर दें।
प्रसव के समय से ठीक पहले सातों रानियाँ राजा के पास गईं और उनसे कहा कि बड़ी मुश्किल से आज हमें संतान का मुख देखने का सौभाग्य मिल रहा है। यदि हम बच्चा जनाने के लिए किसी दाई को बुलाएं तो पता नहीं वह क्या कर दे। अतः हम सभी मिल कर बच्चा जनने में मदद करेंगी और किसी को भी भीतर जाने की अनुमति नहीं होगी। राजा उनकी बातों से सहमत हो गया। सातों रानियों ने कालिंगा से कहा की… हे बहन! अब तुम्हारा प्रसूति का समय आ गया है और तुम पहली बार माँ बन रही हो, अतः तुम प्रसूति पीड़ा से मूर्छित न हो जाओ, इसके लिए हम तुम्हारी आँखों में पट्टी बाँध देते हैं, सात सौतों ने कालिंगा की आँखों में पट्टी बाँध दी और सामने से फर्श को काटकर उसमें बड़ा सा छेद बना दिया । सौतों के कई तरह के प्रयासों से भी जब बालक ग्वल्ल गर्भ में भी नहीं मरा और पैदा हो गया तो उन्होंने फर्श के छेद से उसे नीचे बकरे-बकरियों के गोठ में डाल दिया, जहाँ हिलि और चुलि नाम के दो खतरनाक बकरे रहते थे। कालिंगा के सामने रक्त में सने सिल-बट्टे रख दिए गए। आँख की पट्टी खोलकर उसे बताया गया कि तेरे गर्भ से ये पैदा हुआ है।
बकरे-बकरियों के गोठ में भी जब बालक ग्वल्ल नहीं मरा तो नवजात को बिच्छू घास में ड़ाला गया, फिर भी जब वो नही मरे तो रानियों ने लोहार को बूलाया और ऐसा सन्दूक बनवाया जिसमें हवा भी नही आ जा सके, उस सन्दूक में नवजात को बन्द कर के ताले लगा कर काली नदी में बहा दिया गया………….इससे आगे की कथा अगले भाग में, इंतजार करिये क्योंकि उत्तराखंड में न्याय के देवता के रूप में जाने जाने वाले गोलू देव की खुद की कहानी भी संघर्ष से भरी हुई है ।
भैरव जोशी ( उत्तराखंड निवासी भैरव जोशी दिल्ली में टाटा ग्रुप ऑफ होटल्स में कार्यरत हैं और उत्तराखंड की दैवीय संस्कृति की इनको विशेष जानकारी है, इनके ज्ञान को अब हम आप लोगों तक पहुंचाएंगे )
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