साहित्य
पहाड़ी नेताओं पर निशाना साधने वाला कुमाऊंनी तरीके का तीखा व्यंग्य
सोशल मीडीया में एक मैसेज बहुत आ रहा है कि माननीयो ने अपनी तो तनख्वाह बड़ा दी है, और सरकारी नौकरों की क्यों नहीं बड़ी , कह रहे ये कैसा गणित ठैरा। तो मैने सोचा कुछ इस गणित को परिभाषित किया जाय। तो दाज्यु सुणो….. अरे दाज्यु इसका गणित इस प्रकार है……… आप लोग नौकरी करने वाले ठैरे……. इस बार नही बडे़गा , ……..तो अगली बार बड़ जायेगा. साठ साल…
“बाटा गोडाई क्या तेरो नौ च, बोल भौराणी कख तेरो गों च” और पंडित विशालमणि शर्मा
उत्तराखंड के पहले प्रकाशक पं विशालमणि सेमवाल/शर्मा कल्पना करें कि, आज से ठीक 100 वर्ष पहले यानि 1917 के ऊपरी गढ़वाल की। भौगोलिक दृष्टि से एक सीमान्त क्षेत्र की। एक ऐसा पिछड़ा क्षेत्र जहां से नजदीकी बस सुविधा लगभग 200 किलोमीटर दूर ऋषिकेश में थी। कोई पक्का मकान भी न था। मकान की छतों को घास से ढ़का जाता था। बिजली तो दूर मिट्टी तेल भी रोशनी के लिए उपलब्ध…
कहीं धीरे-धीरे खत्म तो नहीं हो रही हैं गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषाएं
भारत कई भाषाओं की भूमि है। एक लोकप्रिय कहावत है “कोस कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी” मतलब भारत एक ऐसी जगह है जहाँ हर कुछ किलोमीटर में बोली जाने वाली भाषा पानी के स्वाद की तरह बदल जाती है भारत का संविधान देश की विभिन्न हिस्सों में बोली जाने वाली 23 आधिकारिक भाषाओं और दो आधिकारिक शास्त्रीय भाषाओं, संस्कृत और तमिल को मान्यता देता है। आज स्कूल…