…तो उत्तराखंड में फिर CM बदलेगा, या लगेगा राष्ट्रपति शासन, सियासी हलचल तेज
उत्तराखंड में सियासी गलियारों में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है, दरअसल इस बार हलचल तेज हाल ही में मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत के विधानसभा का चुनाव लड़ने को लेकर है। संवैधानिक नियमों के अनुसार मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को 10 सितंबर से पहले उत्तराखंड विधानसभा की सदस्यता हासिल करनी है, फिलहाल मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सांसद है और 10 सितंबर से पहले उन्हें उत्तराखंड में किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ कर विधायक बनना होगा तभी वह 10 सितंबर के बाद मुख्यमंत्री रह पाएंगे। सबसे बड़ा संकट यह है कि फिलहाल राज्य में किसी तरह के उपचुनाव होने के आसार बहुत कम हैं, ऐसे में मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की कुर्सी खतरे में नजर आ रही है। 10 सितंबर के बाद राज्य में या तो किसी और को मुख्यमंत्री बीजेपी बना सकती है अन्यथा राज्य में राष्ट्रपति शासन भी लागू हो सकता है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 151 (क) के तहत भी किसी रिक्त विधानसभा का शेष कार्यकाल एक वर्ष से कम होने के कारण उपचुनाव नहीं हो सकता। ऐसे में 22 अप्रैल 2021 को भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन से खाली हुई गंगोत्री सीट और इधर 13 जून को दिवंगत हुई इंदिरा ह्रदयेश की हल्द्वानी विधानसभा सीट पर उपचुनाव नहीं हो सकता है। क्योंकि 23 मार्च 2022 तक के लिए गठित मौजूदा विधानसभा के लिए इन दोनों विधानसभाओं के रिक्त रहने का समय एक वर्ष से कम बचा रह गया था। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री रावत के पास सल्ट सीट से चुनाव लड़ने का विकल्प था, परंतु उन्होंने इस सीट से चुनाव नहीं लड़ा।
वहीं सुप्रीम कोर्ट 2001 में एस आर चौधरी बनाम पंजाब राज्य सरकार मामले में यह साफ कर चुका है कि किसी भी गैर विधायक को दो बार मुख्यमंत्री या मंत्री नहीं बनाया जा सकता है। ऐसे में जल्द ही भाजपा को राज्य में किसी विधायक को मुख्यमंत्री बनाना पड़ेगा या हो सकता है कि मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सितंबर से पहले राज्यपाल को विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दें और अगले साल होने वाले चुनावों तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाए। इस पूरे मामले को लेकर उत्तराखंड में राजनीतिक कयासबाजी का दौर शुरू हो चुका है और अब देखना होगा कि बीजेपी राज्य की ओर बढ़ रहे इस संवैधानिक संकट से किस तरह से निपटती है। हालांकि मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की कुर्सी बचे रहने के लिये सुप्रीम कोर्ट का वह निर्णय प्रभावी सिद्व हो सकता है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव में एक वर्ष से कम समय रहने पर भी चुनाव कराये जा सकते है। प्रमोद लक्षमण गुडाधे बनाम निर्वाचन आयोग के मामले में दिया गया निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया था। ऐसे में चुनाव आयोग उप चुनाव करवाने के लिए क्या कदम उठाता है यह काफी महत्वपूर्ण होगा, हालांकि आयोग की ओर से कुछ ही दिनों पहले कोविड-19 संकट को देखते हुए उपचुनावों से परहेज करने की बात कही गई थी।
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