गढ़वाल के बाद अब कुमाऊं में भी मिली उड़ने वाली गिलहरी, पर्यावरण प्रेमियों में खुशी की लहर
उत्तराखंड के टिहरी के देवलसारी रेंज के बाद अब पहली बार कुमाऊं के जंगलों में भी उड़ने वाली गिलहरी दिखी, पर्यावरण प्रेमियों में उत्तराखंड के रानीखेत में उड़ने वाली गिलहरी पाए जाने के बाद खुशी की लहर है ! उत्तराखंड के टिहरी के देवलसारी रेंज के बाद अब पहली बार कुमाऊं के जंगलों में भी उड़ने वाली गिलहरी दिखी, पर्यावरण प्रेमियों में उत्तराखंड के रानीखेत में उड़ने वाली गिलहरी पाए जाने के बाद खुशी की लहर है ! इस गिलहरी को रानीखेत में प्रकृति फोटोग्राफर कमल गोस्वामी ने अपने कैमरे में कैद किया है, दैनिक जागरण अखबार की एक रिपोर्ट के अनुसार सुप्रसिद्ध नेचर फोटोग्राफर, स्टेट वाइल्ड लाइफ एडवाइजरी कमेटी सदस्य पद्मश्री अनूप साह ने इसकी पहचान उडऩे वाली गिलहरी के रूप में की। उन्होंने नैनीताल के बांंज बहुल जंगलात में भी इसकी मौजूदगी का दावा किया।
तीन वर्ष पूर्व टिहरी में दिखी थी
वर्ष 2016 में समुद्रतल से 6500 फीट की ऊंचाई पर स्थित देवलसारी रेंज (टिहरी) में पहली बार दिखी थी उडऩ गिलहरी।
उड़न गिलहरी (Flying squirrel), जो वैज्ञानिक भाषा में टेरोमायनी (Pteromyini) या पेटौरिस्टाइनी(Petauristini) कहलाये जाते हैं, रोडेंट, यानि कुतरने वाले जीव के परिवार के जंतु हैं जो ग्लाइडिंग की क्षमता रखते हैं। इनकी विश्व भर में ४४ प्रजाति हैं जिनमें १२ जातियाँ भाारत में पाई जाती हैं। जंगल में इनका जीवनकाल लगभग ६ वर्ष का होता है लेकिन बन्दी अवस्था में (जैसे चिड़ियाघर में) इनका जीवनकाल १५ साल तक का हो सकता है। परभक्षी की वजह से शावकों की मृत्यु दर काफ़ी ऊँची होती है। प्राय: यह प्राणी रात मेें निकलता है।
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Mirror News